चाइनीज मांझा अर्थव्यवस्था का धीमा जहर है,कैसे?
प्रतिबंध है मगर सब जगह उपलब्ध
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
चीन का बना हुआ मांझा निश्चित रूप से हम सबके लिए चिंता का विषय बना हुआ है। अक्सर देखा गया है की चीन में निर्मित मांझे की धार तेज करने के लिए कुछ घातक केमिकल का प्रयोग होता है जबकि पहले देश में मांझा बनाने के लिए अरारोट आदि का उपयोग होता था जो चीन के मांझे की तरह जानलेवा नहीं होते थे, लेकिन सस्ते के चक्कर में चीनी मांझा ज्यादा बिकने लगा है।
प्रतिबंध भी कारगर नहीं हैं। इनका पालन कराने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं और न ही कभी व्यापारी पतंग व पतंगबाजी का सामान बेचने वालों से सरकारी विभागों ने इस विषय में कोई सलाह मशवरा करने की जरूरत ही समझी। इस दृष्टि से यह आवश्यक है कि चीनी मांझे का प्रयोग राष्ट्रीय राजधानी में कतई न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए सरकार को अविलंब व्यापारियों से बातचीत कर प्रतिबंध को ठोस तरीके से लागू किया जाना चाहिए।
वहीं, व्यापारियों को भी चीनी डोर अथवा मांझे को न बेचने के प्रति संकल्पित होना पड़ेगा। अगर कोई बेचता है तो उसकी सूचना पुलिस को देनी चाहिए। जो लोग सस्ते में पतंगबाजी का शौक पूरा करने के लिए इसे खरीदते हैं, उन्हें भी जागरूक करना होगा। इसके लिए कारोबारी संगठनों को आगे आना होगा।
खत्म होता जा रहा घरों में तैयार होने वाला मांझा
यहां यह भी देखने की आवश्यकता है कि क्या चीनी मांझे के आयात को रोकने के लिए कहीं कानून में कोई कमी तो नहीं है। अगर ऐसा है तो पतंग के व्यापारियों से चर्चा कर सहमति बनाते हुए कानून को कठोर बनाना चाहिए। चीन से केवल वो ही सामान आयात हों जो भारत में बन नहीं रहे हैं। जो सामान हमारे देश में बन रहे हैं उनके आयात पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।
चीन से मंगवाया गया एक भी सामान देश के व्यापार और अर्थव्यवस्था के लिए धीमे जहर का काम करता है। यही हाल चीनी मांझे को लेकर भी है। मांझे का उत्पादन कुटीर उद्योग के तौर पर होता था। कई घरों में इसे तैयार किया जाता था। इससे काफी लोगों को रोजगार मिला हुआ था। चीनी मांझे के बढ़ते प्रचलन से मृत प्राय हो गया है। ऊपर से चाइनीज मांझा तो लोगों की जान ले रहा है।
इस मामले में यह समझने की आवश्यकता है कि चीन किसी न किसी बहाने से अपने उत्पाद भारत के बाजार में लादने के लिए कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ता है, ऐसे में न केवल सरकार बल्कि व्यापारियों को भी सजग रहना होगा। देश से ऊपर कुछ नहीं हो सकता है और इसलिए चीनी मांझे पर तुरंत कठोर प्रतिबंध न केवल लगाया जाए बल्कि उसका सख्ती से पालन भी करवाया जाना चाहिए।
पहले भी पतंग उड़ती थीं। कटती थीं, लूटते थे। पेंच लड़ाने में खींचतान होती थीं। पतंग लूटते यदा-कदा हादसे भी हो जाया करते थे। लेकिन अब ये मांझा खूनी बन गया है। राह चलते लोगों के गला काट रहा है चाइनीज मांझा। चीनी माल के बहिष्कार के तमाम दावे बहुत ही सतही निकले। कहने को चीनी मांझा उसकी घातकता के कारण प्रतिबंधि है लेकिन ये कैसा प्रतिबंध है कि सब जगह उपलब्ध है।
दिल्ली-एनसीआर में 15 अगस्त के अवसर पर पतंगबाजी के रूप में आसमान में एक तरह से पतंग के संग अरमानों के उड़ने का पर्व होता है। पहले देसी मांझा सूत के धागे और सरेस आदि से तैयार हो जाता था, लेकिन अब इससे कौन पतंग उड़ा रहा है अब तो महीन कांच में लिपटे चाइनीज मांझे से पतंग उड़ रही हैं जो कि राह चलते लोगों की गर्दन काट रहा है, पक्षियों को घायल कर रहा है।
यहां सवाल यह कि ये चीनी मांझा है क्या? जब इस पर प्रतिबंध है तो यह आ कहां से रहा है? और जानलेवा होने के बावजूद पतंगबाज इसका प्रयोग कैसे कर रहे हैं? पतंगबाजी अच्छा शौक है, लेकिन दूसरे के लिए घातक बन जाए यह कैसे शौक? चाइनीज मांझे की वजह से घटना हो चुकी हैं, इससे गला कटने की वजह से एक व्यक्ति की मौत तक हो गई है।
वर्ष 2017 में नेशनल ग्रीन टिब्यूनल (एनजीटी) ने चाइनीज मांझे के भंडारण व बिक्री पर प्रतिबंध लगाया था, जिसके बाद दिल्ली सरकार ने इसे लेकर अधिसूचना भी जारी की थी।
ऐसे में सवाल यही उठता है कि आखिर क्षेत्र में चाइनीज मांझे की बिक्री और भंडारण पर प्रभावी रोक क्यों नहीं लग पा रही है? प्रतिबंध के पांच साल बाद अब भी यह कैसे लोगों को आसानी से मिल जाता है? कैसे प्रभावी बने प्रतिबंध? क्या इसके लिए बनाए गए नियम-कानून कमजोर हैं, जिसका लाभ उठाकर दुकानदार इसका भंडारण या बिक्री करते हैं? इस तरह के तमाम सवाल है जिनका जवाब खोजना चाहिए। हम आपको इस खबर के माध्यम से ऐसी ही कुछ जानकारियों से अवगत करा रहे हैं।
रसायन और धातुओं के मिश्रण से तेज धार वाला चाइनीज मांझा आसानी से टूटता नहीं है। इसमें ब्लेड जैसी धार होती है। प्लास्टिक का बना होता है जो काफी मजबूत होता है। यह मेटालिक कोटिंग से तैयार किया जाता है। इलेक्ट्रिक कंडक्टर होता है, ऐसे में इससे करंट आने का खतरा भी रहता है।
धातु और रसायन
शीशा, वज्रम गोंद, मैदा फ्लाअर, एल्युमीनियम आक्साइड और जिरकोनिया आक्साइड आदि शामिल हैं।
यहां मिलता है
दिल्ली में हौजकाजी, लालकुआं, जाफराबाद, सदर बाजार, लाहौरी गेट, जामा मस्जिद, सीलमपुर, जहांगीरपुरी, जामिया नगर, ओखला, दरियागंज मे इसका बड़ा बाजार है।
दावा:
बाजार में चाइनीज मांझा नहीं मिल रहा है। नायलान व सिंथेटिक मांझे बिक रहे हैं। इन्हें कांच और धातु से शार्प किया जाता है। सूती मांझा आसानी से टूट जाता है। नायलान के मांझे को केमिकल से बनाते हैं धारदार और मजबूत।
मुसीबत:
सिर्फ सड़क से गुजर रहे लोगों के लिए ही घातक नहीं है बल्कि मेट्रो के आपरेशन में भी यह समस्याएं खड़ी करता है। अगर चाइनीज मांझा ट्रेन के पेंटोग्राफ में उलझ जाए तो उससे चिंगारी उठने लगती है। ऐसे में ट्रेन रास्ते में अटक जाती है।
मौत का मांझा
-25 जुलाई 2022 : हैदरपुर के पास फ्लाईओवर से गुजरे रहे बुलेट सवार कारोबारी सुमित रंगा की मांझा से गला कटने से मौत हो गई।
-26 जुलाई 2022 : पालम में मनोज नामक युवक के गले में मांझा फंसने से घायल हुआ। 18 टांके लगे
-14 अगस्त 2021 : नजफगढ़ में सौरभ दहिया बाइक से मंगोलपुरी फ्लाईओवर से उतर रहे थे। पतंग का मांझा उनके गले में फंस जाने से गला कट जाने से मौत हो गई।
पांच साल पहले
दिल्ली सरकार ने जनवरी 2017 में चीनी मांझे और पतंग उड़ाने के अन्य हानिकारक धागों को प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी।
सजा-प्रविधान
प्रतिबंध का उल्लंघन करने पर पांच साल तक की सजा या एक लाख रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
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