Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
ड्रैगन की कूटनीति को मिले आक्रामक जवाब. - श्रीनारद मीडिया

ड्रैगन की कूटनीति को मिले आक्रामक जवाब.

ड्रैगन की कूटनीति को मिले आक्रामक जवाब.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

चीन ने एक दुष्प्रचार के तहत लद्दाख के गलवन पर झूठा दावा करके झूठ फैलाने की कोशिश की। दरअसल चीन ने नए साल के मौके पर गलवन क्षेत्र का एक वीडियो जारी करके यह दावा किया कि जिस घाटी के लिए भारत और चीन के बीच खूनी झड़प हुई थी, वह इलाका अब उसका है। चीन की सरकारी मीडिया ने यह वीडियो जारी कर कहा था कि गलवन में उसके सैनिक अपना राष्ट्रीय झंडा लहरा रहे थे। चीन का यह वीडियो मंदारिन भाषा में जारी किया गया था

जिसमें यह भी कहा गया कि हम अपनी एक इंच जगह भी नहीं छोड़ेंगे। चीन के एक प्रमुख अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने लिखा था कि भारत के साथ लगती सीमा के नजदीक गलवन घाटी में एक इंच जमीन भी नहीं छोड़ेंगे। इसके जरिये चीन ने यह अफवाह फैलाने की कोशिश की थी कि लद्दाख में चीन सामरिक रूप से मजबूत स्थिति में है।

जब चीनी वीडियो पर सवाल उठने लगे तो भारतीय सेना ने बिना देर किए चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के झूठ को बेनकाब किया और जवाब देते हुए कहा कि चीन ने गलवन घाटी के जिस इलाके में झंडा फहराया वह इलाका हमेशा से उसके ही कब्जे में रहा है तथा इस क्षेत्र को लेकर कोई नया विवाद नहीं है। दरअसल जिस जगह पर यह वीडियो शूट किया गया था वह बफर जोन के बाहर का है।

यह हिस्सा एलएसी पर चीन की तरफ का है। इसके लिए भारतीय सेना ने दो तस्वीरें जारी कीं जिसमें सेना के जवान तिरंगे के साथ नजर आ रहे हैं। इस तरह चीन के कूटनीतिक मंसूबों एवं फर्जीवाड़े को बेहतर ढंग से जवाब दिया गया। भविष्य में भी भारत को चीन की अविश्वसनीय चालों के प्रति सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि चीन भारत के इलाकों पर कुदृष्टि लगाए बैठा है।

भारत पर दबाव बनाने के उद्देश्य से चीनी सेना पूर्वी लद्दाख में एलएसी के पास पैंगोंग त्सो झील के अपने वाले हिस्से में एक पुल बना रही है। इस पुल के बन जाने से चीनी सेना युद्ध की स्थिति उत्पन्न होने पर भारतीय सीमा के निकट शीघ्रता से पहुंच जाएगी। अभी तक इस हिस्से में पहुंचने में चीनी सेना को 200 किमी का लंबा रास्ता तय करना पड़ता है।

इस पुल के बन जाने से यह दूरी महज 50 किमी ही रह जाएगी। विदित हो कि पैंगोंग त्सो झील की लंबाई 135 किमी है। स्थलीय सीमा से घिरी हुई इस झील का कुछ हिस्सा लद्दाख और बाकी हिस्सा तिब्बत में है। झील के उत्तरी तट पर फिंगर आठ से 20 किमी पूर्व में ब्रिज का निर्माण किया जा रहा है। इस क्षेत्र में पीएलए के अनेक सीमावर्ती ठिकाने हैं।

विदित हो कि अगस्त 2020 में चीनी सेना पैंगोंग त्सो झील के फिंगर चार तक आ गई थी। करीब डेढ़ साल के तनाव के बाद चीनी सेना पीछे हटी, लेकिन अब उसने अपनी तरफ पुल बनाना शुरू कर दिया है। सामरिक दृष्टिकोण से चीन इस पुल से भारतीय सेना की गतिविधियों की निगरानी आसानी से कर सकेगा। पीएलए ने इस पुल से आने-जाने के लिए सड़क बनाने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है।

युद्ध की आवश्यकता पडऩे पर चीनी सैनिकों और सैन्य उपकरणों की तेजी से तैनाती के लिए यह नया मार्ग बन सकेगा। पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग त्सो झील पर चीन द्वारा पुल बनाए जाने पर भारत ने स्पष्ट किया है कि यह निर्माण झील के उस हिस्से में किया जा रहा है जो एलएसी के पार बीते 60 वर्षों से चीन के अवैध कब्जे में है, लेकिन भारत ने इस अवैध कब्जे को कभी स्वीकार नहीं किया है। भारत सरकार अपने सुरक्षा हितों की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए इस पर नजर बनाए हुए है और इस स्थिति से निपटने के लिए भारत आवश्यक उपाय कर रहा है।

चीन का नया भूमि सीमा कानून : नए साल के आरंभ के पहले दिन ही चीन द्वारा अपना नया भूमि सीमा कानून लागू कर दिया गया है। इस कानून के लागू हो जाने से आने वाले समय में भारत को अपनी उत्तरी सीमा पर और अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि चीन अब वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर वर्तमान विवादित स्थानों को लेकर और अडिय़ल रुख अपना सकता है।

अब चीन एलएसी पर अपने अधिक माडल गांवों को बसाने का काम कर सकता है। चीन इन गांवों का उपयोग सैन्य और नागरिक दोनों उद्देश्यों के लिए करेगा। उल्लखनीय है कि चीन का यह भूमि सीमा कानून गत वर्ष अक्टूबर में चीन के शीर्ष विधायी निकाय नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की स्थायी समिति ने अपने सीमावर्ती क्षेत्रों के संरक्षण और शोषण का हवाला देते हुए इसे पारित किया था।

नए सीमा कानून की आड़ में चीन द्वारा भारत और भूटान के साथ क्षेत्रीय सीमाओं को एकतरफा सीमांकित करने का नया प्रयास होगा। इसलिए यह कानून भारत के लिए विशेष प्रभावकारी होगा। चीन इस तरह के कानून लाकर भारत के साथ लगती सीमा पर तथा भारतीय सीमा के अंदर माडल रूप दिए जाने वाले 624 गांवों के त्वरित निर्माण के साथ चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ने सीमा मुद्दे के सैन्यीकृत समाधान के लिए नई परिस्थितियां उत्पन्न कर दी हैं।

सैन्य तकनीक में यह एक तरह की हाइब्रिड युद्ध पद्धति है। इस युद्ध पद्धति को दूसरे देशों के संप्रभु क्षेत्रों को अवैध रूप से अपने नियंत्रण में लेने के लिए लागू किया जाता है। युद्ध की इस नई रणनीति से राष्ट्र निर्माण की कथित प्रक्रिया को एक कानूनी रूप प्रदान कर दिया जाता है और इसका कोई विरोध भी नहीं कर पाता है।

चीन ने एक और कूटनीतिक चाल के तहत अब मानचित्र पर भी चालाकियों वाला रास्ता अपना लिया है। उसने भारत से लगने वाले कई सीमाई इलाकों के नाम बदलने शुरू कर दिए हैं। इनमें अरुणाचल प्रदेश स्थित सामरिक रूप से महत्वपूर्ण सेला दर्रा भी शामिल है। चीन का यह कदम एक नए मनोवैज्ञानिक युद्ध वाला कहा जाएगा। हालांकि चीन का यह मनोवैज्ञानिक कदम सही तथ्य को बदल नहीं सकता, क्योंकि ये भारत के अंग हैं, लेकिन वह अपनी हरकत से बाज नहीं आ रहा है।

चीन के असैन्य मामलों के मंत्रालय ने सेला दर्रे का नाम बदलकर Óसे लाÓ कर दिया। चीन ने यह कदम एक जनवरी 2022 से लागू हुए सीमाई क्षेत्र संरक्षण और दोहन संबंधी नए कानून के तहत उठाया है। चीन ने जिन जगहों के नाम बदले हैं उनमें कई अरुणाचल प्रदेश के भाग हैं। अब उसने तिब्बत के कुछ हिमालयी हिस्सों पर दावे के लिए मानचित्र पर दर्ज नामों में बदलाव प्रारंभ कर दिया है। चीन की यह कूटनीतिक चाल भी एक नई रणनीति है। भारत को इसका आक्रामक जवाब देना होगा।

चीनी कर्ज में लंका और भारतीय सहयोग चीन के कर्ज जाल में फंसकर श्रीलंका इन दिनों काफी परेशान है। कोविड महामारी ने श्रीलंका के आर्थिक स्थिति को और अधिक खराब कर दिया है। इसी परेशानी से निपटने के लिए भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और श्रीलंका के वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे के बीच 15 जनवरी को वर्चुअल वार्ता में आर्थिक स्थिति पर व्यापक चर्चा हुई।

इस चर्चा में भारतीय विदेश मंत्री ने राजपक्षे को आश्वस्त किया कि भारत हर स्थिति में श्रीलंका के साथ है और हरसंभव तरीके से मुश्किल हालातों से उबरने में उसकी मदद करेगा। इस वार्ता में एस. जयशंकर ने दोनों देशों के प्राचीन संबंधों का हवाला देते हुए कहा कि भारत उन संबंधों को हमेशा कायम रखेगा। इस दौरान भारत के सहयोग वाली परियोजनाओं पर भी बातचीत हुई जिन्हें मजबूती देकर श्रीलंका की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाया जा सकता है।

इस वार्ता में बासिल राजपक्षे ने भारत के हमेशा से रहे सहयोगी रुख की प्रशंसा की और उसके लिए आभार भी व्यक्त किया। इस दौरान उन्होंने बंदरगाह, बुनियादी सुविधाओं, ऊर्जा और औद्योगिक क्षेत्र में श्रीलंका में भारत के निवेश की विशेष आवश्यकता बताई। वार्ता में भारत ने श्रीलंका को आश्वासन दिया कि दो महीने के अंदर वह करीब चार हजार करोड़ रुपये की आर्थिक मदद करेगा। इसके अतिरिक्त 11 हजार करोड़ रुपये की कीमत से ज्यादा का जरूरी सामान कर्ज पर देगा।

उल्लेखनीय है कि श्रीलंका पर चीन का लगभग 37 हजार करोड़ रुपये का कर्ज चढ़ गया है। यह रकम श्रीलंका को इसी वर्ष चुकानी है। श्रीलंका के लिए परेशानी की बात यह है कि वर्तमान में उसके पास लगभग 11 हजार करोड़ रुपये का ही विदेशी मुद्रा भंडार बचा है। श्रीलंका पर कुल 54 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है। इसे देखते हुए श्रीलंका पर चीन का कर्ज उसके कुल कर्ज का लगभग 68 प्रतिशत है।

स्थिति यह है कि चीन की खाद्य महंगाई दर इस समय 22 फीसद से अधिक हो गई है। आर्थिक आपातकाल की स्थिति की घोषणा के बीच श्रीलंका में सेना की निगरानी में जनता को राशन बांटना पड़ रहा है। लोगों के पास खाने की चीजें खरीदने के लिए पैसे नहीं रह गए हैं। दुकान वाले एक किलो दूध पाउडर को 200-200 ग्राम के पैकेट में बांटकर बेच रहे हैं, क्योंकि लोग एक किलो का पैकेट खरीद नहीं पा रहे हैं। विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक कोरोना काल में ही सवा दो करोड़ की जनसंख्या वाले श्रीलंका में तकरीबन पांच लाख लोग गरीबी की रेखा से नीचे चले गए हैं।

उम्मीद है कि श्रीलंका को इस महीने भारत की ओर से लगभग 90 करोड़ डालर के दो वित्तीय पैकेज मिलेंगे। बीते दिनों एक अखबार ने भारत सरकार के सूत्रों के हवाले से अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी थी कि श्रीलंका को कुल राशि में लगभग 30 अरब की रकम मुद्रा की अदला-बदली की सुविधा के तहत दी जाएगी, जबकि शेष रकम ईंधन से जुड़ी है। श्रीलंका सरकार के वित्तीय सहायता निवेदनों पर भारत सरकार जल्द ही राहत पैकेज की तैयारी में है।

राहत पैकेज भेजने में देरी का प्रमुख कारण यह है कि भारत ने उत्पादों के लिए ऋण सीमा बंद कर दी थी। श्रीलंका सरकार के अनुरोध पर इसे दोबारा शुरू किया गया है। श्रीलंका सरकार की 74 अरब रुपये से ज्यादा वाली मांगी गई सुविधा को भेजने में दस्तावेजी प्रक्रिया के कारण अभी कुछ समय लग सकता है।

चीन की कर्ज नीति से यूरोपीय देश लिथुआनिया भी परेशान है। चीन ने यूरोप के 17 प्लस प्लान में लिथुआनिया से व्यापार संबंध बढ़ाए और लगभग 60 बड़ी कंपनियों के साथ करार किया, लेकिन अब वह उन्हें पंगु बना चुका है। चीन का मालदीव पर 23 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है। यही नहीं, चीन का दक्षिण एशिया के कई अन्य देशों पर भी कर्ज बढ़ रहा है। विदित हो कि चीन कठोर शर्तों वाली ऊंची ब्याज दर पर कर्ज देता है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!