मिड डे मील खाने से इंकार कर रहे बच्चे,आखिर क्या है डर का कारण?

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झारखंड में डॉक्टरों की हड़ताल जारी, OPD ठप.

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

राज्य में एक मार्च से आठवीं की पढ़ाई शुरू हो गई है। इस क्लास के बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ मध्याह्न भोजन भी दिया जा रहा है। कई स्कूलों में बच्चे मध्याह्न भोजन नहीं कर रहे हैं, वहीं कई जगहों पर खुद अभिभावक आकर मिड डे मील देने से मना कर रहे हैं। धनबाद जिले से ऐसी शिकायतें झारखंड मध्याह्न भोजन प्राधिकरण को मिली हैं।

राज्य में 17 मार्च 2020 से ही प्रारंभिक स्कूल बंद थे। एक मार्च से आठवीं की कक्षाएं शुरू हुई है। स्कूल आ रहे बच्चों के लिए मिड डे मील भी बन रहे हैं। बच्चों और अभिभावकों द्वारा क्या हुआ मिड डे मील नहीं देने के आग्रह के बाद वैसे बच्चों को अब मध्याह्न भोजन का पैकेट तैयार कर उपलब्ध कराया जा रहा है। वैसे बच्चे जो स्कूल आकर मध्याह्न भोजन नहीं कर रहे हैं और जो स्कूल नहीं आ रहे हैं उन सभी बच्चों का चावल के साथ-साथ कुकिंग कॉस्ट की राशि से दाल, तेल, सोयाबीन, आलू समेत सब्जी का पैकेट बनाया जा रहा है।

कोरोना के डर से अभिभावक जता रहे एतराज
सरकारी स्कूल के बच्चों के अभिभावक कोरोना वायरस की दर से स्कूलों में भोजन करने से अपने बच्चों को मना कर रहे हैं। वह स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि बच्चे या तो टिफिन लेकर स्कूल आएंगे या घर जाकर खाना खाएंगे। इसके बाद  शिक्षा विभाग की ओर से सभी जिलों को निर्देश दिया गया कि जो बच्चे स्कूल आने के बाद भी मध्यान भोजन  नहीं कर रहे हैं उन्हें चावल और सूखा मिड डे मिल का पैकेट तैयार कर दिया जाए।

पूर्व से घर पर जा कर दिया जा रहा चावल
पहली से आठवीं तक के बच्चों को  17 मार्च 2020 से ही चावल और कुकिंग कॉस्ट की राशि दी गई। सितंबर से कुकिंग कॉस्ट की राशि की जगह  उस से सामान खरीद के लिए जा रहे हैं। सभी जिलों से मार्च तक का आकलन कर मांगा गया था। इसके बाद मार्च तक की राशि और खाद्यान्न उपलब्ध कराया जा रहा है।

30 फ़ीसदी तक हो रही उपस्थिति
आठवीं क्लास में 5.25  लाख छात्र-छात्राएं नामांकित हैं, लेकिन स्कूलों में हर दिन 30 फ़ीसदी तक की उपस्थिति हो पा रही है। छात्र छात्राओं को  नियमित रूप से स्कूल आने की अनिवार्यता नहीं है। जो छात्र छात्राएं स्कूल आना चाहते हैं वे  अभिभावकों की सहमति पत्र लेकर ही स्कूल आ सकते हैं।

सातवें वेतनमान के अनुसार वर्ष 2016 से 2019 तक के लंबित एरियर की मांग को लेकर झारखंड के जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल तीसरे दिन भी जारी है। ओपीडी बहिष्कार के चलते इलाज कराने आने वाले मरीजों को कोई देख नहीं रहा। सीनियर डॉक्टर के भरोसे ओपीडी चलाने की रिम्स की कोशिश भी फेल साबित हो रही है। यही वजह है कि मरीजों को बिना इलाज कराए लौटना पड़ रहा है।

राजधानी रांची के रिम्स सहित राज्य के सभी 6 मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटलों के रेजिडेंट डॉक्टर्स आज तीसरे दिन बुधवारा को भी कार्य बहिष्कार पर हैं। इस हड़ताल को जूनियर डॉक्टरों का साथ मिल जाने से मरीजों की दिक्कत बढ़ गई है। हाल यह है कि इलाज के लिए अस्पताल पहुंचने वाले मरीजों को बैरंग लौटना पड़ रहा है।

रिम्स के शिशु रोग ओपीडी में अकेले बैठे विभागाध्यक्ष डॉ एके चौधरी ने कहा कि स्थिति से निपटने और मरीजों को परेशानी न हो, इसके लिए रिम्स प्रबंधन ने सभी सीनियर डॉक्टरों को ओपीडी में बैठने और मरीज देखने का निर्देश दिया है। मगर जूनियर डॉक्टरों ने कई ओपीडी बंद करा दी, तो कई में अकेले विभागाध्यक्ष ही बैठे हैं। वह भी मानते हैं कि 98% ओपीडी सेवाएं बाधित हैं, क्योंकि रेजिडेंट और जूनियर डॉक्टर ही रिम्स या किसी मेडिकल कॉलेज अस्पताल के रीढ़ होते हैं।

मांग पूरी होने तक हड़ताल
रेजिडेंट डॉक्टरों की हड़ताल की वजह से बीमार जनता परेशान है, तो रिम्स जूनियर डॉक्टर एसो. यानी JDA और रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन इसके लिए सरकार को जिम्मेवार ठहरा रही है। ओपीडी में डॉक्टर्स की मौजूदगी की बात करते हुए जेडीए रिम्स के उपाध्यक्ष डॉ. मृणाल ने कहा कि वह मजबूर होकर हड़ताल पर गए हैं। अब भी अगर मांग पूरी नहीं हुई तो हड़ताल जारी रहेगी।

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