दहेज एक सामाजिक बुराई-सुप्रीम कोर्ट.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि दहेज एक सामाजिक बुराई है लेकिन इस बात को लेकर समाज के भीतर बदलाव होना चाहिए कि जो महिला परिवार में आई है, उसके साथ किस तरह का व्यवहार किया जाता है और किस तरह लोग उसका सम्मान करते हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि महिलाओं की स्थिति पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। कानून होने के बावजूद दहेज जैसी सामाजिक बुराई के कायम रहने पर सुप्रीम कोर्ट ने कानून पर फिर विचार करने की जरूरत बताई।
विधि आयोग को दें सुझाव
सर्वोच्च अदालत ने कहा कि विधि आयोग को पूरे परिप्रेक्ष्य के साथ इस पर विचार करना चाहिए। हालांकि कोर्ट ने दहेज कानून को और सख्त तथा प्रभावी बनाने के लिए आदेश देने से इन्कार करते हुए कहा कि यह विधायिका के क्षेत्राधिकार में आता है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह अपने सुझाव विधि आयोग को दें। विधि आयोग उन पर विचार करेगा।
याचिका में की गई थीं ये मांगें
- प्रत्येक राज्य और सरकारी दफ्तर में सूचना अधिकारी की तर्ज पर दहेज निरोधक अधिकारी होना चाहिए, जो दहेज निरोधक कानून को कड़ाई से लागू करे
- दहेज निरोधक अधिकारी दहेज न लेने का प्रमाणपत्र जारी करे और शादी के रजिस्ट्रेशन के लिए वह प्रमाणपत्र जरूरी किया जाए। सरकारी नौकरी और सरकारी योजनाओं के लिए यह प्रमाणपत्र जरूरी हो
- दहेज निरोधक कानून का दुरुपयोग करने वालों और उसका समर्थन करने वाले पुलिस अधिकारी दोनों पर पेनाल्टी के प्रविधान किए जाएं, ताकि कानून का दुरुपयोग न हो
दहेज पर पूरी तरह रोक की मांग
ये निर्देश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और एएस बोपन्ना की पीठ ने समाज सेवी साबू स्टीफेन और दो अन्य की ओर से दाखिल जनहित याचिका निपटाते हुए दिए। तीसरी याचिकाकर्ता ने स्वयं को भी दहेज संबंधी मामले की पीडि़त बताया था। याचिका में दहेज पर पूरी तरह रोक लगाने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी।
कानून होने के बावजूद दहेज प्रथा कायम
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील बीके बिजू ने कोर्ट से कहा कि कानून होने के बावजूद दहेज प्रथा कायम है। इसलिए कानून को और ज्यादा कड़ा व प्रभावी बनाने की जरूरत है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता की चिंता से सहमति जताते हुए कहा कि मौजूदा कानून में किस तरह के बदलाव और उपायों की जरूरत है, इस पर चर्चा और विचार होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि उचित होगा कि विधि आयोग पूरे परिप्रेक्ष्य के साथ मसले पर विचार करे। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को विधि आयोग के समक्ष बात रखने की छूट देते हुए याचिका निपटा दी।
प्री मैरिज काउंसलिंग प्रामणपत्र अनिवार्य करने की मांग
याचिका में कई मांगें की गई थीं। एक मांग यह भी थी कि शादी के रजिस्ट्रेशन प्रमाणपत्र से पहले स्पेशल प्री मैरिज काउंसलिंग प्रामणपत्र होना जरूरी किया जाए। पीठ ने इस संबंध में आदेश देने से मना करते हुए कहा कि इसके गंभीर परिणाम होंगे। भारत सिर्फ केरल, मुंबई या दिल्ली में ही नहीं बसता। भारत गांवों में भी बसता है। गांवों में करिकुलम एक्सपर्ट नहीं मिलेंगे। अगर कोर्ट कह देगा कि जब तक कोर्स नहीं एटेंड किया, तब तक शादी पंजीकृत नहीं होगी तो सोचिये ग्रामीण महिलाओं का क्या होगा, जो यह कोर्स एटेंड नहीं कर सकतीं।
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