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डॉ. भीमराव अम्बेडकर अक्षुण्ण भारतीय संस्कृति के चिंतक हैं-प्रो. संजय श्रीवास्तव

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार के सामाजिक विज्ञान संकाय के तत्वावधान में “राष्ट्र निर्माण में डॉ. बी. आर. अम्बेडकर का योगदान” विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। डॉ. बी. आर. अम्बेडकर की 133वीं जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी की अध्यक्षता माननीय कुलपति प्रो. संजय श्रीवास्तव ने की।

अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रो. संजय श्रीवास्तव ने कहा कि डॉ. भीमराव अम्बेडकर जीवन के प्रारंभिक दौर में सामाजिक विभेद का शिकार रहे, किंतु उनकी दृष्टि अपने उद्देश्य से नहीं भटकी। उन्होंने सदैव स्वयं को व्यापक संदर्भ से जोड़कर रखा। अमेरिकी शिक्षाशास्त्री जॉन डिवी का प्रभाव डॉ. भीमराव अम्बेडकर की वैचारिकी निर्मिती में है। छात्र के रूप में डॉ. साहब की जिजीविषा अद्भुत थी। विश्वविद्यालय के विद्यार्थी साथियों के लिए यह प्रेरणा है।

डॉ. भीमराव अम्बेडकर सामाजिक परिष्कार के चिंतक हैं-श्री राम कुमार

राष्ट्रीय संगोष्ठी के मुख्य अतिथि श्री राम कुमार,सामाजिक चिंतक ने कहा कि मन का संकल्प उन प्रश्नों का उत्तर है जो समाज से उपजते हैं। डॉ. भीमराव अम्बेडकर सामाजिक परिष्कार के चिंतक हैं। डॉ. अम्बेडकर जीवन में कर्म के प्रयत्न को महत्वपूर्ण मानते हैं। वह अवतारवाद के समर्थक नहीं हैं। उनका अटल विश्वास है कि मनुष्य के ‘स्व’ में उसका मानव रूप अवस्थित है। मनुष्य होने एवं बने रहने की प्रक्रिया में सार्थक कर्म सहयोगी है। अंत में प्रो. राम कुमार ने कहा कि डॉ. भीमराव अम्बेडकर का व्यक्तित्व ‘समग्र विकास’ का व्यक्तित्व है।

डॉ. अम्बेडकर का चिंतन वैश्विक चिंतन है-प्रो. रिपु सूदन सिंह

मुख्य वक्ता प्रो. रिपु सूदन सिंह ,आचार्य, राजनीति विज्ञान विभाग विभाग, समाज विज्ञान संकाय, बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ ने कहा कि डॉ. अम्बेडकर का व्यक्तित्व विभिन्न भूमिकाओं से निर्मित ‘ग्लोबल व्यक्तित्व’ है। अपनी पुस्तकों में वह ‘धर्म’ और ‘रिलीजन’ के बीच के अंतर को सप्ष्ट करते हैं। उनका मानना था कि भारतीय संदर्भ में धर्म रिलीजन नहीं है। धर्म अभ्युदय का मार्ग है। जिसके केंद्र में परिवार, समाज, राष्ट्र, विश्व एवं ब्रह्मांड का उत्कर्ष है।

डॉ. भीमराव अम्बेडकर राष्ट्र चिंतक हैं-प्रो. नरेंद्र कुमार

राष्ट्रीय संगोष्ठी के विशिष्ट वक्ता प्रो. नरेंद्र कुमार, आचार्य, राजनीतिक अध्ययन केंद्र, समाज विज्ञान संकाय जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय, नई दिल्ली ने कहा कि डॉ. अम्बेडकर की दृष्टि आधारभूत सामाजिक प्रगति के साथ ‘हॉलिस्टिक प्रगति’ की पक्षधर है। डॉ. अम्बेडकर सामाजिक दलित उत्थान के मसीहा ही नहीं अपितु आर्थिक विकास एवं स्वावलंबन के राष्ट्रीय चिंतक हैं।

वक्तव्य को विस्तार देते हुए प्रो. कुमार ने कहा कि राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया सतत प्रक्रिया है। महिलाओं के अधिकारों का सम्मिलन राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया का ही हिस्सा है। राष्ट्र का समवेत विकास सभी का विकास है। प्रगति की इस यात्रा में आत्मनिरीक्षण आवश्यक है।

संगोष्ठी के प्रारंभ में सभी का स्वागत एवं विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ. मुकेश कुमार, अध्यक्ष, शैक्षिक अध्ययन विभाग, म. गां. के. वि. वि.ने कहा कि डॉ. अम्बेडकर का जीवन विपरीत परिस्थितियों में सतत संघर्ष का संदेश है। ‘समरस संस्कृति’ के संवाहक डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने सामाजिक अंतर्विरोधों को चिन्हित करने एवं उन्हें दूर करने का कार्य किया है।

संगोष्ठी का ओजस्वी संचालन डॉ. अभय विक्रम सिंह,सह आचार्य, गांधी एवं शांति अध्ययन विभाग, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार) ने एवं राष्ट्रीय संगोष्ठी के संरक्षक प्रो. सुनील महावर, अधिष्ठाता, सामाजिक विज्ञान संकाय, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
इस दौरान डॉ. भीमराव अम्बेडकर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित लघु चलचित्र का प्रदर्शन किया गया। लघु चलचित्र का चयन, संयोजन डॉ. अम्बेडकर अनुसंधान केंद्र, नई दिल्ली द्वारा किया गया है।

महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान संकाय द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के सफल संचालन में आयोजन समिति के सम्मानित शिक्षक सदस्य प्रो. राजेंद्र सिंह,आचार्य, हिंदी विभाग, प्रो. रंजीत कुमार चौधरी,अध्यक्ष, पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान विभाग, डॉ. मुकेश कुमार, अध्यक्ष, शैक्षिक अध्ययन विभाग, डॉ. नरेंद्र सिंह, सहायक आचार्य, राजनीति विज्ञान विभाग, डॉ. सपना सुगंधा, सह– आचार्य, प्रबंधन विज्ञान विभाग, डॉ. पवन कुमार,सह– आचार्य, भौतिक विज्ञान विभाग, डॉ. कुंदन किशोर रजक,सहायक आचार्य, जंतु विज्ञान विभाग, डॉ. बबलू पाल, सहायक आचार्य, संस्कृत विभाग, डॉ. अनुपम कुमार वर्मा, सहायक आचार्य, समाज कार्य विभाग एवं डॉ. गरिमा तिवारी सहायक आचार्य, हिंदी विभाग की भूमिका रही। संगोष्ठी के दौरान विश्ववद्यालय के समस्त शोधार्थी, विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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