‘अंग्रेजी धन की भाषा है, हिंदी मन की भाषा है’-आशुतोष राणा,अभिनेता.

‘अंग्रेजी धन की भाषा है, हिंदी मन की भाषा है’-आशुतोष राणा,अभिनेता.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

मुंबई की लोकल ट्रेन में मैं रोज यात्रा करता हूं। भीड़ में बाकी सबकी तरह अकेला। सारी भाषाएं मैंने यहां सुनी हैं, पर बगैर परिचय वालों को एक-दूसरे से हमेशा हिंदी में ही बात करते सुना है। हम सबकी यात्र की बोली हिंदी है। साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता साहित्यकार और पत्रकार (अब दिवंगत) जयंत पवार की मानें तो ‘हिंदी अंग्रेजी से बेहतर इसलिए है, क्योंकि वह आम आदमी की भाषा है। उस आम आदमी की जिसे व्याकरण नहीं, संप्रेषण से मतलब है और जो विचार से नहीं, भावना से जुड़ा है।’

भाषा भावनाओं का वहन करने वाला माध्यम ही तो है, जिस कारण यह आम आदमी भाषा को बेहिचक मरोड़ता है और अपनी चाल में बैठा देता है। मुंबइया हिंदी इसीलिए मुंबईवालों की लोकभाषा है। और देश की भी। राष्ट्रभाषा वह होती है, जिसे देश के ज्यादातर लोग समझते या बोलते हों (भले वे इसे जाहिर न करें), जो देश के एक छोर से दूसरे छोर तक जानी जाए और जिसे अधिकतम लोगों का सम्मान हासिल हो।

हिंदी के महानतम पत्रकारों में गिने जाने वाले बाबूराव विष्णु पराड़कर की मातृभाषा मराठी थी। दक्षिण भारत के महानतम कवि सुब्रमण्यम भारती काशी में हिंदी पढ़े थे। ऐसी कितनी ही मिसालें हैं। ये सारे ही लोग भाषाई एकता के हिमायती रहे और हिंदी को उसका पुल बनाने के समर्थक, न कि भाषाई विभेद पैदा करने वाले।

सार्वजनिक रूप से हिंदी के विरुद्ध विषवमन करने वाले दक्षिण भारत के कई राजनीतिज्ञ अपने बच्चों को प्राइवेट ट्यूशन रखकर इसलिए हिंदी पढ़ा रहे हैं कि जिंदगी की दौड़ में वे पीछे नहीं रह जाएं! हिंदी फिल्मों को दक्षिण भारत में दर्शकों का टोटा कभी नहीं हुआ। जाहिर है दक्षिण के लोग ऊपर से जैसा भी जाहिर करें, भीतर से उन्हें मालूम है कि राष्ट्र की मुख्यधारा से उन्हें जोड़ेगी तो हिंदी ही।

हिंदी के विरुद्ध बयानबाजी के लिए अक्सर सुर्खियों में रहने वाले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के अपने पांच कालेज हैं और सभी के हिंदी विभाग तमिलनाडु में सर्वश्रेष्ठ कहलाते हैं। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की परीक्षाओं में अकेले 2020-21 में प्रथमा के लेकर पीएचडी तक साढ़े नौ लाख विद्यार्थी बैठे। मुंबई महानगरपालिका के ढेरों स्कूलों में मराठी के बाद हिंदी माध्यम का ही नंबर है। क्या वजह है कि बच्चे मातृभाषा कन्नड़, तेलुगु और तमिल भाषी माध्यम लेने के बजाय हिंदी माध्यम ही चुन रहे हैं?

दरअसल हिंदी में उन बच्चों के लिए स्कोप ज्यादा है। महाराष्ट्र और गुजरात सरीखे गैर हिंदी राज्यों के बहुत से लोग लगभग हिंदी भाषियों सरीखी ही हिंदी बोलते हैं। बता दें कि यह आदान-प्रदान एकतरफा नहीं है। मुंबई में रहने वाले हिंदी वाले भी कामचलाऊ मराठी तो समझ और बोल ही लेते हैं। हिंदी भाषी राज्यों से महाराष्ट्र में आकर बसे हिंदी भाषियों में मराठी सीखने वालों की तादाद पिछली दो जनगणनाओं के बीच 40 लाख से बढ़कर 60 लाख हो गई है। हिंदी से प्रेम, माने भारत से प्रेम। ‘अंग्रेजी धन की भाषा है, मन की भाषा तो हिंदी ही है’, कहना है फिल्म अभिनेता आशुतोष राणा का।

जाने-माने हिंदी-मराठी कवि प्रफुल्ल शिलेदार का कहना है, ‘जरूरत है हिंदी ही नहीं, सभी भारतीय भाषाओं की ओर देखने के लिए योजना और ठोस कार्यक्रम की और सभी भारतीय भाषाओं का एक मजबूत पुल बनाने की। सभी भारतीय भाषाओं का एक मजबूत जाल बनना चाहिए, जो एक-दूसरे को बचाने के काम आए।’

 

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!