डेंगू ज्वर आजकल एक विकराल समस्या के रूप में उभर रहा है- डॉ अनुपम आदित्य

डेंगू ज्वर आजकल एक विकराल समस्या के रूप में उभर रहा है- डॉ अनुपम आदित्य

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

डेंगू ज्वर आजकल एक विकराल समस्या के रूप में उभर रहा है । सम्पूर्ण भारत देश में इसका आयुर्वेदिक उपचार उपलब्ध है तथा वह भी इतना सरल और सस्ता कि उसे कोई भी अपना सकता है l यह एक विषाणु जनित रोग है । इस रोग में तेज बुखार, जोड़ों में दर्द तथा माथे में दर्द होता है ।

डेंगू बुखार के तीन प्रकार :-
१. क्लासिकल अर्थात साधारण डेंगू बुखार
२. डेंगू हॅमरेजिक बुखार (डीएचएफ)
३. डेंगू शॉक सिंड्रोम (डीएसएस)
क्लासिकल अर्थात साधारण बुखार :
यह एक स्वयं ठीक होने वाली बीमारी है तथा इससे मृत्यु नहीं होती है लेकिन यदि (डीएचएफ) तथा (डीएसएस) का तुरन्त उपचार शुरू नहीं किया जाता है तो वे जानलेवा सिद्ध हो सकते हैं । इसलिए यह पहचानना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि बीमारी का स्तर कैसा है ।
विशेष लक्षण :
१. ठंड के साथ अचानक तीव्र ज्वर होना ।
२. सिर, मांसपेशियों तथा जोड़ों में दर्द होना ।
३. आँखों के पीछे दर्द होना ।
४. अत्यधिक कमजोरी लगना ।
५. अरुचि होना तथा जी मिचलाना ।
६. उल्टियाँ लगना ।
७. मुँह का स्वाद खराब होना ।
८. गले में हल्का सा दर्द होना ।
९. त्वचा का शुष्क हो जाना ।
१०. रोगी स्वयं को अत्यन्त दुःखी व बीमार महसूस करता है ।
११. शरीर पर लाल ददोरे (रैश) का होना शरीर पर लाल-गुलाबी ददोरे निकल सकते हैं । चेहरे, गर्दन तथा छाती पर विसरित दानों की तरह के ददोरे हो सकते हैं । बाद में ये ददोरे और भी स्पष्ट हो जाते हैं ।
१२. रक्त में प्लेटलेटस की मात्रा का तेज़ी से कम होना इत्यादि डेंगू के कुछ लक्षण हैं । जिनका यदि समय रहते इलाज न किया जाए तो रोगी की मृत्यु भी सकती है l
लाक्षणिक उपचार :
यदि रोगी को साधारण डेंगू बुखार है तो उसका उपचार व देखभाल घर पर भी की जा सकती है । चूँकि यह स्वयं ठीक होने वाला रोग है इसलिए केवल लाक्षणिक उपचार ही चाहिए ।
पेरासिटामॉल की गोली या सिरप से ज्वर को कम करना चाहिए । रोगी को डिस्प्रीन या एस्प्रीन कभी नहीं देनी चाहिए । यदि ज्वर 102 डिग्री फा. से अधिक है तो ज्वर को कम करने के लिए हाइड्रोथेरेपी अर्थात जल चिकित्सा को ही अपनाना चाहिए ।
यदि आपके किसी भी जानकार को यह रोग हुआ हो और खून में प्लेटलेट की संख्या कम होती जा रही हो तो निम्न चीजों का रोगी को सेवन करायें :
१) अनार का जूस
२) गेंहूँ के ज्वारे का रस
३) पपीते के पत्तों का रस
४) गिलोय/अमृता/अमरबेल सत्व अथवा रस
५) घृत कुमारी ( एलोवेरा ) स्वरस
६) बकरी का दूध
७) किवी फल का अधिक सेवन
८) नारियल पानी का अधिक सेवन
विशेष :.
इस के बचाव के लिए कुछ आयुर्वेदिक औषधियाँ अपने निकटतम आयुर्वेद चिकित्सक की देख -रेख में सेवन कर इन बीमारियों से बचा जा सकता हैं।
A.
1.महारास्नादि क्वाथ।
2.दशमूल क्वाथ।
3.गोजिह्वादि क्वाथ।
तीनों को समान मात्रा में मिलाकर रख लेवे।
ये क्वाथ आयुर्वेदिक दवाइयों के स्टोर पर आसानी से मिल जाते हैं,
इस संमिश्रण मे से 5ग्राम (एक टी स्पून ) लेकर उसमें,
एक लौंग,एक इलायची, दो कालीमिर्च, एक छोटा टुकडा अदरक, गिलोय की टहनी (लगभग 6 सेमी.), को 200एम. एल. पानी में उबाल कर आधा शेष रहने पर छान कर पीवे। स्वाद के लिए थोड़ी मिश्री डाल सकते हैं। इस क्वाथ को दिन में दोबार बनाकर लेवें।
B.
1. नीम गिलोय की टहनी (लगभग 6 सेमी.)
2.पपीते के पत्ते
का ताजा रस 10-10 एम. एल. निकाल कर छान कर पीवें।
C.
1. नीम के 2 – 4 पत्ते
2. तुलसी के 2- 4 पत्ते
3. 2ग्राम हल्दी पाउडर
4. अदरक की एक टुकड़ी।
5. पांच मुनक्का दाख
6. एक टुकड़ी गिलोय। की टहनी (लगभग 6 सेमी.)
सभी द्रव्यो को कूट ले। सभी द्र्व्यो को 100 एम. एल. पानी में उबाल कर छान कर गुनगुना -गुनगुना पीवे। दिन में दो बार लेवें।
D.
1.पांच मुनक्का दाख
2.दो ग्राम सोंठ
3.दो कालीमिर्च
4.एक छोटी इलायची
5.दो ग्राम मिश्री।
मुनक्का को कुछ समय भिगोकर बीज निकाल कर अन्य द्र्व्यो के साथ कूट कर 100 एम. एल. पानी में उबाल कर छानकर दिन में दो बार लेवें।

इन सभी प्रयोगों में से कोइ एक या दो प्रयोग योग्य आयुर्वेद चिकित्सक की देख रेख में लेवें।

आयुर्वेदिक औषधियाँ योग्य आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह से ले सकते हैं। इन औषधियों को चिकित्सक रोगी, रोग, वय, बल, के अनुसार निरधारित करता है साथ ही चिकित्सक द्वारा बताए पथ्य का सेवन करना आवश्यक हैं।
E.
1.संजीवनी वटी
2.आन्दभैरव रस
3.त्रिभुवनकीर्ती रस
4.हरिताल गोदन्ती भस्म
5. कस्तुरी भैरव रस
6.सर्व ज्वरहर लौह
7.गिलोय सत्व
8.पुट पक्व विषम ज्वरान्तक लौह
9.महासुदर्शन घन वटी
10. करंजादि वटी
11.संशमनी वटी
इनऔषधियों मे से कोइ एक या अधिक का मिश्रण आयुर्वेद चिकित्सक के परामर्श से मात्रा निरधारित करा कर विधिपूर्वक लेने से सभी ज्वरो का नाश होता है।
F.
ऐसे मौसम में खान पान मे भी सावधानी रखे।
सादा सुपाच्य भोजन करना चहिए।
ताजा फल ( चीकू ,पपीता ,अनार ,सेव,)
दूध अदरक ,इलायची,मुलेठी,आदि मे उबाल कर लेवे।
टिण्डे, तुरही, परवल, लौकी, आदि सब्जियाँ व मूंग की पतली दाल लेवें।
पानी उबाल कर ठण्डा कर पीवें।
G.
अपने आस पास के परिसर की साफ सफाई का विशेष ध्यान रखे।
पानी इकठा नही होने देवें। मच्छरों से अपना बचाव करें।
H.
मच्छरों एवं अन्य कीटों से रक्षा के लिए
कपूर 5 ग्राम ,गुग्गुलु 20 ग्राम, लौहबाण 5 ग्राम,
नीम के पत्ते 100 ग्राम,
प्राकृतिक धूम(धूप) से परिसर को कीटणु रहित बनाया जा सकता है।
I.
रात सोते समय कपूर 5 ग्राम नीम तैल50 एम. एल. सरसों तैल 200 एम.एल. के सम्मिश्रण कर आवश्यकतानुसार शरीर पर लगाकर , मच्छरों से रक्षा की जा सकती है।
इस तरह से हमारी परम्परागत चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद से हम मौसमी बीमारियों से बचेंगे,एवं एलोपैथिक दवाइयों के दुष्प्रभाव से भी बचे रहेगे।
नोट:-मधुमेह के रोगी मिश्री एवं मुनक्का का प्रयोग नही करें।
“आयुर्वेद अपनाएं”।

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