Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
दिलीप कुमार लंबे समय तक जीते हुए भी एक कविता की तरह रहे जो कविता अधूरी ही रह गई. - श्रीनारद मीडिया

दिलीप कुमार लंबे समय तक जीते हुए भी एक कविता की तरह रहे जो कविता अधूरी ही रह गई.

दिलीप कुमार लंबे समय तक जीते हुए भी एक कविता की तरह रहे जो कविता अधूरी ही रह गई.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत और पाकिस्तान में कुछ ऐसा रिश्ता बना दिया गया है कि एक की खुशी दूसरे के लिए गम का कारण बन जाती है। बहरहाल, भारत के साथ ही पाकिस्तान में भी यूसुफ खान उर्फ दिलीप कुमार के जाने का अफसोस हो रहा है। लंबी अभिनय यात्रा में दिलीप कुमार ने 60 फिल्मों में अभिनय किया। वे हर काम करने के पहले उस पर काफी विचार करते थे। गोयाकि अमृतलाल नागर को फिल्मकार महेश कौल ने मुंबई आमंत्रित किया।

वे एक-दूसरे से लंबे समय से परिचित थे। महेश कौल, संत कवि तुलसीदास का बायोपिक बनाना चाहते थे। पटकथा लिखना शुरू हुई, लेकिन महेश कौल की मृत्यु हो गई। उन्हें हृदय रोग था। अमृतलाल नागर ने ‘मानस का हंस’ उपन्यास लिखा। उन्हीं दिनों गुणवंत लाल शाह ने ‘धर्मवीर’ नामक फिल्म का निर्माण भी किया था।

खाकसार ने उन्हें ‘मानस का हंस’ का संक्षिप्त विवरण दिया। गुणवंत लाल शाह इसे भव्य बजट की फिल्म बनाना चाहते थे। गुणवंत लाल शाह ने खाकसार की मुलाकात दिलीप कुमार से करवाई थी। प्रतिदिन शाम 5 बजे खाकसार दिलीप कुमार को ‘मानस का हंस’ सुनाने जाता था। उस समय दिलीप साहब पतंग उड़ाते थे।

‘मानस का हंस’ सुनकर वे इतने प्रभावित हुए कि लंदन से विग बनवा कर लाए। मानस बायोपिक के लिए सेट के नक्शे बनाए गए। दुर्भाग्यवश, गुणवंत लाल शाह की मृत्यु मात्र 41 वर्ष की उम्र में हो गई। दिलीप कुमार ने कहा कि अब ‘मानस’ अभिनीत करना संभव नहीं होगा, क्योंकि गुणवंत लाल शाह की याद आती रहेगी। दिलीप कुमार आदम कद आईने के सामने खड़े होकर एक ही संवाद 10 बार बोलते और हर बार उनका अंदाज अलग होता था।

पेशावर से दिलीप कुमार के पिता अपने बड़े परिवार को लेकर मुंबई के निकट देवलाली में बस गए और मेवे का व्यवसाय करने लगे। उन दिनों दिलीप कॉलेज की पढ़ाई के लिए रोज मुंबई आते थे। उनकी सात बहनें और एक भाई था। अतः परिवार के लिए कोई नौकरी की तलाश में थे। बॉम्बे टॉकीज की देविका रानी ने यूसुफ खान को दिलीप कुमार नाम देकर ‘ज्वार भाटा’ फिल्म बनाई।

एक दिन दिलीप के पिता ने अपने पुत्र की तस्वीर, फिल्म के पोस्टर में देखी। उन्हें सख्त अफसोस हुआ कि पठान युवा अभिनय कर रहा है। वे पेशावर में पड़ोसी रहे पृथ्वीराज कपूर को ताना मारते थे कि पठान फिल्मों में काम कर रहा है। अब तो उनका पुत्र भी इस क्षेत्र में उतर गया था। तत्कालीन कांग्रेस नेता अबुल कलाम आजाद साहब ने एक मुलाकात में दिलीप से कहा कि ‘जो भी काम करो उसे इबादत समझकर करना।’ दिलीप कुमार ने वाकई अभिनय को इबादत की तरह ही किया।

दिलीप कुमार ने लंबे समय तक गंभीर फिल्मों में काम किया। इस कारण उन्हें नैराश्य ने घेर लिया। डॉक्टर ने परामर्श दिया कि अब उन्हें हास्य फिल्मों में अभिनय करना चाहिए। अब दिलीप को हास्य फिल्में करनी थीं। इसलिए ‘राम और श्याम’ बनी ‘आजाद’ और ‘कोहिनूर’ में उन्होंने तलवारबाजी की। ‘कोहिनूर’ के एक सीन में उन्हें सितार बजाना था। दिलीप ने बाकायदा गुरु से सितार वादन सीखा।

उनकी मनपसंद किताब एमिली ब्रोंटे द्वारा लिखी ‘वुदरिंग हाइट’ थी, जिससे प्रेरित फिल्म ‘दिल लिया, दर्द दिया’ बनाई गई थी। विगत कुछ वर्षों से दिलीप कुमार की स्मृति चली गई थी। उन्हें कुछ भी याद नहीं रहता था। कल्पना करें, इस दौरान कोई उन्हें मधुबाला की तस्वीर दिखाता और मधुबाला की बात करता, तो उनकी खोई हुई स्मृति कुछ क्षणों के लिए ही सही लेकिन लौट सकती थी।

Leave a Reply

error: Content is protected !!