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भारतीय अर्थव्यवस्था पर मुद्रास्फीति का प्रभाव! - श्रीनारद मीडिया

भारतीय अर्थव्यवस्था पर मुद्रास्फीति का प्रभाव!

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

खुदरा मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जो 7.44% तक पहुँच गई, जिससे भारत के लिये गोल्डीलॉक्स परिदृश्य तैयार हुआ जो निवेशकों एवं बचतकर्ताओं की आर्थिक स्थिति के बारे में अनिश्चितताओं को दर्शाता है।

  • गोल्डीलॉक्स परिदृश्य एक अर्थव्यवस्था के लिये आदर्श स्थिति का वर्णन करता है जहाँ अर्थव्यवस्था बहुत अधिक विस्तार या संकुचन नहीं कर रही है। गोल्डीलॉक्स अर्थव्यवस्था में स्थिर आर्थिक विकास होता है, जिससे मंदी को रोका जा सकता है, लेकिन इतनी अधिक वृद्धि नहीं होती कि मुद्रास्फीति बहुत अधिक बढ़ जाए।

भारत का वर्तमान आर्थिक परिदृश्य और अनुमान:

  • GDP अनुमान:
    • वर्ष 2023-24 के लिये अनुमानित सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि 6.5% है, जबकि बेंचमार्क सेंसेक्स सूचकांक वर्तमान में 65,000 अंक पर है।
    • दूसरी ओर आगामी महीनों में सोने और बैंक जमा दरों के स्थिर रहने की उम्मीद है।
  • मुद्रास्फीति का अनुमान:
    • भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) का अनुमान है कि वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही तक मुद्रास्फीति 5% से ऊपर रहेगी और संभावित रूप से वर्तमान तिमाही (जुलाई-सितंबर) 2023 में 6.2% तक पहुँच जाएगी जो RBI के 4% के कम्फर्ट लेवल (Comfort Level) से अधिक होगी।
  • खाद्य मूल्य दबाव:
    • अगले कुछ महीनों तक खाद्य पदार्थों की कीमतें ऊँची रहने की आशंका है। जुलाई के आँकड़ों के अनुसार अनाज व दालों (दोनों में कुल 13%), मसालों (21.6%), दूध (8.3%) के साथ-साथ सब्जियों की कीमतों (37.3%) में वृद्धि देखी गई है।
    • सरकारी हस्तक्षेप और नई फसल की आवक से अंततः इस दबाव के कम होने की उम्मीद है।
  • ब्याज दरें और मौद्रिक नीति:
    • उच्च मुद्रास्फीति अनुमानों को देखते हुए ब्याज दर में किसी प्रकार की कटौती की संभावना अगले वित्तीय वर्ष (2024-25) तक के लिये टाल दी गई है
    • मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee- MPC) द्वारा आगामी बैठक में नीतिगत दरों को बनाए रखने की संभावना है जिसमें संभावित रूप से ब्याज दर में पहली कटौती अगले वित्तीय वर्ष में होगी।
  • बाज़ार दृष्टिकोण:
    • महँगाई और ऊँची ब्याज दरों के बावजूद भारतीय बाज़ार ने अच्छा प्रदर्शन किया है।
    • दृढ़ आय की संभावनाओं और स्टेबल मैक्रो कंडीशन के समर्थन से भारत ने अन्य बाज़ारों से बेहतर प्रदर्शन किया है।

बढ़ती महँगाई का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:

  • बाज़ारों पर प्रभाव:
    • जब मुद्रास्फीति अधिक होती है तो स्टॉक की कीमतें कम आँकी जाती हैं और सोने का मूल्य बढ़ जाता है। बढ़ती मुद्रास्फीति के कारण क्रय शक्ति कम हो जाती है जिससे वास्तविक आय कम हो जाती है।
    • इसके अतिरिक्त उच्च मुद्रास्फीति के परिणामस्वरूप ब्याज दरें उच्च होती हैं, जिससे इक्विटी की लागत प्रभावित होती है।
      • अप्रैल 2022 से भरतीय रिज़र्व बैंक की रेपो रेट में लगातार बढ़ोतरी के कारण उधार दरों में समग्र वृद्धि हुई है, जिससे विभिन्न प्रकार के ऋणों का काफी प्रभाव पड़ा है।
  • आय पुनर्वितरण:
    • मुद्रास्फीति का समाज के विभिन्न समूहों पर असमान प्रभाव पड़ सकता है। देनदारों से प्राप्त धन का मूल्य घटने से लेनदारों को नुकसान हो सकता है।
    • इसके विपरीत देनदारों को उन पैसों से ऋण चुकाने से लाभ हो सकता है जिनकी कीमत उनके उधार लेने के समय की कीमत से कम है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धात्मकता:
    • किसी देश में उच्च मुद्रास्फीति उसकी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धात्मकता को कम कर सकती है। यदि घरेलू कीमतें व्यापारिक साझेदार देशों की तुलना में तेज़ी से बढ़ें तो देश का निर्यात वैश्विक बाज़ार में कम आकर्षक हो सकता है।
  • पारिश्रमिक-मूल्य चक्र:
    • मुद्रास्फीति के कारण कभी-कभी बढ़ी हुई पारिश्रमिकी और मूल्य चक्र की शुरुआत हो सकती है। बढ़ती लागत के साथ समन्वय बनाने के लिये श्रमिक उच्च मज़दूरी की मांग करते हैं और व्यवसायों में लगने वाली उच्च लागतों के कारण कीमतें उच्च होती हैं जिनका दबाव उपभोक्ताओं पर पड़ता है। इस चक्र के परिणामतः मुद्रास्फीति की स्थिति लगातार बनी रह सकती है।

आगे की राह

  • मुद्रास्फीति की बढ़ती चिंताओं को देखते हुए सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक को मुद्रास्फीति के दबाव को प्रबंधित करने के लिये मिलकर काम करने की आवश्यकता है। इसमें खाद्य कीमतों को स्थिर करने, आपूर्ति शृंखला दक्षता में सुधार करने और सुरक्षात्मक मौद्रिक नीति बनाए रखने जैसे लक्षित उपाय शामिल हो सकते हैं।
  • सरकार को संतुलित बजट बनाए रखने, अनावश्यक व्यय को कम करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने वाले सुधारों एवं उपायों के माध्यम से राजस्व अर्जन को बढ़ावा देने पर ध्यान देना चाहिये।
  • RBI को सतर्क और डेटा-संचालित मौद्रिक नीति दृष्टिकोण अपनाना जारी रखना चाहिये। इसमें आर्थिक विकास संबंधी प्रभाव पर विचार करते हुए मुद्रास्फीति को प्रबंधित करने के लिये ब्याज दरों को समायोजित करना शामिल हो सकता है।
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