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सादगी से आत्मनिर्भरता और मेधा से लोकतांत्रिक सशक्तता का मजबूत बुनियाद तैयार किया देशरत्न ने: गणेश दत्त पाठक - श्रीनारद मीडिया

सादगी से आत्मनिर्भरता और मेधा से लोकतांत्रिक सशक्तता का मजबूत बुनियाद तैयार किया देशरत्न ने: गणेश दत्त पाठक

सादगी से आत्मनिर्भरता और मेधा से लोकतांत्रिक सशक्तता का मजबूत बुनियाद तैयार किया देशरत्न ने: गणेश दत्त पाठक

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पाठक आईएएस संस्थान में देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की पुण्यतिथि पर श्रद्धासुमन किया गया अर्पित, परिचर्चा का भी हुआ आयोजन

श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार)

देशरत्न सादगी, सरलता, विनम्रता की पहचान थे। लेकिन उनकी सादगी आज के उपभोक्तावाद के दौर में एक बेहद मूल्यवान संदेश भी है। जिंदगी में मितव्ययिता और सादगी आत्मनिर्भरता के लिए मजबूत बुनियाद का निर्माण करती है, संसाधनों के तर्कसंगत उपयोग को प्रेरित करती है।

इसी तरह देशरत्न मेधावी थे और मेधा का सम्मान भी करते थे। उनकी मेधा ने संविधान सभा के अध्यक्ष के तौर पर देश के लिए एक सशक्त वैधानिक बुनियाद की नींव रखी, जिस पर भारत में लोकतंत्र पुष्पित और पल्लवित हो रहा है। देशरत्न के विचार और व्यक्तित्व राजनीतिक संस्कृति के लिए भी मूल्यवान संदेश देते हैं।

ये बातें सिवान के अयोध्यापुरी स्थित पाठक आईएएस संस्थान पर देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की पुण्यतिथि पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए शिक्षाविद् श्री गणेश दत्त पाठक ने कही। इस अवसर पर संस्थान के स्टॉफ सदस्य और सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने वाले अभ्यर्थी मौजूद थे। इस अवसर पर एक संक्षिप्त परिचर्चा का आयोजन भी किया गया।

परिचर्चा में भाग लेते हुए श्री पाठक ने कहा कि भारत की स्वाधीनता के लिए चले राष्ट्रीय आंदोलन के दौर में भी देशरत्न ने अपनी विनम्रता और कर्मठता से अपना एक विशिष्ट मुकाम हासिल किया । राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी उनकी मेधा और विनम्रता के कायल थे। संविधान सभा के अध्यक्ष के तौर पर उनकी मेधा ने एक समावेशी स्वरूप वाले संविधान के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाई। आज जबकि तीसरी दुनिया के कई देशों में लोकतंत्र खतरे में पड़ा। भारत में लोकतांत्रिक परंपराएं परिपक्वता की ओर अग्रसर हैं। देशरत्न सिद्धांत और व्यावहारिकता के बीच के फासले को स्वीकार नहीं करते थे। उनका ये स्पष्ट मत था कि जो बात सिद्धांत में गलत है वो व्यवहार में भी गलत ही होगा।

परिचर्चा में भाग लेते हुए अभ्यर्थी रागिनी कुमारी ने कहा कि राजेंद्र बाबू ने बृजकिशोर बाबू के साथ मिलकर चंपारण सत्याग्रह की सफलता का आधार तैयार किया। अभ्यर्थी मीरा कुमारी ने कहा कि सादगी के संदेश द्वारा राजेंद्र बाबू ने मितव्ययिता को विशेष तरजीह दिया। यह मितव्ययिता की अवधारणा प्रशासनिक प्रभावशीलता का भी आधार तत्व है।

परिचर्चा में अभ्यर्थी मोहन यादव ने कहा कि राष्ट्रीय आंदोलन के दौर में असहयोग आंदोलन के दौरान अपनी चमकती वकालत को छोड़ कर देश के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया। राष्ट्र के प्रति उनका यह योगदान एक बड़ा सबक है और यूक्रेन और अफगानिस्तान की घटनाओं के संदर्भ में एक नजीर भी।अभ्यर्थी सुविख्यात पाण्डेय ने कहा कि डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने अपने सादगी से रहने परंतु विचार को उच्च रखने की हिदायत मानवता के लिए महान संदेश है, जो वर्तमान में शाश्वत विकास के संदर्भ में बेहद प्रासंगिक भी है।

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