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सीवान के मैरवा में दीन बाबा का राजेंद्र कुष्ठाश्रम कुष्ठ रोगियों के लिए सुरक्षित पनाह स्थल था - श्रीनारद मीडिया

सीवान के मैरवा में दीन बाबा का राजेंद्र कुष्ठाश्रम कुष्ठ रोगियों के लिए सुरक्षित पनाह स्थल था

सीवान के मैरवा में दीन बाबा का राजेंद्र कुष्ठाश्रम कुष्ठ रोगियों के लिए सुरक्षित पनाह स्थल था

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डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने 1955 में राजेंद्र कुष्ठाश्रम का शिलान्यास किया था

राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने सर्जरी विभाग का 1981 में शिलान्यास किया था

दीन बाबा जयंती पर विशेष आलेख

✍️ डॉक्टर गणेश दत्त पाठक

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बिहार में सीवान के महान विभूतियों राजेंद्र बाबू, ब्रजकिशोर बाबू, मौलाना मजहरूल हक साहब के बारे में हम लोग अकसर सुनते रहते हैं।लेकिन सीवान में एक कर्मयोगी ऐसे भी रहे, जिन्होंने अपने प्रयासों से कुष्ठरोगियों की सेवा में मिसाल कायम कर पीड़ित मानवता की सेवा में इतिहास में अपना और सीवान का नाम दर्ज कराया। जी,हम बात कर रहे हैं जगदीश तिवारी उर्फ दीन बाबा की, जिन्होंने राजेंद्र कुष्ठाश्रम,मैरवा का कार्यभार 1954 से 1973 तक संभाला।

उनके नेतृत्व में राजेंद्र कुष्ठाश्रम मैरवा में कुष्ठ रोगियों के लिए इलाज की अच्छी व्यवस्था होने के साथ उनके रोजगार की व्यवस्था के लिए प्रशिक्षण आदि देकर उन्हें अपने पैरों पर भी खड़ा किया जाता था। राजेंद्र कुष्ठाश्रम की प्रतिष्ठा ऐसी रही कि इसके भवन का शिलान्यास करने 1954 में देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद आए तो सर्जरी भवन का शिलान्यास करने 1981 में राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी आए।

लेकिन दीन बाबा के निधन के बाद राजेंद्र कुष्ठाश्रम वर्तमान में अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है किसी को उसकी परवाह भी नहीं है। दीन बाबा के कार्यकाल में राजेंद्र कुष्ठाश्रम, मैरवा देश के सबसे बड़े कुष्ठाश्रम के तौर पर जाना जाता था। 1976 में यह ट्रेनिंग सेंटर भी बना था। अपने 19 साल के कार्यकाल के दौरान दीन बाबा ने यहां नौ एसईटी सर्वे एजुकेशन ट्रिटमेंट यूनिटों की स्थापना करवाई। उस समय देश के बड़े समाजसेवी मसलन बाबा आमटे आदि यहां हो रही पीड़ित मानवता की संवेदनशील सेवा से प्रेरणा लेने मैरवा आया करते थे।

गौरतलब है कि राजेंद्र कुष्ठाश्रम, मैरवा, जो बिहार राज्य के सिवान जिले के मैरवा प्रखंड में हरिराम ब्रह्म स्थल से एक किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। इसकी स्थापना कुष्ठरोगियों की सेवा के लिए परमहंस बाबा राघव दास द्वारा की गई थी। इसका रजिस्ट्रेशन 11 नवंबर, 1954 को सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 के अनुसार हुआ था। इसकी स्थापना के समय समिति संरक्षक डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, डॉक्टर अनुग्रह नारायण सिंह, उपाध्यक्ष, जिलाधिकारी सारण, सचिव जगदीश तिवारी उर्फ दीन बाबा सहित कुल 23 सदस्य समिति में थे।

राजेंद्र बाबू इस कुष्ठाश्रम से विशेष स्नेह रखते थे। 27 अक्टूबर 1955 को देश के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने यहां पहला भवन अनुग्रह कुष्ठ चिकित्स भवन का शिलान्यास किया, जो आज भी मौजूद है।

मालूम हो कि कुष्ठ रोग एक सदियों पुरानी बीमारी है और प्राचीन सभ्यताओं के साहित्य में इसका वर्णन किया गया है। यह एक दीर्घकालिक संक्रामक रोग है जो माइकोबैक्टीरियम लेप्री नामक एक प्रकार के बैक्टीरिया के कारण होता है । यह रोग त्वचा, परिधीय तंत्रिकाओं, ऊपरी श्वसन पथ की श्लेष्मा झिल्ली और आँखों को प्रभावित करता है। कुष्ठ रोग का इलाज संभव है और शुरुआती चरणों में उपचार से विकलांगता को रोका जा सकता है। शारीरिक विकृति के अलावा, कुष्ठ रोग से प्रभावित लोगों को कलंक और भेदभाव का भी सामना करना पड़ता है।

राजेंद्र कुष्ठाश्रम , मैरवा का कार्यभार दीन बाबा ने 1954 से 1973 तक संभाला लेकिन जब तक वे जीवित रहे कुष्ठाश्रम के प्रति समर्पित रहे। उनके नेतृत्व में इस कुष्ठाश्रम ने सेवा क्षेत्र में विशिष्ट प्रतिष्ठा हासिल की। यहां पर कुष्ठरोगियों के इलाज के लिए तकरीबन 120 बेड उपलब्ध थे। इस कुष्ठाश्रम के पास अपना ब्लड बैंक तक हुआ करता था।यहां कुष्ठरोगियों की गुणवत्तापूर्ण सेवा होती ही थी।

साथ ही, उन्हें रोजगारपरक प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाता था। स्थानीय बुजुर्गजन बताते हैं कि कुष्ठ रोगियों को रोजगार देने के लिए कई छोटे उद्यम भी आस पास स्थापित थे, जिसमें हस्तकला, ऊन, बुनाई, प्लास्टिक कॉम्प्लेक्स, सिलाई, कढ़ाई, वेडिंग, मोमबत्ती, पुस्तिका निर्माण, कृषि औजार निर्माण, पत्तल, कटोरी निर्माण आदि प्रमुख थे। उस समय राज्य, केंद्र शासन, अपने उद्योग धंधे, विश्व स्वास्थ्य संगठन आदि विभिन्न स्रोतों से कुष्ठाश्रम को आय हो जाया करती थी। दीन बाबा के नेतृत्व में उस समय जब कुष्ठ रोगियों की छाया से लोग भागा करते थे और भिक्षाटन ही उनकी आजीविका का आधार होती थी।

उस समय कुष्ठ रोगियों के इलाज और उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने में राजेंद्र कुष्ठाश्रम, मैरवा दीन बाबा के नेतृत्व में इतिहास रच रहा था और पीड़ित मानवता की सेवा में सीवान की प्रतिष्ठा में चार चांद लगा रहा था। स्थानीय बुजुर्गजन बताते हैं कि दीन बाबा बेहद सरल, सहज स्वभाव के परन्तु एक सख्त और समर्पित प्रशासक भी थे। दीन बाबा कुष्ठाश्रम कार्यभार से मुक्त होने के बाद भी आश्रम के प्रति समर्पित रहे। 1981 में तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी सर्जरी भवन का शिलान्यास करने आश्रम में आए। 1984 में प्रसिद्ध समाजसेवी, बाबा आमटे यहां आए।

25 अक्टूबर 1987 को दीन बाबा के देवलोक गमन के साथ ही राजेंद्र कुष्ठाश्रम, मैरवा तबाह होने लगा। आज पूरी तरह तबाही के कगार पर पहुंच चुका है। कारण प्रशासनिक उदासीनता हो या राजनीतिक अनदेखी लेकिन सत्य यह है कि पीड़ित मानवता की सेवा का महान स्थल को आज देखकर महान कर्मयोगी दीन बाबा की आत्मा विचलित अवश्य हो रही होगी। राजेंद्र कुष्ठाश्रम, मैरवा के जीर्णोद्धार का संजीदा प्रयास ही दीन बाबा को सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है।

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