फहियान की भारत यात्रा के विवरण.

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श्रीनारद मीडिया सेन्ट्रल डेस्क

रूसी यात्री अफनासी निकितिन की भारत यात्रा में कहा था कि प्राचीन समय में की गई यात्राएं उस जगह की महत्ता का सबूत होती है।
इसी तरह यहां हम एक और यात्री की चर्चा करेंगे जिसने भारत की यात्रा की। लेकिन इस यात्रा का एक धार्मिक महत्व था जिसने उस यात्री के देश में एक महत्वपूर्ण छाप छोड़ी।
हम बात कर रहे है भरता के पड़ोसी देश चीन के निवासी ‘फहियान’ की। ये तो सभी जानते है की बौद्ध धर्म का उदय भारत में हुआ था। बाद में इसके अनुयायियों ने इसे प्रचार प्रसार द्वारा कई देशों में विस्तारित किया। चीन भी उन्ही देशों में से एक था।
फहियान ने देखा कि बौद्ध धर्म, जो कि उनके देश का एक प्रमुख धर्म बन चुका था, के कई महत्वपूर्ण धर्मग्रंथ उनके पास थे ही नहीं। वो धर्मग्रंथों की प्रतिलिपियों को अपने देश में लाने के लिए वचनबद्ध हो कर भारत के लिए निकल गया।
फहियान अपने अन्य साथियों के साथ पैदल ही भारत की ओर निकल पड़ा। उन्होंने हिमालय पर्वत श्रृंखला के पहाड़ों को पार किया और वर्तमान नेपाल से होते हुए भारत में प्रवेश किया।
धार्मिक इंसान होने की वजह से उसे रास्ते में मिले कई राज्यों के राजाओं और अन्य बौद्धों का भरपूर सहयोग मिला। जिसकी वजह से उसे अपने साथ कोई अनहोनी को आशंका नहीं हुई। हा, लौटते समय जरूर उसके जहाज में पानी भरने लगा। लेकिन वो अपने साथ लाए हुए धर्मग्रंथों को यू ही पानी में बहाना नहीं चाहता था। किस्मत या ईश्वर की कृपा से वो इन धर्मग्रंथों को लेकर सकुशल चीन पहुंच गया।

फाहियान ‘चांगगान’ का रहने वाला था जहां से वह ‘यांग्लो पर्वत’ पार करके ‘तुन्हांग’ होते हुए ‘गोबी मरुस्थल’ पार करके ‘शेनशेन जनपद’ (वास्तविक नाम पता नहीं लेकिन वर्णन के अनुसार ये एक पर्वतीय प्रदेश था) पहुंचा। यहां से ‘ऊए’ (जो कि अब मरुस्थल में दब गया है) होते हुए ‘सूंगलिंग पर्वत’ पार करके ‘यूव्हे’ पहुंचा। (जो कि शायद कश्मीर या लद्दाख का भाग था।) वहां से ‘गांधार’ होते हुए ‘तक्षशिला’ पहुंचा। फिर ‘पुरुषपुर’ (वर्तमान पेशावर) होते हुए अंततः ‘मथुरा’ पहुंचा। फिर क्रमशः ‘श्रावस्ती’, ‘साकेत’, ‘कपिलवस्तु’, ‘वैशाली’, ‘नालंदा’ और अंत में ‘तामलिंग’ (बंगाल में एक स्थान) पहुंचा।

यहां से जहाज में बैठ कर ‘सिंहल देश’ (श्री लंका) और ‘जावा द्वीप’ होता हुआ ‘चांगकांग'(चीन का एक राज्य) पहुंचा। वहां के राजा को जब यह पता चला के फाहियान अपने साथ बौद्ध धर्म के अनेक ग्रंथों को साथ लेकर आया है तो उन्होंने उसका बहुत आदर सत्कार किया। उसने उन ग्रंथों का अनुवाद उन्हीं की सेवा में पूर्ण किया। इस प्रकार फाहियान को भारत भ्रमण में कुल 15 साल लग गए यह पूरी यात्रा उसने पैदल ही पूर्ण की।

सफर के दौरान आपको फहियान द्वारा बहुत ही धार्मिक कथाएं सुनने को मिलेंगी, एवं भारत के धार्मिक स्थलों की जानकारी व उनके बारे में प्रचलित कहानी भी सुनने को मिलेगी। ये कहानियां यात्रा में रोमांच उत्पन्न करेंगी।

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