कानून के बावजूद भी दिव्यांग व्यक्तियों को सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है,कैसे?

कानून के बावजूद भी दिव्यांग व्यक्तियों को सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

स्वतंत्र भारत की 75 वर्षों की यात्रा संघर्षों, सबकों और उपलब्धियों से भरी रही है। यह अवसर है, जब हमें विचार करना चाहिए कि दिव्यांग जनों को सुविधा और कानूनी अधिकार देने के मामले में इन वर्षों में कितनी प्रगति हुई है और आजादी के 100वें वर्ष के जश्न तक के लिए कुछ नए लक्ष्यों को निर्धारित करना चाहिए। भारत दिव्यांग जनों की सर्वाधिक आबादी वाले देशों में शामिल है। देश के अधिकतर दिव्यांग गरीबी और सामाजिक भेदभाव की पीड़ा से जूझ रहे हैं। सतत विकास लक्ष्यों की प्रस्तावना स्वीकार करती है कि भारत में 80 प्रतिशत से अधिक दिव्यांग जन गरीबी में जी रहे हैं।

महत्वपूर्ण कानूनी उपायों के बावजूद दिव्यांग व्यक्तियों को आज भी सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। यह भेदभाव दिव्यांग जनों के हित में बने कानूनों और योजनाओं के कार्यान्वयन की खामियों को रेखांकित करता है। दिव्यांग जनों के अधिकारों के बारे में जागरूकता की कमी इस मामले में हमारे समाज में पीढ़ियों से चली आ रही रूढ़ियों का प्रतिफल है।

शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका और सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने के अवसरों तक सुगम्य पहुंच की कमी एक बड़ी बाधा है, जो दिव्यांग जनों को समाज में घुलने-मिलने से रोकती है और विकास की मुख्यधारा से बाहर बने रहने के लिए मजबूर करती है। हमें ध्यान रखना होगा कि दिव्यांगता का स्तर, प्रकृति और प्रकार अलग-अलग होते हैं, इसलिए प्रत्येक दिव्यांग की जरूरतें भी अलग-अलग होती हैं।

दिव्यांग आबादी की सटीक गणना करना हमेशा कठिन रहा है। जनगणना दिव्यांगों के निष्पक्ष और सटीक आंकड़े प्राप्त करने का अवसर प्रदान करती है। यह दिव्यांगों को जरूरी सेवा प्रदान करने में मदद कर सकती है, भले ही उनकी दिव्यांगता का स्तर कुछ भी हो।सार्वजनिक स्थानों पर दिव्यांग जनों के साथ दुर्व्यवहार की खबरें अब भी सामने आती रहती हैं। यह इस तथ्य को रेखांकित करता है कि दिव्यांग जनों को समान अवसर प्रदान करने तथा उन्हें सशक्त बनाने के लिए कुछ और ठोस कदमों और पहलों की जरूरत है। साथ ही सेवाओं और उत्पादों तक दिव्यांग जनों की पहुंच को सुलभ बनाने और सुनिश्चित करने के लिए सार्वभौमिक डिजाइन अपनाने की आवश्यकता है।

यह सही समय है जब दिव्यांग जनों को भी उनसे संबंधित चर्चाओं में भाग लेने और नेतृत्व करने का अवसर प्रदान किया जाए। दिव्यांगों से जुड़े फैसले लेने वाली कमिटियों में अपने लिए स्थान की दिव्यांग जनों की मांग पर विचार करके ही हम एक सर्व समावेशी भारत के निर्माण की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं और सामूहिक एवं दृढ़ संकल्प के जरिये आजादी के 100वें वर्ष के जश्न से पहले इस सपने को साकार भी कर सकते हैं।

दिव्यांगजनों के लिए सुविधा

  • दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 की धारा 8 इन स्थितियों में दिव्यांगजनोंके लिए समान संरक्षण और सुरक्षा की गारंटी देती है। यह आपदा प्रबंधन गतिविधियों में दिव्यां गजनोंको शामिल करने और उन्हें इस के बारे में विधिवत जानकारी देने के उपाय करने के लिए जिला/ राज्य/ राष्ट्रीय स्तर पर आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों को जनादेश भी देता है।

भारत में दिव्यांगों की स्थिति :-

  • 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में लगभग 2.68 करोड़ दिव्यांग जनसँख्या है जो सम्पूर्ण जनसँख्या का 2.21 % है। इसमें 1.5 करोड़ पुरुष तथा 1. 18 करोड़ महिला जनसँख्या है। इस जनसँख्या का 69 % ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है।

दिव्यांगता के कारक :-

  • गरीबी , कुपोषण ,युद्ध तथा आपराधिक गतिविधियां दिव्यांगता का मुख्य कारण होती हैं। इसके साथ ही कुछ दिव्यांगता जन्म से ही होती है।

दिव्यांगों की समस्या :-

  • भावनात्मक हीनता :- दिव्यांगों की सबसे बृहद समस्या भावनात्मक हीनता है। अपनी कमियों के कारण ये इनमे हीनता की भावना जन्म ले लेती है ,जो इनके विकास को बाधित करती है।
  • आवश्यक सुविधा से दूरी :- दिव्यांग जनो की सर्वाधिक समस्या उनकी स्वास्थ्य , रोजगार सुविधा से दूरी है। जो उन्हें और अधिक सुभेद्य बनाती है।
  • सामाजिक बहिष्कार :- दिव्यांग जनो को सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है। जो उनके सामाजिक स्थिति में गिरावट को जन्म देता है यह स्थिति उन्हें मानसिक उत्पीड़न का शिकार बना कर अवसाद ग्रस्त कर देती है। इसी सामाजिक बहिस्कार को दूर करने हेतु 2016 से विकलांग के स्थान पर दिव्यांग शब्द का प्रयोग प्रारम्भ हुआ।
  • अधिकारों का उपयोग नहीं :- दिव्यांग जन वाक एवं अभिव्यक्ति, गरिमामय जीवन से दूर हो जाते हैं , जिससे वे अपने अधिकारों का उपयोग नहीं कर पाते हैं।
  • अपर्याप्त डाटा :- इनके सम्बन्ध में अपर्याप्त डाटा इनकी सुशासन से पहुंच को दूर करती है।

दिव्यांगों के सम्बन्ध में विधिक उपाय :-

  • संबैधानिक उपाय :- भारतीय संविधान के नीतिनिर्देशक तत्व में अनुच्छेद 41 में दिव्यांगों की सहायता का प्रावधान है। इसके साथ अनुच्छेद 21 में गरिमामय जीवन का प्रावधान है
  • विधिक उपाय :- दिव्यांग जन अधिकार अधिनियम में इनके हेतु पर्याप्त सुरक्षा का प्रावधान है।
  • दिव्यांग सुरक्षा संबिधान की सातवीं अनुसूची में राज्य सूची में वर्णित हैं।

सरकारी पहल

सुगम्य भारत अभियान:

  • यह सार्वभौमिक पहुँच प्राप्त करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी प्रमुख अभियान जो विकलांग व्यक्तियों को समान अवसर के लिए पहुँच प्राप्त करने और स्वतंत्र रूप से जीने और एक समावेशी समाज में जीवन के सभी पहलुओं में पूरी तरह से भाग लेने में सक्षम करेगा।
  • यह अभियान पर्यावरण ,यातायात , सूचना एवं संचार पर लक्षित है।

दीनदयाल विकलांग पुनर्वास योजना:

  • इस योजना के तहत गैर-सरकारी संगठनों को विकलांग व्यक्तियों को विभिन्न सेवाएं प्रदान करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है, जैसे कि विशेष विद्यालय, व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र, समुदाय आधारित पुनर्वास,

छात्रों के लिए राष्ट्रीय फैलोशिप (RGMF)

  • इस योजना का उद्देश्य उच्च शिक्षा के लिए विकलांग छात्रों के लिए अवसरों को बढ़ाना है।
  • योजना के तहत, प्रति वर्ष 200 फैलोशिप विकलांगता वाले छात्रों को दी जाती है।

आगे की राह :-

दिव्यांग जन अत्यंत वंचित वर्ग हैं। इनकी समस्याएं तथा स्थिति सामान्य जनो की अपेक्षा पृथक हल की मांग करती है। सरकार द्वारा पिछले वर्ष भी दिव्यांग जनो के लिए कोरोना से सम्बंधित दिशानिर्देश दिए गए थे। इस महामारी में दिव्यांग जनो की सुरक्षा विशेष महत्व रखती है।

 

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