सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मशरक: भवन आलीशान, व्यवस्था नदारद

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श्रीनारद मीडिया, विक्‍की बाबा, मशरक, सारण (बिहार):

एक तरफ राज्य सरकार स्वास्थ्य व्यवस्था को लगातार सुदृढ करने का दावा कर रही है, जबकि हकीकत कोसों दूर है। सीएचसी मशरक में मैन पावर की कमी के चलते सारे दावे जमीन पर हवा-हवाई साबित हो रहे हैं। आलम यह है कि सरकारी अस्पतालों में धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टरों की संख्या काफी कम है। लिहाजा मरीजों का सही इलाज यक्ष प्रश्न बना हुआ है।

सीएचसी मशरक की पड़ताल की गयी, तो अस्पताल की बाहरी व्यवस्था के परे चीजे नजर आयी। ऐसा लगा कि यह अस्पताल सिर्फ भगवान भरोसे चल रहा है। यहां व्यवस्थाओं की कमी तो है ही डॉक्टरों और कर्मचारियों का घोर अभाव है। जिस अस्पताल में हर दिन 150 से 200 इलाज के लिए पहुंचते है वहां अगर कुव्यवस्था का दौर चल रहा है, तो समझा जा सकता है कि मरीजों का इलाज कैसे होता होगा।

अस्पताल के भवन को देखकर कोई यह नहीं कह सकता कि यह बेहतर अस्पताल नहीं है, लेकिन इसके भीतर प्रवेश करते ही कुव्यवस्थाओं की परतें खुलनी शुरू हो जाती है। आश्चर्य की बात तो यह है कि यहां ड्रेसर तक नहीं है। किसी भी घटना-दुर्घटना में घायल या जख्मियों के जख्मों का ड्रेसिंग ड्रेसर नहीं, बल्कि चतुर्थवर्गीय कर्मचारी करते है.

डॉक्टरों व कर्मचारियों का है घोर अभाव

यहां डॉक्टरों का 10 पद है, जिसमें चार एमबीबीएस एक आयुष, एक डेंटल पदस्थापित है। आश्चर्य तो तब होता है जब आयुष और डेंटल चिकित्सक के भरोसे ही अस्पताल चलाया जाता है। और इलाज व्यवस्था इनके जिम्मे होती है तो रेफर करने का रिकार्ड बनाया जाता है।

मरीजों के जान के साथ होता है खिलवाड़

सीएचसी पर लाखों मरीजों का भार है। नगर पंचायत से लेकर प्रखंड के सभी गांवों से मरीज यहां इलाज कराने पहुंचते है।छपरा मशरक एस एच 90 और एन एच 227 ए राम जानकी पथ हाइवे होने के कारण घटना-दुर्घटना होती रहती है और घायल-जख्मी पहुंचते रहते है. जिस अस्पताल पर लाखों लोगों का भार है उस अस्पताल में अल्ट्रासाउंड, ईसीजी मशीन की व्यवस्था नहीं है। एक्सरे की सुविधा है, लेकिन सिर्फ कागजों में। समझा जा सकता है कि इस अस्पताल का मालिक भगवान ही है।घटना-दुर्घटना की स्थिति में यह अस्पताल रेफर सेंटर बन जाता है। सिर्फ प्राथमिक उपचार के नाम पर यहां दुर्घटनाओं में जख्मी हुए लोगों को लाया जाता है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी कुव्यवस्थाओं को दूर करने का प्रयास भी नहीं कर पा रहे है। बस एक ही रट लगी रहती है कि संसाधन के अनुसार कार्य हो रहा है।

 

अस्पताल में प्रतिदिन मरीजों की काफी भीड़ लगी रहती है।मरीजों की इस भीड़ के आगे डॉक्टर भी खुद को लाचार महसूस करते हैं। उन्हें मरीजों का नब्ज टटोलने की फुर्सत नहीं मिल पाती है। नाम न छापने की शर्त पर एक चिकित्सक कहते हैं कि केवल मरीजों की मुंहजुबानी बीमारी सुनकर दवा के लिए सलाह देनी पड़ती है। इससे खुद को भी संतोष नहीं मिलता है और अपने पेशे के साथ न्याय नहीं कर पाते हैं। मजबूरी भी है, आखिर सभी मरीजों की समस्या तो सुननी ही है। इन परेशानियों के बीच मरीज भी खुद को ठगा महसूस करते हैं।

गरीब मरीजों की रहती है जबरदस्त भीड़

ऐसी बात नहीं है कि बेहतर स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर मरीज सरकारी अस्पताल पहुंच रहे हैं। अधिकांशत: गरीब मरीज ही सरकारी अस्पतालों की शरण ले रहे हैं। आर्थिक रूप से मजबूत लोग तो निजी अस्पतालों में जाना बेहतर समझते हैं, लेकिन गरीब जाएं तो कहां। प्राइवेट अस्पतालों में इलाज कराने पर काफी खर्च होता है, लिहाजा गरीब मरीजों के समक्ष सरकारी अस्पताल जाने की मजबूरी है। मरीजों ने बताया कि एक ही कमरें में रजिस्ट्रेशन काउंटर और दवा वितरण काउंटर से बड़ी परेशानी होती है। नम्बर लगाना तो पहाड़ के सामान है।

प्रभारी डॉ संजय कुमार से जब जानकारी ली गई तो उन्होंने बताया कि चिकित्सकों और कुछ पदों पर कर्मी की कमी के चलते परेशानी हो रही है। इसको लेकर विभागीय स्तर पर पत्राचार भी किया गया है। वैकल्पिक व्यवस्था के आधार पर चिकित्सकों से कार्य लिया जा रहा है।

 

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