डिजिटल डिटॉक्स से बढ़ेगी बच्चों और युवाओं की रचनात्मकता

डिजिटल डिटॉक्स से बढ़ेगी बच्चों और युवाओं की रचनात्मकता

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बढ़ते स्क्रीन टाइम और कट पेस्ट कल्चर से भविष्य में नवाचार, नवोन्मेष पर भी पड़ सकता है नकारात्मक असर, डिजिटल डिटॉक्स से नई पीढ़ी मौलिकता की राह पर चल पड़ेगी

✍️डॉक्टर गणेश दत्त पाठक, श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

वर्तमान डिजिटल क्रांति के दौर में बच्चों का बढ़ता स्क्रीन टाइम एक हकीकत है। देश में नित नए सर्वे आ रहे हैं, जो बढ़ते स्क्रीन टाइम की ओर संकेत कर रहे हैं। कोई सर्वे देश के युवाओं का औसत स्क्रीन टाइम 5 घंटे बता रहा है तो कोई 7 घंटे। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी युवाओं के बढ़ते स्क्रीन टाइम पर गंभीर चिंता जता चुके हैं। यह बढ़ता स्क्रीन टाइम न केवल बच्चों और युवाओं की रचनात्मकता पर प्रभाव डाल रहा है अपितु उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी तबाह कर रहा है। बढ़ता कट पेस्ट कल्चर भी बच्चों की मौलिकता को नकारात्मक तरीके से प्रभावित कर रहा है। ऐसे में आजकल डिजिटल डिटॉक्स की संकल्पना पर विशेष बल दिया जा रहा है। डिजिटल डिटॉक्स यानी डिजिटल उपकरणों से कुछ समय के लिए दूरी। दिलचस्प तथ्य यह भी है कि डिजिटल डिटॉक्स को अपनाने में सबसे बड़ा सहयोग परिवार के स्तर पर ही मिलना है लेकिन अधिकांश परिवारजन डिजिटल डिटॉक्स के बारे में सुन जरूर रहे हैं लेकिन उसके महत्व से अपरिचित हैं।

डिजिटल डिटॉक्स के महत्व को समझने के पहले यह जानना जरूरी है कि बढ़ते स्क्रीन टाइम का कितना नकारात्मक असर हमारे बच्चों पर पड़ रहा है? भारत में बच्चों के बढ़ते स्क्रीन टाइम की खबर चिंताजनक है। देश में बच्चों और युवाओं का औसत स्क्रीन टाइम 5 घंटे से ज्यादा है यानी अपने देश के हर बच्चे या युवा न्यूनतम 5 घंटे डिजिटल उपकरणों पर बीता रहा है। जबकि भारतीय बाल चिकित्सा अकादमी के मुताबिक 2 साल से कम उम्र के बच्चों को बिल्कुल भी स्क्रीन पर टाइम नहीं बिताना चाहिए जबकि 2 से 5 साल के बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम प्रतिदिन एक घंटे तक सीमित होना चाहिए। बढ़ते ऑनलाइन एजुकेशन के दौर में स्थिति यह है कि हर युवा लैपटॉप मोबाइल का इस्तेमाल जम के कर रहा है। किसी भी परिचित को शुभकामना भी प्रेषित करना रह रहा है, निबंध लिखना रह रहा है या किसी प्रश्न का उत्तर लिखना रह रहा है तो वह कट और पेस्ट की तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है। ऐसे में बच्चों और युवाओं में रचनात्मकता के विकास पर बेहद नकारात्मक असर पड़ रहा है।

बढ़ते स्क्रीन टाइम का युवाओं पर असर बेहद खतरनाक साबित हो रहा है। इसके कारण युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर बेहद नकारात्मक असर पड़ रहा है। तनाव, चिंता, अवसाद, आत्महत्या के विचार आदि तथ्य सामने आ रहे हैं। बढ़ते स्क्रीन टाइम से नींद की गुणवत्ता पर भी नकारात्मक असर पड़ रहा है। नींद की कमी से जीवन शैली से जनित व्याधियां आरोग्य को खतरनाक तरीके से प्रभावित कर रही है। साथ ही बढ़ते स्क्रीन टाइम के कारण शारीरिक सक्रियता में कमी आने से वजन बढ़ रहा है। हमारे युवा बेहद कम उम्र में ही मधुमेह, हृदय रोग, रक्तचाप, कैंसर आदि बीमारियों के गिरफ्त में आ जा रहे हैं। सामाजिक संबंधों पर भी नकारात्मक असर देखा जा रहा है। पारिवारिक संवाद में कमी आने से अलगाव, अकेलापन, सामाजिक कौशल में कमी आती दिखाई दे रही है। आत्म जागरूकता में कमी आने से आत्मविश्वास पर असर पड़ता है तो सृजनात्मकता, कल्पनाशीलता, समस्या समाधान कौशलों में भारी कमी बढ़ते स्क्रीन टाइम के कारण ही देखी जा रही है। उत्पादकता में कमी, काम की गुणवत्ता में कमी, समय प्रबंधन में कमी आज के डिजिटल दौर की एक बहुत बड़ी चुनौती बन चुकी है। आंखों की थकान, आंखों का सूखापन, आंखों की बीमारियों का खतरा युवाओं में आम है। पीठ दर्द, कमर दर्द, मांसपेशियों में तनाव आदि समस्याएं भी युवाओं में देखी जा रही हैं। शरीर के प्रतिरक्षा प्रणाली में कमी युवाओं में बढ़ते स्क्रीन टाइम का सबसे खराब उपहार है। इस तरह अब यह एक सर्वविदित तथ्य है कि युवाओं में बढ़ता स्क्रीन टाइम मानसिक और शारीरिक आरोग्य के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बन चुका है। बढ़ते स्क्रीन टाइम के खतरों के मुकाबले के लिए डिजिटल डिटॉक्स पर विशेष बल दिया जा रहा है।

डिजिटल डिटॉक्स एक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति डिजिटल उपकरणों और सोशल मीडिया के उपयोग को कम करने या पूरी तरह से बंद करने का निर्णय लेता है। यह प्रक्रिया व्यक्ति को डिजिटल उपकरणों की लत से मुक्त करने और उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करती है।
डिजिटल डिटॉक्स का उद्देश्य डिजिटल उपकरणों की लत को कम करना और व्यक्ति को अपने जीवन पर अधिक नियंत्रण देना है। साथ ही व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाना मसलन तनाव, चिंता और अवसाद को कम करना भी इसका उद्देश्य है। साथ ही डिजिटल डिटॉक्स का लक्ष्य व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाना है, जैसे कि नींद की गुणवत्ता में सुधार करना और शारीरिक गतिविधियों को बढ़ाना, व्यक्ति के सामाजिक संबंधों को बेहतर बनाना है, जैसे कि परिवार और मित्रों के साथ अधिक समय बिताना भी है।

अब सवाल यह उठता है कि डिजिटल डिटॉक्स की स्थिति को कैसे प्राप्त किया जा सकता है? इसके लिए आवश्यक है कि हम युवाओं को रचनात्मक गतिविधियों की तरफ प्रेरित करें। उन्हें चित्रकला, पेंटिंग, लेखन, खेल गतिविधियों के प्रति प्रेरित करना होगा। एक स्वास्थ्य जीवन जीने के लिए उन्हें योग, प्राणायाम, ध्यान, व्यायाम आदि के लिए उत्साहित करना होगा। प्राकृतिक सौंदर्य के साथ समय बिताने, सामाजिक संबंधों को मजबूत बनाने के प्रयास भी करने होंगे। डिजिटल उपकरणों का उपयोग बेहद सीमित करने के लिए उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति को मजबूत करना होगा। युवाओं में स्वबोध के जागरण और उनके आत्म मूल्यांकन करने के लिए व्यवस्थाएं भी संजोनी होगी। युवा जब नवीन गतिविधियों को अपनाएंगे तो उनमें जीवन के प्रात अधिक उत्साह और अपनी अभिरुचि के प्रति अधिक स्नेह भाव भी जागृत होगा। निश्चित तौर पर डिजिटल डिटॉक्स की संकल्पना के अंगीकरण में परिवार के सहयोग और समर्थन की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है। परिवार में अभिभावक बच्चों और युवाओं के लिए कुछ नियम बना सकते हैं। मसलन कब कब डिजिटल उपकरणों का उपयोग सख्त रूप से प्रतिबंधित रहेगा। पारिवारिक स्तर पर खेल, पिकनिक, भ्रमण आदि का आयोजन, रचनात्मक गतिविधियों मसलन चित्रकला, पेंटिंग, लेखन, क्रिएटिव एक्टिविटी आदि के लिए प्रोत्साहन, आदि के द्वारा युवाओं और बच्चों को डिजिटल डिटॉक्स की तरफ प्रेरित किया जा सकता है। साथ ही एक बड़ी जरूरत इस बात की भी है कि परिवार के सदस्य डिजिटल डिटॉक्स के महत्व और लाभों को समझें।

हालांकि डिजिटल डिटॉक्स की स्थिति को प्राप्त करने के संदर्भ में कई बड़ी चुनौतियों का सामना भी करना होगा? डिजिटल उपकरणों और सोशल मीडिया की लत सबसे बड़ी चुनौती होती है। ये लत इतनी खराब होती है कि इससे छुटकारा पाने के लिए काफी मजबूत इच्छाशक्ति और प्रबल प्रेरणा की दरकार होती है। युवाओं के पीयर ग्रुप यानी उसके दोस्तों का दवाब भी एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आता है। आज के दौर में डिजिटल उपकरण जीवन की अहम जरूरत बन चुके हैं। हर प्रक्रिया और सूचना के लिए हम डिजिटल उपकरणों पर ही आश्रित रहते हैं। ऐसे में उनसे दूरी एक गंभीर चुनौती अवश्य बन जाया करती है। आज के व्यस्त जीवन में डिजिटल डिटॉक्स के लिए समय और संसाधनों की एक चुनौती हो सकती है। डिजिटल डिटॉक्स के दौरान नींद की कमी, तनाव, चिंता, सामाजिक अलगाव आदि भी समस्याएं उत्पन्न हो सकती है। यद्यपि डिजिटल डिटॉक्स को अपनाने में कई चुनौतियां आ सकती हैं लेकिन इसके बहुत लाभ भी है।

डिजिटल डिटॉक्स की स्थिति में आने पर सबसे सकारात्मक लाभ यह होता है कि रचनात्मकता को प्रोत्साहन मिलता है और मौलिकता भी ऊर्जस्वित होती है। इससे बच्चों और युवाओं का आत्मविश्वास बढ़ता है। सकारात्मकता आने से एक पॉजिटिव एनर्जी उत्पन्न होती है जिससे तनाव, चिंता और अवसाद में कमी आती है। डिजिटल डिटॉक्स से नींद की गुणवत्ता बेहतर होती है जिससे व्यक्ति को अधिक आराम और ऊर्जा मिलती है। साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता के विकास से आरोग्य रक्षण में भी सहायता मिलती है। डिजिटल डिटॉक्स की स्थिति में पारिवारिक संवाद का माहौल उत्पन्न होता है परिवार और मित्रों के साथ अधिक समय बिताने से सामाजिक संबंधों को भी नवीन ऊर्जा मिलती है। शारीरिक और मानसिक स्वस्थता की स्थिति के उत्पन्न होने से उत्पादकता, जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार होता हैं और सबल आत्मविश्वास का सृजन होता है।

निश्चित तौर पर डिजिटल क्रांति ने कई सुविधाएं उपलब्ध कराई है तो कई चुनौतियों को भी उत्पन्न किया है। बच्चों और युवाओं में स्क्रीन टाइम का बढ़ना भी एक बड़ी समस्या है। जिसके समाधान के संदर्भ में डिजिटल डिटॉक्स की संकल्पना का विशेष महत्व है। डिजिटल डिटॉक्स के महत्व को सिर्फ समझना ही नहीं अपितु उसे महसूस करना भी जरूरी है। डिजिटल डिटॉक्स की संकल्पना एक स्वर्णिम उपाय है जिसे अपना कर हम अपने समाज के भविष्य को आशा और ऊर्जा से सराबोर कर सकते हैं।

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