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सूप बजा कर घरों से खेदा जायेगा दलिदर - श्रीनारद मीडिया

सूप बजा कर घरों से खेदा जायेगा दलिदर

सूप बजा कर घरों से खेदा जायेगा दलिदर

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सुपवा बाजी दलीदर भागी

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क


हमारा देश कृषिप्रधान देश है, अतीत में तो पूर्णरूपेण रहा है। हमारे अनेक त्योहार और परंपराएं कृषि आधारित हैं।उन्हीं में से एक परंपरा है दलीदर खेदना (दरिद्रता भगाना)। खेतों से खलिहानों में आकर फसलों में से जब अनाज निकल जाता है तब से लेकर अनाजों के चूल्हे पर पकने से पहले तक सुप की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।अनाजों को खलिहान से लेकर रसोई घर तक सूपों से गुजरना होता था/है।अब मशीनें इसका कार्य बखूबी कर देतीं हैं। जाहिर है किसी के भी घर सुप के अधिक बजने का मतलब अधिक अनाज के होने से या कहें अधिक सम्पन्न होने से होता था।

अतः अतीत में कभी सुप बजा कर धन की देवी लक्ष्मी,और देवता कुबेर को बुलाने औऱ दलीदर को भगाने की परंपरा शुरू की गई । यद्यपि आज की संपन्नता का सूप से वो पहले वाला अन्योन्याश्रय संबंध नहीं है ,फिर भी वह परंपरा कमोबेश आज भी जारी है।
इस परंपरा के निर्वहन में कुछ लोगों का तर्क होता है कि पहले दरिद्रता (दलिदर)को भगा कर तब लक्ष्मी का स्वागत करना चाहिए अतः वे लोग दीपावली के एक दिन पूर्व दलिदर खदेड़ते हैं।कुछ लोगों का मत है कि लक्ष्मी के साथ दरिद्रता(दलिदर)भी आती है जिसे भगाने का उपक्रम करना चाहिए अतः वे लोग दीपावली के बाद ऐसा करते हैं।

अलग अलग जगहों पर अपनी अपनी भाषा अलग अलग दरिद्रता भगाने (दलिदर खेदने)के वाक्य( मंत्र)हुआ करते हैं। कम होते हुए,अपना रूप बदलते हुए भी यह परंपरा आज भी जारी है।

दीपावली में धन की देवी लक्ष्मी के आगमन के बाद पौ फटने से पहले ही बांस की सूप बजा कर घरों से दरिद्र को बाहर किया जायेगा। सुबह चार बजे महिलाएं घर को दरिद्रता से दूर रखने के लिए बांस की सूप को घर के कोने-कोने में बजाया जायेगा। सदियों से चल आ रही इस परंपरा के अनुसार सूंप बजाकर दरिद्र भगाने का संबंध सुख समृद्धि से जोड़ा गया है। शास्त्रों में वर्णित श्लोक -शेष रात्रौ दरिद्रा निहिषार्णम, हमारी विशिष्ट परंपरा का बोध कराता है।

इस परंपरा का पालन न जाने कब से लोग करते चले आ रहे है।  दीपावली के दिन जब घर में लक्ष्मी आ जाएं तो दरिद्र को घर से बाहर भगा दिया जाए। इसके बाद ही स्थाई रुप से लक्ष्मी का घर में वास हो पाता है। तमाम उदाहरण ऐसे में मिले है कि जिससे यह परंपरा लोगों के मन में विराट रुप से स्थापित है।

वेदाचार्य पंडित किशोर उपाध्याय ने बताया कि भारत ऋषि और कृषि प्रधान देश है। दोनों के सामंजस्य के बिना सुख की कामना नहीं पूर्ण होती। बांस के बने सूंप को बजाकर दरिद्र भगाने के पीछे कई तर्क है। शास्त्र सूंप को वनस्पति मानता है। मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक बांस का तारतम्य बना हुआ है। सूंप का अर्थ समृद्धि को ग्रहण कर अशुद्धि और दरिद्रता को छांटना है। इसी मान्यता के तहत महिलाएं इस परंपरा का पालन करती है। उन्होंने बताया कि ऋग्वेद में इस परंपरा का उल्लेख मिलता है।

कथा के क्रम में यह बात लिखी गई है कि लक्ष्मी और दरिद्र दोनों सगी बहनें थी। लेकिन दोनों का एक साथ निवास नहीं होता। परंपरा विरोधी तत्वों को धारण करने वाली दोनों बहनों के विषय में कहा गया है कि एक के रहने पर दूसरी बहन का प्रवेश एक स्थान पर नहीं होता। दरिद्रा को ज्येष्ठा भी कहा जाता है। दरिद्रा शाम होते ही पीपल, पाकड़, केले के पेड़, गूलर, कांटेदार व दूधयुक्त वृक्ष का आश्रय लेती है। इसलिए इन वनस्पतियों को घर के सामने नहीं लगाने का निर्देश शास्त्र देता है।

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