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क्या हमें आध्यात्मिक और सांसारिक दोनों तरह का ज्ञान देने वाले गुरु चाहिए?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

रामायण में राम के दो गुरु हैं : वशिष्ठ और विश्वामित्र। और इन दो गुरुओं में बड़ा अंतर है। वशिष्ठ वैदिक ज्ञान से जुड़े हुए हैं। राम अपना अध्ययन पूरा करने के बाद विश्व की यात्रा करते हैं। इस यात्रा से वे विश्व के मायावी स्वरूप से निराश होकर लौटते हैं और इसलिए सांसारिक जीवन में कोई दिलचस्पी नहीं रखते।

भयभीत होकर राम के पिता दशरथ, वशिष्ठ ऋषि से मदद मांगते हैं। राम से मिलकर वशिष्ठ ऋषि घोषणा करते हैं कि असल में राम की यह परिस्थिति अच्छी है क्योंकि वे अब वेदों के सर्वश्रेष्ठ ज्ञान को प्राप्त करने के लिए तैयार हैं। इसके बाद वशिष्ठ ऋषि लगातार 21 दिनों तक राजदरबार में योग वशिष्ठ सुनाते हैं। यह सुनकर राम विश्व की वास्तविकता के सच्चे स्वरूप को समझते हैं। इससे प्रबुद्ध होकर सांसारिक जीवन के प्रति उनकी बेचैनी दूर हो जाती है।

एक सीख जो उन्हें मिलती है, वह है सहसंबंध और कारणत्व में अंतर। जब कौवे के पेड़ पर बैठने के बाद एक नारियल पेड़ से गिरता है तो इसका मतलब यह नहीं कि कौवा कारण है और नारियल का गिरना उस कारण का परिणाम है। ऐसी घटनाएं जो संयोगवश होती हैं, उन्हें हम अक्सर ग़लती से एक-दूसरे का कारण समझने लगते हैं और इसकी वजह से दुनिया में बहुत सारे दुःखों का निर्माण होता है। एक और सीख यह है कि जैसे अस्थिर पानी में चांद के कई प्रतिबिंब दिखाई देते हैं, वैसे ही अशांत मन के कारण हम वास्तविकता के कई रूप देखते हैं, लेकिन सत्य को नहीं देख पाते।

विश्वामित्र वशिष्ठ से बहुत अलग गुरु हैं। राजा के रूप में जन्मे विश्वामित्र ऋषि बनने के पहले एक महान योद्धा थे। दशरथ के विरोध के बावजूद वे राम को वन में ले जाते हैं। वहां वे राम के हाथों राक्षसी ताड़का का वध करवाते हैं, जिसने उनके यज्ञ में विघ्न डाला था। फिर वे राम के हाथों ऋषि गौतम की पत्नी अहल्या को पुनर्जीवित करवाते हैं, जिसे पतिलंघन के आरोप में पत्थर में बदल दिया गया था। इस तरह उनके कहने पर राम जीवन लेते भी हैं और जीवन प्रदान भी करते हैं।

वे राम को उनके महान पूर्वजों की कहानियां बताते हैं – कैसे राजा सागर ने महासागर का निर्माण किया और कैसे राजा भगीरथ की तपस्या से गंगा धरती पर बहने लगी। आखिर में वे राम को मिथिला ले जाते हैं जहां राम शिव के धनुष पर प्रत्यंचा बांधकर जनक की बेटी सीता से विवाह करते हैं।

इस तरह वशिष्ठ राम को आध्यात्मिक ज्ञान देते हैं, जबकि विश्वामित्र उन्हें सांसारिकता सिखाते हैं। वशिष्ठ राम के परिदृश्य में विस्तार लाते हैं, जबकि विश्वामित्र उनके ध्यान को वर्तमान में केंद्रित करते हैं। दोनों ही मान्य हैं।

महाभारत में इसी विचार को अलग तरीक़े से प्रस्तुत किया गया है। द्रोण पांडवों को सांसारिक ज्ञान देते हैं : धनुर्विद्या, जो उन्हें युद्ध लड़ने और दुश्मनों पर विजय प्राप्त में मदद करती है। लेकिन कृष्ण उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान देते हैं, वैदिक ज्ञान जो उन्हें दुनिया को समझने में मदद करता है, जो अर्जुन को अपनी निराशा और दुविधा को भुलाने में सक्षम बनाता है।

रामायण और महाभारत दोनों में वैदिक या आध्यात्मिक ज्ञान नायकों को सांसारिक जीवन जीने में सक्षम बनाता है। यह ज्ञान उन्हें वैरागी नहीं बनाता, बल्कि उन्हें राजाओं व योद्धाओं में बदलने में मदद करता है। विश्वामित्र और द्रोण की सीखें व्यावहारिक होते हुए राम और पांडवों को लक्ष्य तक पहुंचने में भले ही सक्षम बनाती हों, लेकिन वह उन्हें जीवन के नैतिक मुद्दों का सामना करने में सक्षम नहीं बनातीं। सक्षम बनाती हैं वशिष्ठ और कृष्ण की सीखें।

इस तरह जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए हमारे लिए दोनों तरह के गुरु जरूरी हैं, ऐसे गुरु जो हमें आध्यात्मिक एवं सांसारिक ज्ञान दोनों दें। दोनों ज्ञान मिलने पर ही हम संतोषजनक जीवन जी सकते हैं।

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