*वसंत महिला महाविद्यालय में ‘नई शिक्षा नीति व लोकभाषा’ के व्यापक परिप्रेक्ष्य पर हुई चर्चा

*वसंत महिला महाविद्यालय में ‘नई शिक्षा नीति व लोकभाषा’ के व्यापक परिप्रेक्ष्य पर हुई चर्चा*

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*श्रीनारद मीडिया / सुनील मिश्रा वाराणसी यूपी*

*वाराणसी* / वसंत महिला महाविद्यालय के हिंदी विभाग व शिक्षा विद्यापीठ, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के संयुक्त तत्वावधान में पंडित मदन मोहन मालवीय राष्ट्रीय शिक्षक एवं शिक्षण अभियान शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार के अंतर्गत 1 मार्च से आयोजित कार्यक्रम के दूसरे दिन नई शिक्षा नीति के व्यापक परिप्रेक्ष्य व लोकभाषा पर चर्चा हुई।

प्रोफेसर निरंजन सहाय, हिंदी विभाग, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ ने कहा कि भाषा और संस्कृति का गहरा संबंध है। नई शिक्षा नीति -2020 के व्यापक परिप्रेक्ष्य की चर्चा करते हुए प्रो. सहाय ने कहा कि भाषाई अस्मिता का सवाल एक संवेदनशील मुद्दा है। सीखने की प्रक्रिया में हमें संवेदनाओं को मरने से बचाना होगा।

कार्यशाला के दूसरे सत्र में ‘ नई शिक्षा नीति एवं लोकभाषा’ पर अपनी बात रखते हुए प्रो. राजेन्द्र सिंह (अधिष्ठाता, भाषा एवं मानविकी संकाय, महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार) ने कहा कि भाषा के माध्यम से मनुष्य सामाजिक बनता है।

नई शिक्षा नीति-2020 में लोक भाषाओं, क्षेत्रीय भाषाओं के संरक्षण-संवर्धन की बात की गयी है जिसका उद्देश्य मनुष्य को उसकी चेतना से जोड़ना है। लोकभाषाओं में रचित लोक साहित्य सामूहिक जीवन का वास्तविक अनुभव प्रस्तुत करता है। यदि भारत को आगे बढ़ाना है तो हमें शिक्षा का माध्यम मातृभाषा एवं लोकभाषा को बनाना होगा।

‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति और भाषा का संस्कार अनुशासन’ विषय पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, वर्धा के संकायाध्यक्ष प्रोफेसर कृपाशंकर चौबे ने कहा कि भाषा ही समाज की आशा होती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की भाषाकांक्षा को बल पहुचाने के लिए सबसे जरूरी विंदु यह है कि हम कैसे विद्यार्थियों, शोधार्थियों में भाषा का संस्कार दें। वर्तमान में मरणासन्न भाषाओं की ओर भी ध्यान देने की ज़रूरत है।

प्रोफेसर संजीव कुमार दुबे (संकायप्रमुख, भाषा साहित्य एवं संस्कृति अध्ययन संस्थान, हिंदी अध्यक्ष केन्द्र गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालय गुजरात) ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति बहुत बड़ा आयाम है। राष्ट्रीय भाषा के बिना राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी अधूरी है। गांधी जी ने कहा था- ‘राष्ट्र भाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है।’

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