भारत और भूटान की गाढ़ी दोस्ती में ड्रैगन का खलल!
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
14 अक्टूबर को भूटान और चीन के विदेश मंत्रियों की वर्चुअल बैठक में भारत की चिंता को बढ़ाया है। इस बैठक में दोनों देशों के बीच कई वर्षों से चले आ रहे सीमा विवादों को सुलझाने के लिए एक थ्री स्टेप रोड मैप के समझौते पर दस्तखत हुए हैं। भारत ने भले ही इस समझौते पर अपनी कोई विस्तृत प्रतिक्रिया न दी हो, लेकिन चीन के साथ चल रहे तनाव के चलते वह इस घटनाक्रम को नजरअंदाज करने की स्थिति में नहीं है। आखिर भारत की बड़ी चिंता क्या है। भारत और भूटान के बीच कैसे संबंध हैं। भारत और भूटान के संबंधों में क्या चीन दरार डालने की कोशिश कर रहा है।
भारत-भूटान रिश्तों के बीच आया चीन
1- प्रो. हर्ष वी पंत ने कहा कि खास बात यह है कि दोनों देशों के बीच यह समझौता डोकलाम ट्राई जंक्शन पर भारत और चीन की सेनाओं के बीच 73 दिनों तक चले गतिरोध के चार साल बाद हुआ है। डोकलाम में गतिरोध तब शुरू हुआ था, जब चीन ने उस इलाके में एक ऐसी जगह सड़क बनाने की कोशिश की थी, जिस पर भूटान का दावा था। डोकलाम की घटना के बाद चीन की विस्तारवादी नीति ने दोनों देशों के सामने सीमा सुरक्षा संबंधी चुनौतियां खड़ी कर दी हैं।
2- प्रो. पंत का कहना है कि दरअसल, चीन की सीमा 14 देशों के साथ लगती है। इनमें भारत और भूटान ऐसे देश हैं, जिनके साथ चीन का सीमा विवाद अब भी जारी है। वर्ष 2017 में भारत-चीन की बीच डोकलाम विवाद इसी सीमा विवाद का परिणाम था। इस समझौते के पूर्व भूटान और चीन के बीच कोई राजनयिक संबंध नहीं था, जबकि भारत भूटान के बीच काफी गहरे संबंध हैं। इस समझौते के पीछे चीन की मंशा ठीक नहीं लगती है। वह भूटान और भारत के बीच एक गैप बनाना चाहता है। चीन को भारत और भूटान के बीच गहरी दोस्ती कभी रास नहीं आई।
3- उन्हाेंने कहा कि चीन और भारत के बीच भूटान की भौगोलिक स्थिति बेहद खास है। भूटान को चीन और भारत के बीच का बफर जोन भी कहा जा सकता है। दरअसल, भारत के लिए भूटान का महत्व उसकी भौगोलिक स्थिति की वजह से ज्यादा है। वर्ष 1951 में चीन के तिब्बत पर कब्जा करने के बाद भारत के लिए भूटान का महत्व और बढ़ गया। भूटान के पश्चिम में भारत का अरुणाचल प्रदेश, दक्षिण-पूर्व में असम और पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग जिला है। दोनों देशों की सीमा में आने जाने के लिए वीजा की जरूरत नहीं होती है।
भारत के लिए क्या है बड़ी चुनौती
1- भूटान में राजशाही व्यवस्था के समापन के बाद लोकतांत्रिक भूटान अपनी एक स्वतंत्र विदेश नीति के लिए प्रयास कर रहा है। इस क्रम में वह भारत के साथ प्रगाढ़ संबंधों के अलावा चीन सहित अन्य शक्तियों के साथ भी संतुलन स्थापित करने में जुटा है। हालांकि, भारतीय हितों की चिंता को देखते हुए वह चीन के आकर्षण से बचता रहा है।
2- यह सत्य है कि चीन भूटान के साथ औपचारिक राजनीतिक और आर्थिक संबंध स्थापित करने का इच्छुक है तथा कुछ हद तक भूटान के लोग भी चीन के साथ व्यापार और राजनयिक संबंधों का समर्थन कर रहे हैं। इससे आने वाले समय में भारत के सामने कुछ अन्य चुनौतियां खड़ी हो सकती है।
3- आज भारत को भूटान की चिंताओं को दूर करने के लिए मजबूती से काम करने की जरूरत है, क्योंकि भूटान में चीनी हस्तक्षेप बढ़ने से भारत और भूटान के मजबूत द्विपक्षीय संबंधों की नींव कमजोर पड़ने का खतरा है। भूटान का राजनीतिक रूप से स्थिर होना भारत की सामरिक और कूटनीतिक रणनीति के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है।
भूटान को भारतीय मदद
- आठ लाख की आबादी वाले देश भूटान की अर्थव्यवस्था बहुत छोटी है। वह काफी हद तक भारत को होने वाले निर्यात पर ही निर्भर है। वर्ष 2000 से 2017 के बीच भूटान को भारत से बतौर सहायता लगभग 4.7 बिलियन डालर मिले, जो भारत की कुल विदेशी सहायता का सबसे बड़ा हिस्सा था।
- वर्ष 1961 में भारत के सीमा सड़क संगठन द्वारा शुरू किया गया प्रोजेक्ट दंतक किसी विदेशी धरती पर राष्ट्र निर्माण के लिए शुरू किया गया सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है। भारतीय सहायता से ही भूटान के तीसरे नरेश जिग्मे दोरजी वांगचुक ने भूटान योजना आयोग की नींव रखी थी और तब से भारत भूटान में चलने वाली योजनाओं के लिए आर्थिक सहायता देता रहा है, ताकि संसाधनों की कमी के कारण भूटान का विकास न रुके।
- अब तक भारत सरकार ने भूटान में कुल 1416 मेगावाट की तीन पनबिजली परियोजनाओं के निर्माण में सहयोग किया है और ये परियोजनाएं चालू अवस्था में हैं तथा भारत को विद्युत निर्यात कर रही हैं।
- भारत भूटान का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। वर्ष 2018 में दोनों देशों के बीच कुल द्विपक्षीय व्यापार 9228 करोड़ रुपए का था। इसमें भारत से भूटान को होने वाला निर्यात 6011 करोड़ रुपए तथा भूटान से भारत को होने वाला निर्यात 3217 करोड़ रुपए दर्ज किया गया।
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