जन-जन की भावना का प्रतीक है छठ का अनुष्ठान।

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“छठ की रहती है पूरी वर्ष भर प्रतीक्षा
कभी न समाप्त होने वाली निष्ठा।”

राजेश पाण्डेय

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क


छठ पूजा लोक पर्व नहीं लोकमंगल की भावना से परिपूर्ण त्योहार है। आस्था के सरोवर में श्रद्धा एवं विश्वास की छठ रूपी हंस इस काल में डुबकी लगाता है। श्रद्धा एवं विश्वास के लोक पर्व में छठ की छटा निराली है। उगता ही नहीं डूबता सूर्य भी श्रद्धा का केंद्र है। छठ त्यौहार नहीं व्रत है, क्योंकि यह अपनी प्रकृति व समाज को बचाने व बढ़ाने का भी संकल्प है। सूर्य जितना समष्टि के लिए है उतना व्यष्टि हेतु भी अनिवार्य है। सूर्य हमें प्रत्येक दिन परमपिता परमेश्वर होने का अनुभव कराते है। सूरज हमें व्रत लेने, पवित्रता धारण करने एवं संस्कार हेतु कुछ करने की प्रेरणा देते है।

छठ पूजा में कर्मकांड नहीं होता, पंडित- पंडा-पुजारी नहीं होते। यह विशुद्ध रूप से मष्तिष्क,ह्रदय व आत्मा को प्रकृति के साथ जोड़कर पवित्र करने निर्मल रहने का आदि संकल्प है। पित्त बराबर देवता के लिए सरोवरों एवं नदियों में खड़े होकर जल अर्पित करना इस पर्व को लोक पर्व बनता है और कामना करता है कि प्रत्येक युग एवं काल में ही नहीं प्रत्येक दिन सूर्य देवता जैसा मुझे पिता मिले, जो ऊर्जा से भर दे, लबरेज कर दे ताकि हम अहर्निश अपने कार्यों के प्रति प्रतिबद्ध हो, कटिबद्ध हो। छठ माता की पूजा संस्कृतिक, मानसिक व आध्यात्मिक पवित्रता का व्रत है। यह धार्मिकता से कहीं बढ़कर भाव- भावना- भारतीयता का लोक पर्व है। इस अनुष्ठान में धर्म, जाति, भाषा, रूप-रंग, क्षेत्र व प्रांत की दीवारें ढ़ह जाती है।

छठ पूजा के तत्व की मीमांसा

विशाल विराट विहंगम सांध्य एवं प्रातः बेला में स्वच्छ सुंदर निर्मल घाटों पर माताएं व बहनों द्वारा सूर्य को दिया जाने वाला अर्ध्य इस पर्व को सृष्टि की साधना का लोक पर्व बनता है। प्रकृति के समन्वय का यह उत्सव जन-जन में इतना लोकप्रिय है कि जनता इसकी एक धुन पर अपने नगर खींचे चले आते है। छठ पूजा को लोक की शक्ति का महापर्व भी कहा जाता है। यह प्रत्येक व्यक्ति के रोम- रोम में उमंग भर देती है। छठ पूजा अपने जड़ों से जुड़ने का भी माध्यम है।

यह आस्था के साथ-साथ कला की अभिव्यक्ति का भी परिचय देती है। संगीत की मनमोहक धुन इस पर्व को भव्य बनाती है। छठ पूजा में सहयोग की भावना होती है। सक्षम जन पूजा सामग्री लोगों में बांटते है। इसके सरोकारों पर बात करें तो जनता के बीच इस अनुष्ठान को लेकर आपसी संबंध बढ़ता है, मित्रता सुदृढ होती है। वहीं यह संयम का भी पर्व है संयम व धैर्य से ही व्यक्ति के जीवन में सफलता मिलती है।

छठ पूजा जीवन में संयम बरतने की भी सलाह देती है। यह समन्वय का भी पर्व है उच्च नीच की दीवार ढ़हकर आपसी सहयोग में तब्दील हो जाती है। व्यक्ति समर्पण की भावना से इस अनुष्ठान में भाग लेता है। आस्था, विश्वास, संयम संवेदना एवं समर्पण का यह पर्व माना जाता है। साथ ही साथ इस पर्व में संवेदना की प्रकाष्ठा उत्पन्न हो जाती है। उत्साह, उमंग, आराधना एवं साधना के रंग में यह संवेदना स्वत: उत्पन्न होकर मानव मन को झंकृत करती है। इस पर्व में सद्भाव के साथ सद्भावना एवं उपासना के साथ श्रद्धा का अनुष्ठान किया जाता है।

हमारे सारे स्थूल विचार, तनाव के क्षण, पसीज कर सूक्ष्म रूप में बदल जाते है। यह संयुक्त आराधना का भी काल है। सूर्य की शक्तियों के मुख्य स्रोत उषा एवं प्रत्यूषा है। इनकी सूर्य के साथ संयुक्त आराधना इस चराचर की भी आराधना है जिसमें यह सृष्टि व्याप्त है।
अंतत यह कहा जा सकता है कि छठ पूजा का संदेश है सब जुड़े सब बढ़े। सर्वे भवंतु सुखिन:सर्वे संतु निरामया।

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