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ग्लोबल वार्मिंग के साथ अल-नीनो का प्रभाव - श्रीनारद मीडिया

ग्लोबल वार्मिंग के साथ अल-नीनो का प्रभाव

ग्लोबल वार्मिंग के साथ अल-नीनो का प्रभाव

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कई जलवायु मॉडलों ने मई 2023 में अल-नीनो की घटना होने की संभावना जताई है।

  • मार्च 2023 में रिकॉर्ड तीन वर्ष की ला निना घटना समाप्त हुई है और वर्तमान मे भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर का तापमान सामान्य है, जिसे तटस्थ चरण (Neutral Phase) के रूप में जाना जाता है।

अल-नीनो:

  • अल-नीनो की घटना की पहचान सबसे पहले पेरू के मछुआरों द्वारा पेरू के तट से दूर सतही जल के असामान्य रूप से गर्म होने के रूप में किया गया था।
    • स्पेनिश प्रवासियों ने इसे अल-नीनो कहा जिसका अर्थ स्पेनिश में “छोटा बच्चा” होता है।
  • यह अल-नीनो दक्षिणी दोलन (El Nino Southern Oscillation- ENSO) घटना का सामान्य से अधिक ऊष्म चरण है, जिसक दौरान भारत सहित विश्व के कई क्षेत्रों में आमतौर पर गर्म तापमान और सामान्य से कम वर्षा होती है।
  • अल-नीनो घटना के दौरान, दक्षिण अमेरिका के उत्तरी तट से भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान (SST) दीर्घकालिक औसत से कम से कम 0.5 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म होता है।
    • वर्ष 2015-2016 में हुई अल नीनो घटना के मामले में विसंगतियाँ 3 डिग्री सेल्सियस तक रिकॉर्ड उच्च हो सकती हैं।
  • अल-नीनो घटना का अनुमान नहीं लगाया जा सकता हैं और यह दो से सात वर्ष के अंतराल पर अनियमित रूप से घटित होती हैं।
  • जलवायु विज्ञानियों ने निर्धारित किया है कि अल-नीनो दक्षिणी दोलन के साथ-साथ होता है।
  • दक्षिणी दोलन उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर के ऊपर वायुदाब में बदलाव है।

आगामी अल-नीनो के संबंध में जलवायु मॉडल: 

  • भारत पर प्रभाव:
    • भारत हेतु कमज़ोर मानसून: मई या जून 2023 में अल-नीनो के विकास से दक्षिण-पश्चिम मानसून का मौसम कमज़ोर हो सकता है, जो भारत में होने वाली कुल वर्षा का लगभग 70% के लिये ज़िम्मेदार है साथ ही इस वर्ष पर भारत के अधिकांश किसान अभी भी निर्भर हैं।
      • हालाँकि, मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (MJO) और मानसून निम्न दाब प्रणाली जैसे उप-मौसमी कारक कुछ हिस्सों में अस्थायी रूप से वर्षा में वृद्धि कर सकते हैं जैसा कि वर्ष 2015 में देखा गया था।
    • गर्म तापमान: यह भारत और विश्वभर के अन्य क्षेत्रों जैसे कि दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और प्रशांत द्वीप समूह में ग्रीष्म लहर और सूखे का कारण बन सकता है।
  • पश्चिम में भारी वर्षा: यह संयुक्त राज्य अमेरिका में कैलिफोर्निया जैसे अन्य क्षेत्रों में भारी वर्षा और बाढ़ का कारण बनता है और प्रवाल भित्तियों के विरंजन का कारण बन सकता है।
  •  वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि: 2023 में अल-नीनो और 2024 में वैश्विक औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक औसत की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो सकता है।
    • महासागरों का गर्म होना भी अल-नीनो घटना के प्रमुख प्रभावों में से एक है।
      • यह तब है जब विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के अनुसार सागरीय ऊष्मा पहले से ही बहुत अधिक है।
  • विगत् घटनाएँ – प्रभाव:
    • वर्ष 2015-2016 में, भारत में व्यापक ग्रीष्म लहर की परिघटनाएँ  देखी गई थी, जिससे प्रत्येक वर्ष में लगभग 2,500 लोग मारे गए थे।
      • विश्वभर में प्रवाल भित्तियों का विरंजन मुख्य चिंता का विषय हैं और ताप विस्तार के कारण समुद्र का स्तर 7 मिलीमीटर बढ़ गया है।
    • ग्लोबल वार्मिंग के साथ, अल-नीनो वर्ष 2016 को सबसे गर्म वर्ष रहा था। 
    • वर्ष 1982-83 और 1997-98 की अल-नीनो घटनाएँ 20वीं सदी की सबसे तीव्र घटनाएँ थीं
      • 1982-83 के दौरान, पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से 9-18 डिग्री सेल्सियस अधिक था। 

MJO

  • MJO दो भागों से बना है: एक वर्द्धित वर्षा चरण और एक निम्नीकृत वर्षा चरण। 
    • वर्द्धित चरण के दौरान, पृष्ठीय पवन अभिसरण करती हैं, जिससे वायु ऊपर उठती है और अधिक वर्षा होती है। निम्नीकृत चरण में, वायु वायुमंडल के शीर्ष पर अभिसरित हो जाती हैं, जिससे वायु मंद हो जाती है और कम वर्षा होती है।
    • यह द्विध्रुव संरचना उष्ण कटिबंध में पश्चिम से पूर्व की ओर चलती है, जिससे वर्द्धित अवस्था में अधिक मेघ और वर्षा होती है और निम्नीकृत चरण में अधिक धूप और शुष्कता होती है।

ENSO का भारत पर  प्रभाव:

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