फिजूलखर्ची को नापसंद करते थे देशरत्न!
डॉ राजेंद्र प्रसाद की सादगी के विचार में निहित थे गंभीर अर्थ।
श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्क:
देश के प्रथम राष्ट्रपति, भारत की राजनीति में शुचिता और संवेदना के समर्पित ध्वजवाहक माने जानेवाले देशरत्न डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के सादगी की कहानियां हम सभी कई बार सुन चुके हैं। ‘सादा जीवन उच्च विचार’ के उनके फलसफे के पीछे एक गंभीर तार्किक आधार भी था। आगामी 3 दिसंबर को उनकी जयंती के उपलक्ष्य में देशभर में कई आयोजन होंगे। वहां पर उनके सादगी के सिद्धांत पर चर्चाएं भी होंगी। पर आवश्यकता उनके विचारों में निहित अर्थों, संदेशों को समझने की हैं। अगर लोग उनके विचार के आधारों को कुछ हद तक समझ सकें तो शायद यह उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि भी होगी।
दिखावे में आज कोई नहीं रहना चाहता पीछे
वर्तमान में शादियों का मौसम चल रहा हैं। तकरीबन हर वैवाहिक आयोजन में शान और शौकत के प्रदर्शन में कोई पीछे नहीं रहना चाहता है। एक होड़ सी मची हैं अपने को श्रेष्ठ खर्चीला बताने की, लेकिन आपको जानकर यह आश्चर्य होगा कि राजेंद्र बाबू फिजूलखर्ची के बिलकुल खिलाफ थे।
फिजूलखर्ची की भरपाई के लिए अनैतिक साधनों का उपयोग खतरनाक
इसके पीछे उनका तर्क था कि यदि फिजूलखर्ची किया जाएगा तो उसकी भरपाई भी करनी होगी। यह संभव हैं कि फिजूलखर्ची की पूर्ति के लिए या तो किसी का शोषण किया जाएगा या फिर अनैतिक साधनों का इस्तेमाल किया जाएगा। ये दोनों ही तथ्य व्यक्ति के जमीर को नकारात्मक तरीके से प्रभावित करेंगे और समाज में एक गलत परंपरा की शुरुआत करेंगे।
सादगी से बेहतर कुछ भी नहीं
इसलिए राजेंद्र बाबू हमेशा लोगों को सलाह देते रहते थे कि सादगी से जीवनयापन से बेहतर कुछ भी नही हैं। उन्होंने राष्ट्रपति होने के बावजूद अपने ऊपर आडंबर को हावी नहीं होने दिया। बेहद साधारण जीवन शैली के सदैव हिमायती रहे वे।
राष्ट्रपति भवन के मात्र तीन कमरों का ही उपयोग
मेरे दादाजी स्वर्गीय रामजी पाठक जी जब एक बार किसी निवेदन के सिलसिले में जब देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद से मिलने दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन गए थे। वे बताते थे कि सैकड़ों कमरों वाले राष्ट्रपति भवन में मात्र तीन कमरे ही राजेंद्र बाबू द्वारा इस्तेमाल किया जाता था। एक में वे स्वयं दूसरे में उनकी धर्मपत्नी और तीसरे कमरे में उनके आराध्य देव श्री कृष्ण का पूजन अर्चन। उनके इस्तेमाल किए जानेवाले कमरों की साज सज्जा भी बेहद साधारण थी। भव्य बिस्तरों की जगह खादी के कंबल और चादरों का ही इस्तेमाल होता था।
जनता के धन के अपव्यय के खिलाफ थे राजेंद्रबाबू
एक राष्ट्रपति के जीवनशैली के बारे में इन तथ्यों को सुनकर आपको आश्चर्य हो रहा होगा। परंतु ये सत्य हैं कि राजेंद्र बाबू सादगी की मिसाल थे। वे जनता के धन के अपव्यय के बिलकुल खिलाफ थे। उनका मानना था कि जनता के धन का बिलकुल सही और सार्थक, जनकल्याणकारी उपयोग ही होना चाहिए। काश आज के दौर के हमारे जनप्रतिनिधि राजेंद्र बाबू के मन्तव्यों को समझ पाते?
उपभोक्तावाद के दौर में सादगी के संदेश का विशेष महत्व है
चाहे वो स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राजनीतिक गतिविधियों की बात हो या राष्ट्रपति काल के दौरान का पल या राष्ट्रपति पद से हटने के बाद पटना में प्रवास का समय। राजेंद्र बाबू सदैव फिजूलखर्ची से दूर रहे और सादगी का ही सहारा लिया। आज के उपभोक्तावाद और दिखावापन के दौर में सादगी का संदेश एक गंभीर संदेश हैं।
फिजूलखर्ची ही भ्रष्टाचार की बुनियाद है
फिजूलखर्ची ही भ्रष्टाचार की बुनियाद है। सामान्यतौर पर स्टेटस सिंबल के लिए लोग फिजूलखर्च करते हैं फिर कोई अनैतिक साधन से इस व्यय की पूर्ति करते हैं या किसी निरीह का शोषण करने का प्रयास करते हैं। ये दोनों ही तथ्य मानवता पर कलंक के समान ही हैं। काश! हम राजेंद्र बाबू के सादगी के मंत्र को हम समझ पाते?
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