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अरुणाचल प्रदेश में ऑस्‍ट्रेलियाई राजदूत के दौरे से चीन भड़का - श्रीनारद मीडिया

अरुणाचल प्रदेश में ऑस्‍ट्रेलियाई राजदूत के दौरे से चीन भड़का

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अरुणाचल प्रदेश पर चीन अपना अधिकार जमाता है, लेकिन दुनिया इससे भारत का अभिन्न हिस्सा के रूप में ही देखती है। रविवार को भारत  में ऑस्ट्रेलिया के राजदूत फिल ग्रीन ने अरुणाचल प्रदेश का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने अरुणाचल प्रदेश के सीएम प्रेमा खांडू से भी मुलाकात की।

फिल ग्रीन ने दौरे को लेकर क्या कहा?

ऑस्‍ट्रेलियाई राजदूत ने अरुणाचल प्रदेश का दौरा करने के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्‍स पर लिखा, ‘अरुणाचल प्रदेश में लैंड हुआ हूं। यह 18वां भारतीय राज्य है, जिसका मैंने अपने कार्यकाल के दौरान दौरा किया है। यहां सीखने और यह देखने के लिए आया हूं कि हम कैसे संबंधों को और गहरा कर सकते हैं। साथ ही मुख्यमंत्री प्रेमा खांडू के साथ नए सिरे से परिचय भी हुआ।’

मुमकिन है कि ऑस्ट्रेलिया के राजदूत के अरुणाचल दौरे पर चीन प्रतिक्रिया दे सकता है। बता दें कि चीन की नापाक चाल पर लगाम लगाने के लिए बने क्वाड समूह का ऑस्ट्रेलिया भी हिस्सा है।

अरुणाचल की एक चोटी के नामकरण पर भड़का था चीन

पिछले कुछ दिनों पहले जब भारतीय पवर्ताराहियों ने  अरुणाचल प्रदेश के एक पर्वत का नाम छठे दलाई लामा के नाम पर रखा तो चीन आग बबूला हो उठा। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग एंड एडवेंचर स्पोर्ट्स (NIMAS) की एक टीम ने अरुणाचल प्रदेश में 20,942 फीट ऊंची एक अनाम चोटी पर चढ़ाई की थी और इसे छठे दलाई लामा त्सांगयांग ग्यात्सो के नाम पर रखने का फैसला लिया। NIMAS रक्षा मंत्रालय के अधीन काम करता है। चीन ने इस फैसले पर नाराजगी जाहिर की थी। चीन इस राज्य को जंगनान कहता है।

चीन ने एक बार फिर अरुणाचल प्रदेश पर अधिकार जमाने की कोशिश की है। भारतीय पवर्ताराहियों ने  अरुणाचल प्रदेश के एक पर्वत का नाम छठे दलाई लामा के नाम पर रखा तो चीन आग बबूला हो उठा। चीन ने इस फैसले पर नाराजगी जाहिर की है।

NIMAS ने फतह की 21 हजार फुट की पहाड़ी चोटी

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग एंड एडवेंचर स्पोर्ट्स (NIMAS) की एक टीम ने अरुणाचल प्रदेश में 20,942 फीट ऊंची एक अनाम चोटी पर चढ़ाई की थी और इसे छठे दलाई लामा त्सांगयांग ग्यात्सो के नाम पर रखने का फैसला लिया। NIMAS रक्षा मंत्रालय के अधीन काम करता है।

रक्षा मंत्रालय के एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा,”छठे दलाई लामा के नाम पर पहाड़ी का नाम रखना उनकी अमर बुद्धिमत्ता और मोनपा समुदाय के प्रति उनके गहरे योगदान को सम्मानित करने के लिए है।”

कौन थे त्सांग ग्यात्सो?

बता दें कि  त्सांग ग्यात्सो का जन्म 1682 में मोन तवांग क्षेत्र में हुआ था। दलाई लामा रिग्जेन त्सांगयांग ग्यात्सो ने अरुणाचल प्रदेश के मोनपा समुदाय (Monpa community) के लिए काफी योगदान दिया है, जो पूर्वोत्तर भारत की एकमात्र खानाबदोश जनजाति है।

चीन ने क्या कहा?

जब इस मामले पर चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान से सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा, आप किस बारे में बात कर रहे मुझे इसकी जानकारी नहीं है।

उन्होंने कहा,”मुझे कहना चाहिए कि जंगनान (भारत का अरुणाचल प्रदेश) चीनी क्षेत्र है और भारत के लिए चीनी क्षेत्र में ‘अरुणाचल प्रदेश’ स्थापित करना अवैध है। वहीं, भारत लगातार चीन के दावों को निराधार बताता आया है। भारत ने कई बार साफ लफ्जों में कहा है कि अरुणाचल प्रदेश देश का अभिन्न अंग है।”

इससे पहले पीएम मोदी के अरुणाचल प्रदेश दौरे पर चीन ने आपत्ति जाहिर की थी। अरुणाचल प्रदेश के कई इलाकों का चीन ने नाम बदला है।

एक अंग्रेजी अखबार के मुताबिक, अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति को ध्यान में रखते हुए संभावित समाधान की रूपरेखा बनाई जा रही है। इसके साथ ही अरुणाचल प्रदेश के मुद्दे को भी हल करने पर दोनों देशों के बीच सहमति बनी है। गुरुवार को चीनी रक्षा मंत्रालय ने कहा कि चीन और भारत पूर्वी लद्दाख में गतिरोध को समाप्त करने के लिए सैनिकों को हटाने पर और मतभेदों को कम करने पर दोनों पक्ष बातचीत जारी रखने पर सहमत हुए हैं।

चीन के राष्ट्रीय रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता झांग ने कहा कि चीन और भारत दोनों बातचीत के माध्यम से अपने मतभेदों को कम करने के लिए सहमत हुए हैं। जल्द ही दोनों देश इस समस्या का समाधान निकाल लेंगे। झांग शियाओगांग ने कहा कि चीन और भारत ने राजनयिक और सैन्य चैनलों के माध्यम से एक-दूसरे के साथ संचार बनाए रखा है। इसमें बातचीत में भारत और चीन के विदेश मंत्री, भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और सीमा परामर्श तंत्र से जुड़े अधिकारी शामिल हैं।

रूस में ब्रिक्स बैठक

झांग ने विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच बैठक के साथ-साथ रूस में ब्रिक्स बैठक के दौरान वांग और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बीच हाल ही में हुई बैठक का भी उल्लेख किया। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने वांग और डोभाल के बीच वार्ता पर कहा कि दोनों देशों की अग्रिम पंक्ति की सेनाओं ने चीन-भारत सीमा के पश्चिमी क्षेत्र में चार क्षेत्रों में सैनिकों को पीछे हटा लिया है, जिसमें गलवान घाटी भी शामिल है।

विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि जब वह कहते हैं कि 75 प्रतिशत समस्या का समाधान हो गया है तो यह सिर्फ सेनाओं को पीछे हटाने के संदर्भ में है। अभी मुख्य मुद्दा गश्त का है। 2020 के बाद गश्त की व्यवस्था में छेड़छाड़ की गई है। गश्त के कुछ मुद्दे सुलझाना बाकी हैं। इसके बाद सैनिकों की संख्या कम करने का बड़ा मुद्दा है, दोनों देशों ने बड़ी संख्या में सैनिक सीमा पर तैनात कर रखे हैं। भारत-चीन के बीच 3,500 किलोमीटर की पूरी सीमा ही विवादित है।

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