संवाद का संदेश देता दीया।

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दीपक की जिजीविषा को नमन।

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

दीपक हमारी संस्कृति में ऊर्जा का प्रतीक है। दीप हमारे भीतर एवं बाहर दोनों प्रकार के तम को दूर करने में हम भूमिका का निर्वहन करता है। प्रभु राम का श्रीलंका से अयोध्या लौट आना एक दिव्य संयोग है। अयोध्या आगमन पर सदन एवं मस्तिष्क को आत्म दीपों से भरते हुए हम प्रतिज्ञा लेते हैं कि जीवन में इस मार्ग का अवशय अनुसरण करेंगे, जिसे पुरुषोत्तम राम ने अपनाया था। भारतीय संस्कृति का आधार राम है एवं हमारे जीवन के भी आधार राम ही है। राम भारतीय संस्कृति में शाश्वत धर्म के प्रतीक है। धर्म को यह सिद्धि प्राप्त है वह कि वह अहंकार को समूह नष्ट कर देगा। रावण को अपने ज्ञान का अहंकार था जबकि राम को अहंकार का ज्ञान था। धर्म अर्थ, काम एवं मोक्ष के सभी कर्मों में धर्म का मर्म है। प्रकृति प्रेम, देश प्रेम की पहली सीढ़ी है। प्रकृति ने संस्कृति को जन्म दिया है एवं संस्कृति का दायित्व है कि वह प्रकृति की रक्षा करें।

दीप का सन्देश, वृत्तियों में रहे स्वच्छता
भारत संसार की एक बड़ी आध्यात्मिक पूंजी है। भारत की सनातन संस्कृति अनादी,अनक्षर एवं शाश्वत है। यहां वैदिक धर्म, संस्कृति के साथ-साथ लोक धर्म, लोक संस्कृति भी प्रवाहित होती रहती है, क्योंकि हमारी परंपराएं नित्य नूतन चिर पुरातन है। इसके संवाद में तत्कालीन समय का युगबोध है तो स्व के प्रति गंभीर विवेचना भी है। हमारे समाज की विशेषता है कि आपको बुद्धिजीवी होने हेतु संत होना पड़ेगा। संत को रूप-रंग, स्वाद, गंध, स्पर्श, शब्द, मद-मोह से दूर होना पड़ेगा।
हमारा जनमानस तीन प्रकार की वृति करता है-
कर्म वृत्ति यानी जड़ पदार्थों से सृष्टि करने वाले को कर्म वृति कहते है। वैश्य वृति में चेतन से चेतन की वृद्धि करने वाले समाज को वैश्य वृत्ति कहते है, और सबसे बढ़कर भिक्षावृति जिसकी हमारे देश में दस हजार से अधिक जातियां है। इन वृत्तियों के लिए किए गए कर्म से ही हमारे जीवन का सारांश प्रकट होता है। क्योंकि हमारा जन्म नहीं हमारा मृत्यु महत्वपूर्ण है आप अपने पीछे क्या छोड़ कर जाते है।

भीतर के अंधकार को मिटाने का यह त्यौहार है
जीवन मिलता नहीं निर्मित करना होता है। जन्म मिलता है जीवन नहीं। संस्कृति हमारे सोच को प्रलक्षित करती है तकनीक से सभ्यता बनती है जो नष्ट हो जाती है जबकि संस्कृति भाव प्रधान होती है, यह अक्षुण रहती है। हमारे संस्कृति में संवाद का आधार व्याकरण है जबकि पश्चिम में बातचीत करने का आधार विज्ञान है। दीपक अलौकिक तमसो मा ज्योतिर्गमय, हमें सदैव अंधेरे से जूझने का प्रेरणा देता है। अद्भुत है अंधकार को चीरकर फैलाती प्रकाश की वह प्राण शक्ति जो हमें निरंतर दीपक की भांति सदैव प्रकाशित होने का संदेश देती रहती है।

दीपावली एक लौकिक पर्व है। पर्व का संदेश है कि यह केवल ‘बाहरी अंधकार को ही नहीं, बल्कि भीतरी अंधकार को भी मिटाने का त्यौहार बने। हम धर्म का दीप जलाकर मोह के अंधकार को दूर कर सकते हैं। दीपावली पर हम साफ-सफाई कर घर को संवारने-निखारने का प्रयास करते हैं। उसी प्रकार यदि चेतना के आंगन पर जमे कर्म के कचरे को साफ किया जाए, उसे संयम से सजाया-संवारा जाए और उसमें आत्मा रूपी दीपक की अखंड ज्योति को प्रज्वलित किया जाए तो मनुष्य शाश्वत सुख, शांति एवं आनंद को प्राप्त कर सकता है।

सहयोग व समन्वय का त्यौहार

जहां धर्म का सूर्य उदित हो गया, वहां का अंधकार टिक नहीं सकता। वस्तुतः, जीवन का वास्तविक प्रकाश परिधान, भोजन, भाषा और सांसारिक साधन-सुविधाएं नहीं हैं। वास्तविक उजाला तो मनुष्य में व्याप्त उसके आत्मिक गुणों के माध्यम से ही प्रकट हो सकता है। जीवन की सार्थकता और उसके उजालों का मूल आधार व्यक्ति के वे गुण हैं जो उसे मानवीय बनाते हैं, जिन्हें संवेदना और करुणा के रूप में, दया, सेवा-भावना और परोपकार के रूप में हम देखते हैं। इन्हीं गुणों के आधार पर मनुष्य अपने जीवन को सार्थक बनाता है। जिनमें इन गुणों की उपस्थिति होती है, उनकी गरिमा चिरंजीवी रहती है। स्मरण रहे कि जिस तरह दीप से दीप जलता है, वैसे ही प्रेम देने से प्रेम बढ़ता है और यही वास्तविक प्रकाश का निमित्त बनता है।

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