महान मंगोलों, तुर्कों, मुगलों एवं अफगानों का भारत की कला, संस्कृति एवं विज्ञान में योगदान।
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
नमस्कार!
मैं ………….प्राइम टाइम में आपका स्वागत है। आज हम कुछ अलग बात करेंगे। अब बहुत हो गया मज़ाक-ओजाक। अाज हम पूरे तथ्यों, तर्कों एवं सबूतों के साथ बात करने वालें हैं कि कैसे भारत के लोगों ने बाहरी आक्रांताओं के साथ कितनी ज्यादतियां की, अत्याचार किए,उन्हें लुटेरा,बलात्कारी एवं खून का प्यासा बताया गया। फिर भी वे शांत रहे- बिल्कुल संतों जैसी निर्मलता थी उनके चेहरे पर।
आइए शुरूआत अपने सबसे अजीज़ मुहम्मद बिन कासिम जी से करते हैं जो पहली बार सिंध के राजा दाहिर सेन के यहाँ हमले किए क्योंकि दाहिर ने मुहम्मद साहब के रिश्तेदारों को शरण दी थी। दाहिर एक ब्राह्मण वंश के राजा थे।इसलिए बिन कासिम को गैर-ब्राह्मणवादी आंदोलन का प्रथम विचारक कह सकते हैं। बाद में दाहिर की दो लड़कियों का अपहरण कर बिन कासिम अपने गुरू की सेवा में भेजे थे। यह सुनकर आपके दिल को कितना शकुन मिलेगा कि एक आज्ञाकारी शिष्य इतना कल्लेआम करने के बाद भी गुरू के प्रति कितना समर्पित है। अब दाहिर सेन की बच्चियों का क्या कहें? अपनी इज्जत बचाने को झूठ बोली।
तो …
असली बात यह है कि भारत में गैर-ब्राह्मणवाद जैसी विचारधारा एवं गुरू-शिष्य परम्परा के प्रतिपादक श्रीमान् मुहम्मद बिन कासिम जी हीं तो थे। और सबसे बड़े आश्चर्य की बात कि वो एडोलेसेंट या अल्पवयस्क थे। अत: बाबा साहब के संविधान के अनुसार वे जुवेनाइल एक्ट में छुट जाते। अब यहां के काफिरों का क्या करें? बना दिया कासिम जी जैसे परोपकारी विजेता को विलेन।
…..ऐसे हीं भारत में कभी लिखने-पढ़ने की परम्परा तो रही नहीं। भारतीयों को सबसे पहले पढ़ना-लिखना सिखाया अपने बख्तियार पुर वाले श्री बख्तियार भाई खिलजी ने। वो पढ़ना चाहते थे और अपने घुड़सवार सिपाहियों के साथ ज्ञान की खोज में निकले थे। नालंदा पहुंचने पर उनको एक बड़ी सी लाइब्रेरी दिखी। लाइब्रेरियन से इजाजत लेकर वे रोज लाइब्रेरी मेें आते, पढ़ते और चले जाते। एक दिन लाइब्रेरी में लाइट की व्यवस्था नहीं थी तो वे ढिबरी जलाकर पढ़ने लगे।
इतने में तभी पलक झपकी और हाथ से टकरा कर ढिबरी गिर पड़ी और ….लाइब्रेरी में आग लग गई। सारी पुस्तकें जल गईं। श्री बख्तियार जी के आदमी घोड़े पर सवार होकर बख्तियार जी को संकट से बचाने के लिए ऐसे दौड़े जैसे सर्किट, मुन्ना भाई को मुसीबत में पाकर दौड़ता हैं। एक तो अंधेरा, उपर से आग और फिर ऐसी दौड़ा-दौड़ी। कुछ का मरना स्वाभाविक है। मतलब बख्तियार जी तो स्व अध्याय के पुरोधा निकले।
वैसे हीं माननीय श्री महमूद गजनवी जी अगर अफगान से नहीं आते तो हम तर्कशील न बनते। उन्होंने सतरह बार सोमनाथ पर हमले यहीं तो सिद्ध करने के लिए किए थे कि वहां भगवान शिव हैं या नहीं। अब आप उन्हें जो कहना हो कहें? वैसे एक काफिर से उम्मीद हीं क्या कर सकते हैं हमलोग? इसका मतलब गजनवी जी महान सत्यान्वेषी एवं सिद्ध चिंतक थे जिन्होंने भारत को तर्क के साथ सोचना सिखाया। वे तर्कशील एवं साइंटिफिक टेंपरामेंट के जनक थे।
मुहम्मद गोरी जी भी गजनवी जी की हीं परम्परा के विद्वान थे जो आई-सर्जन बनकर भारत आए थे- भारतीयों के आंख का इलाज करने। अब उस समय के काफिर इतिहासकार बताते हैं कि वे धोखे से पृथ्वीराज चौहान की आंख निकलवा लिए थे। यह गलत बात है। वे तो पृथ्वीराज की आंखों का ऑपरेशन कर रहे थे। इसी बीच चंद्र वरदाई नाम के किसी काफिर ने पृथ्वीराज की कान भर दी। अब बिना आंखों वाले पृथ्वीराज ने बस इशारे पर हीं वाण मार कर गोरी जैसे महान चिकित्सक की हत्या कर दी। यह तो बड़ा ज़ुल्म हुआ। काफिर को जालिम भी कहते हैं। गोरी जी आंख के डॉक्टर के रूप हमेशा अमर रहेंगे।
….अगर शब्द का सही जानकार कोई था तो श्री तैमूर जी थे जिन्हें उनके मित्र प्यार से लंग यानि लंगड़ा कहकर बुलाते थे। फिर भी वो बुरा नहीं मानते थे एवं किसी को इस बात के लिए फोर्स नहीं किया कि लंगड़ा के बदले उन्हें उन्हें फीजि़कली चैलेंज्ड कहा जाए। दुनियां में इन्क्लूसिव एजुकेशन पर जोर देने वाले वे पहले महान आत्मा थे। इन्होंने हीं तो भारत को सहिष्णु होना सिखाया था।
अब यहां काफिर उन्हें कत्ल या नरसंहार का दोषी बता दिए लेकिन इसके मूल में नहीं गए। मूल बात यह थी कि वे शब्दों के वैज्ञानिक थे। एक तरह से वर्डस्मिथ। वो कत्ल किए नहीं, कत्ल तो बस हो गया। ….कत्ल करने के बाद वो ….गाज़ी कहलाए।…अर्थात वे जबतक गैर-मज़हबी लोगों, उनके बच्चों का कत्ल न करते ….गाजी़ नहीं कहलाते। कत्ल करके बच गए तो गाज़ी हो गए, मारे जाते तो शहीद होते। अब ये दो शब्द कितने किमती हैं हमारे लिए? ये तो हमारे जैसा निष्पक्ष पत्रकार हीं समझ सकता है।
….उसी तरह से हमारे देश का LGBT समुदाय श्री अलाउद्दीन खिलजी साहब का सदा ऋणि रहेगा। मलिक काफूर जैसे हिजड़े को अपनाकर उन्होंने भारतीयों को मेल, फीमेल एवं ट्रांसजेंडर में विभेद न करने का परम एवं दुर्लभ ज्ञान दिया। अगर श्रीमान् खिलजी साहब भारत में न आते तो आज जो भारतीय संविधान के प्रस्तावना में ‘समानता’ शब्द है, वो कहां से रहता? अगर समानता हीं नहीं तो लोकतंत्र कैसा? खिलजी साहब लोकतंत्र में समानता के सिद्धांत के प्रथम नायक हैं।
…..अब भारत में धीरे-धीरे ज्ञान का प्रसार होने लगा था। अभी तक भारत में मात्र एक हीं क्षेत्र के विशेषज्ञ आए थे। देश की धरती पहली बार सोना उगली जब महान वैज्ञानिक, दार्शनिक एवं भवन कला विशेषज्ञ जहीरूद्दीन बाबर ने भारत में कदम रखा। युद्ध जीतने के लिए साम, दाम, दण्ड, भेद का प्रथम ज्ञान भारतीयों को बाबर जी से हीं मिला।
बाबर जी ने हीं अयोध्या की खोज की और भगवान श्रीराम के बारे में भारतीयों को बताया। बाबर जी हीं अपने साथ सेहरा में तैरने वाले आफ़ताब को मुल्क-ए-हिंद की ज़मी पर उतार लाए जिसे काफिरों ने सूरज या सूर्य नाम दिया। बाबर जी ने हीं हमें इंसानों की तरह जीना सिखाया और थियरी ऑफ ईवोल्यूशन पढ़ाकर हमें वेद, उपनिषद एव्ं दर्शन जैसी दुरूह विद्या को आसान भाषा में समझाया।
…..और जलालुद्दीन अकबर तो इतने महान….इतने महान कि पहली बार हमें बताया कि महिलाओं पर चोरों की तरह छुपकर उनपर गंदी नज़र डालो और जब कोई महिला महारानी दुर्गावती बन जाए तो पैर पकड़ कर जान की भीख मांगने लगो। मतलब प्रथम फेमिनिस्ट कोई था तो श्री अकबर जी थे। ऐसे परम ज्ञान से भारतीय बिल्कुल वंचित रहते। अब काफिर जो ठहरे। श्री अकबर जी ने हीं बताया कि तमाम कुकर्म एवं निकृष्ट आचरण के बावजूद अपने को महान कैसे बनाए रखना है।
और जो सबसे छूट गया उसे पूर्णता प्रदान की हम सबके प्रेरणापुंज आलमगीर श्री औरंगजेब जी ने। भाई का सर कलम कर उसे किस तरह लिफाफे में बंद किया जाएगा और उस लिफाफे को जेल में कैद पिता के हाथों पर कितने भार, गति एवं त्वरण के साथ रखा जाएगा, ऐसे गणित एवं फीजिक्स के मिश्रित ज्ञान वाले संत विरले हीं मिलते हैं। वे औरंगजेब जी हीं थे जो हमें काशी के बारे में बताए कि बनारस बाबा विश्वनाथ के त्रिशूल पर टिका है।
वरना गंवार भारतीय तो यहीं जानते थे कि त्रिशूल एक अमिताभ बच्चन की फिल्म है जिसकी पटकथा सलीम-जावेद ने लिखी है। श्री औरंगजेब जी का कानूनी दस्तावेज, फतवा-ए-आलमगिरी से हीं तो पूरी दुनियां में कानून का राज स्थापित हुआ। हमारा संविधान बना। संस्कृत सहित कई भारतीय भाषाओं का विकास हुआ वरना इन भाषाओं की हालत तो राज्य सरकार के प्राथमिक शिक्षा में कभी पढ़ाए जाने वाले मनोहर पोथी की थी।
……अत: आप सुधि जनों से साग्रह निवेदन है कि ऐसे कई महान विचारकों को जिसे काफिर आक्रांता कहते हैं, उन्हें पढ़े एवं भारत में उनके महान कृत्यों की गाथा को अपने बच्चों एवं छात्रों को सही-सही बताएं। भारत को असहिष्णु होने से
बचाएं।
मिलते हैं अगले एपिसोड में।
आभार–पुष्पेन्द्र कुमार पाठक
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