क्या पुलवामा काण्ड केंद्र सरकार की नाकामी और लापरवाही के कारण हुआ?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक कहते हैं कि हज़ार जवानों का मूव उस वक्त सड़क मार्ग से बिलकुल ठीक नहीं था। सुरक्षा की दृष्टि से तो बिलकुल ही नहीं। ख़ैर विमानों की माँग से संबंधित सीआरपीएफ़ की दरखास्त चार महीने तक गृह मंत्रालय में धूल खाती रही। …और आख़िरकार यह अनुमति देने से गृह मंत्रालय ने इनकार कर दिया। मजबूरन इतनी बड़ी संख्या में जवानों को सड़क मार्ग से जाना पड़ा। नतीजा यह हुआ कि हमारे चालीस जवान शहीद हो गए और किसी को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा।
मलिक साहब का कहना है कि सरकार की ग़लत नीतियों और ग़लत निर्णय के कारण ही यह हादसा हुआ था। जैसा कि मलिक साहब का कहना है – अचरज की बात यह है कि इसके विरुद्ध जब उन्होंने सरकार के चोटी के लोगों को हक़ीक़त बताई तो उन्हें चुप रहने के लिए कहा गया। मलिक साहब का कहना है कि अगर इस पूरे मामले की जाँच होती तो गृहमंत्री राजनाथ सिंह को इस्तीफ़ा देना पड़ता और कई उच्चाधिकारी तो बर्खास्त कर दिए जाते। लेकिन कुछ हुआ ही नहीं। जो कुछ हुआ वह लीपापोती के सिवाय कुछ नहीं था।
पुलवामा हादसा जब हुआ, सत्यपाल मलिक जम्मू- कश्मीर के राज्यपाल थे। वे गोवा और मेघालय के राज्यपाल भी रहे हैं। लेकिन कश्मीर के राज्यपाल रहते उनके पास कई बातें आईं होंगी जो केवल वही जानते होंगे, और कोई नहीं। सिवाय केंद्र सरकार के। वे कह रहे हैं कि पुलवामा काण्ड केंद्र सरकार की नाकामी और लापरवाही के कारण हुआ। … और चोटी के नेताओं, ने उन्हें उस वक्त चुप रहने को कहा। इसलिए वे चुप रहे।
मलिक साहब ने पुलवामा की ये परतें दूसरी बार खोली हैं। इसके पहले भी वे इस बारे में बहुत कुछ बोल चुके हैं। उनका कहना है कि हज़ार जवानों को जम्मू से श्रीनगर जाना था। सीआरपीएफ़ की तरफ़ से गृह मंत्रालय को दरखास्त भेजी गई कि हमारे जवानों को श्रीनगर भेजने के लिए चार विमानों की व्यवस्था की जाए। वजह यह है कि सैन्य क़ाफ़िला जब मूव करता है तो राज्य की सरकार या राज्यपाल को इसकी खबर नहीं दी जाती। सीधे गृह मंत्रालय से संपर्क किया जाता है।
मलिक का कहना है कि पुलवामा हादसा सरकार की गलती के कारण हुआ, फिर भी लोकसभा चुनाव- 2019 हमारे चालीस जवानों की लाशों पर खड़े होकर लड़ा गया। अब सवाल यह उठता है कि मलिक साहब को सरकार की या गृह मंत्रालय की तमाम ख़ामियाँ अब क्यों नज़र आ रही हैं, जब वे किसी पद पर नहीं रहे या कम से कम कश्मीर के राज्यपाल के पद पर तो नहीं ही रहे।
अगर सत्यपाल मलिक इतने ही ईमानदार और सच के पहरेदार हैं तो यह बात उन्होंने तब क्यों नहीं उठाई जब पुलवामा हादसा हुआ था? तब क्यों बड़े लोगों के कहने पर चुप्पी साधे रहे। बोलते! सच को सही रूप में सबके सामने रखते! पद के लालच में चुप बैठना या बैठे रहना कौन सी ईमानदारी की किताब में लिखा है? अब जब पद ही नहीं रहा तब ढिंढोरा पीटते फिर रहे हैं, इसका क्या मतलब समझा जाए?
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