भारत में विवाह का अर्थ-तंत्र
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत मैं विवाह व्यक्तिगत नहीं होते सामाजिक होते हैं। और किसी भी विवाह से जो लाभ होता है आर्थिक लाभ विशेष कर वह परिवार को नहीं होता है समाज को होता है। जैसे कि हम गांव में विवाह करते हैं तो उसमें टेंट हाउस, भोजन बनाने वाला, भोजन के बर्तन सप्लाई करने वाला, आजकल प्रचलन में खाना खिलाने वाले भी आ गए हैं,
कपड़ा बेचने वाला, कपड़ा सिलने वाला, फूलों की सप्लाई करने वाला, सब्जी का दुकानदार, अनाज का दुकानदार मसाले वाला, आजकल गैस की सप्लाई हो रही है तो गैस पर खाना बन रहा है तो गैस की सप्लाई करने वाला, पहले कोयले की सप्लाई करने वाला, उसके अलावा टोकरी एवम बांस के सामान बनाने वाला, घर बनाने वाला, घर की रंगाई पुताई करने वाला, लकड़ी की सप्लाई करने वाला, ईट की सप्लाई करने वाला, सिनहोरा बनाने वाला, इसके अतिरिक्त छोटे स्तर पर स्थानीय मिठाई के दुकानदार, गाड़ी वाले और इस तरह के अन्य लोगों को एक विवाह से आर्थिक लाभ प्राप्त होता है। जो व्यक्ति जितना अधिक खर्च करता है वह अपने आसपास के लोगों को उतना अधिक आर्थिक लाभ प्रदान करता है।
यह ध्यान में रखीयेगा मुझे नहीं लगता कि अंबानी परिवार की शादी इससे कहीं भी अलग है। अंतर केवल इतना है कि हमारे विवाह होता है तो लोग अपने कर्जे में चले जाते हैं उसे व्यक्ति ने अपनी संपत्ति के एक प्रतिशत से भी कम खर्च करके विवाह किया।
मुकेश अंबानी जी ने अपने बेटे की शादी पर 4000 करोड रुपए खर्च किए। बहुत से लोग चीज पर प्रश्न उठा रहे हैं कि भारत जैसे देश में इतने पैसे खर्च करने का क्या मतलब है। ओबवियसली इसमें से कुछ पैसे कलाकारों को गए होंगे अंतर यह है कि हमारे यहां बिहार में आर्केस्ट्रा बुलाते हैं इन्होंने इंटरनेशनल आर्केस्ट्रा बुलाया है। खर्चा तो लगेगा अगर आप अपनी बेटा की शादी में 25-50000 का आर्केस्ट्रा करते हैं तो आप अपनी औकात के अनुसार करते हैं उस व्यक्ति ने अपनी औकात के अनुसार जस्टिन बिबर, रिहन्ना को नचाया है शाहरुख खान को नचाया तो इसमें कौन सी बड़ी बात है।
अब जब भी कोई भी फंक्शन करते हैं तो उससे आपके आसपास के लोग सबसे अधिक लाभान्वित होते हैं। जब गांव में कोई भी फंक्शन होता है तो गांव के कई लोगों को उसमें लाभ मिलता है। कपड़ा धोने वाला हुआ बर्तन सप्लाई करने वाला हुआ सजावट करने वाला हुआ रंग रोगन करने वाला हुआ, जो लोग गांव में गाड़ियां खरीदने हैं बोलेरो उनकी गाड़ियां भी इसी से चलती हैं विवाह के सीजन से उनकी गाड़ियां चलती है।
देखा जाए तो अब यही चीज है जो गांव में छोटे स्तर पर होते हैं बड़े स्तर पर हुई है। गांव में और किसी को गेस्ट बुलाना है तो वह विधायक को बुलाता है एमपी को बुलाता है थोड़ा बड़ा हुआ तो मुख्यमंत्री तक को बुला लेगा यहां पीएम को बुलाया गया है। तो भाई बात बस अपनी औकात की है और पैसा जब खर्च होता है तो उससे लाभान्वित होने वालों में समाज का हर तबका होता है यहां भी समाज का हर तबका लाभांवित हुआ होगा, ठीक है जो इनके ड्रेस होंगे वह डिजाइनर के पास जाएंगे डिजाइनर से डिजाइन होगा लेकिन उसमें जो गोल्ड का काम है जो हीरे जवाहरात जड़े हुए हैं उसकी भी पॉलिशिंग कारीगरों ने की होगी तो उनके परिवार को तो फायदा हुआ होगा।
उनकी कैटरिंग में कितने लगे होंगे कितने बच्चों को उसे दिन कितने रुपए मिलेंगे उसकी फीस क्या रही होगी और कितने लंबे समय से चल रहा है, खाने की सप्लाई किसी बड़े होटल से हुई होगी उस होटल में जो सब्जी आई होगी वह कहां से आई होगी जो अन्न आया होगा वह कहां से आया होगा विदेश से तो नहीं आएगा तो पैसा भी तो इसी देसी किसानों के पास गया है। मान लेते हैं कि उन्होंने सिल्क का कपड़ा पहना है तो सिल्क कहां प्रोड्यूस होता है बनारस में भागलपुर में साउथ में भारत में प्रोड्यूस होता है
भारतीय से ही किया होगा, कॉटन है तो कॉटन के सबसे प्रोड्यूसर में से हम एक है तो भारत के किसी किसान के खेत का कॉटन होगा वह तो लाभ तो सबको मिला है। जब प्रक्रिया करते जाते हैं उसे कीमत बढती चली जाती है। ओबवियसली टॉप पर होगा उसको लाभ ज्यादा होगा जो नीचे होगा लाभ काम आएगा लेकिन आएगा तो सबके पास। तो इसके लिए बहुत अधिक परेशान होने की जरूरत नहीं है बहुत से लोगों की इनकम जो है दो पिछले तीन-चार महीने में कई गुना बढ़ गई होगी या मान के चलिए भले ही कोई बताए या ना बताएं आप उन तक पहुंचे या ना पहुंचे और मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण बात है कि इस पूरे तीन या चार महीने के कार्यक्रमों में कितने लोगों को लगातार काम मिला और उन्हें किस रेट से पेमेंट हुआ होगा यह भी देखने वाली बात हुई।
वास्तव में भारत में जितनी भी हमारी परंपराएं हैं उनका संबंध अर्थव्यवस्था से भी है आर्थिक व्यवस्था को भी ठीक रखने से उसका साथ-साथ उसने बहुत से पर्यावरणीय मुद्दों को भी ध्यान में रखा जाता है।
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