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प्रकृति के प्रति समर्पण का त्यौहार 'छठ पूजा', जानिए कथा  - श्रीनारद मीडिया

प्रकृति के प्रति समर्पण का त्यौहार ‘छठ पूजा’, जानिए कथा 

प्रकृति के प्रति समर्पण का त्यौहार ‘छठ पूजा’, जानिए कथा

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श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

सूर्य उपासना का त्यौहार ‘छठ’ प्रकृति के प्रति समर्पण का उत्सव है।छठ त्यौहार केवल बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश का न होकर आज इसकी व्यापकता बढ़ी है। बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग जहां-जहां गए अपनी लोक संस्कृति और त्यौहार की धरोहर को साथ लेते गए। ‘छठ पूजन’ ही एकमात्र ऐसा त्यौहार है जिसमें अस्त और उदय होते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत शुरू और सम्पन्न किया जाता है।

कथा:- पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रियवंद नामक एक राजा की कोई संतान नहीं थी। इससे वह बहुत दुखी रहते थे। एक दिन उन्होंने महर्षि कश्यप से अपने मन की व्यथा कही तब महर्षि ने संतानोत्पत्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। इस दौरान यज्ञ में आहुति के लिए बनाई गई खीर राजा प्रियवंद की पत्नी मालिनी को खाने के लिए दी गई। यज्ञ की खीर के सेवन से रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन वह मृत पैदा हुआ। राजा प्रियवंद मृत पुत्र के शव को लेकर श्मशान पहुंचे और अपने प्राण त्यागने लगे।
कथा के अनुसार उसी समय ब्रह्मा जी की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा प्रियवंद से कहा, ”मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूं इसलिए मेरा नाम षष्ठी भी है। तुम मेरी पूजा करो और लोगों में इसका प्रचार-प्रसार करो।”
माता षष्ठी के कहे अनुसार राजा प्रियवंद ने पुत्र की कामना से माता का व्रत विधि-विधान से किया। उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी थी। इसके फलस्वरूप राजा प्रियवंद को पुत्र प्राप्त हुआ।
एक अन्य कथा के अनुसार माता सीता ने भी भगवान श्री राम के साथ छठ पूजा की थी। श्री वाल्मीकि रामायण के अनुसार बिहार के मुंगेर में सीता चरण नामक एक स्थान है। यहां माता सीता ने 6 दिनों तक उपवास रख कर श्रीराम के साथ छठ पूजा की थी।
मान्यता है कि श्री राम जब 14 वर्ष वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया।

इसके लिए ऋषि मुग्दल को निमंत्रण दिया गया लेकिन उन्होंने भगवान राम एवं सीता जी को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया। ऋषि की आज्ञा पर भगवान राम एवं सीता जी स्वयं यहां आए और उन्हें इसकी पूजा के बारे में बताया गया। ऋषि मुग्दल ने सीता जी पर गंगा जल छिड़क कर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। यहीं रहकर सीता जी ने 6 दिनों तक सूर्यदेव की पूजा की थी।महाभारत में भी सूर्य पूजा का उल्लेख पाया जाता है। इसके अनुसार कर्ण स्नान के बाद घंटों तक जल में खड़े रह कर सूर्य की उपासना करते थे। दौपदी ने भी पांडवों की रक्षा के लिए छठ पूजन किया था।

🌹छठ पूजा में इन वस्तुओं का करें प्रयोग👇
छठ पूजा के लिए बांस की टोकरी का प्रयोग किया जाता है। इस टोकरी को पहले धो लें। इसके बाद इसमें गंगाजल छिड़क लें। इस बांस की टोकरी में प्रसाद रख कर सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। प्रसाद के तौर पर गन्ने का भी काफी महत्व है। छठ पूजन में गन्ना होना आवश्यक है। गन्ने पर कुमकुम लगाकर पूजा स्थल पर रखें। गुड़ और आटे से मिल कर बनने वाले ‘ठेकुआ’ को छठ पर्व का प्रमुख प्रसाद माना जाता है।
इसके अलावा छठ मैया को चावल के लड्डू भी चढ़ाए जाते हैं। साथ ही केले की पूरी ‘घार’ चढ़ाई जाती है जिसे प्रसाद के तौर पर वितरित किया जाता है।

धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः ।
तत्त्वेभ्यः सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते ॥
🙏श्री जगदीश जी की जय हो🙏
🚩🙏🏻 धर्मो रक्षति रक्षितः सुखस्य मूलं धर्मः 🚩

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