Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
103 वर्ष बाद भी दीवारें सुनाती है क्रूरता की दास्तान. - श्रीनारद मीडिया

103 वर्ष बाद भी दीवारें सुनाती है क्रूरता की दास्तान.

103 वर्ष बाद भी दीवारें सुनाती है क्रूरता की दास्तान.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

डायर ने बिना रुके 10 मिनट तक चलवाईं थी गोलियां.

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

13 अप्रैल 1919 बैसाखी का दिन। शांतमयी ढंग से सैंकड़ो लोग सभा कर रहे थे कि अचानक तंग गली से भारी संख्या में पुलिस फोर्स बंदूकें लिए अंदर घुसती है। सबसे आगे खड़ा था जरनल डायर। उसके एक इशारे पर एकदम से बंदूकों की नलियों से सैकड़ो गोलियां बरस पड़ीं। गोलियों ने लोगों के सीने चीरने शुरु कर दिए। गोली चलते ही बाग में भगदड़ मच गई। बच्चे, बूढ़े, महिलां, नौजवान सभी अपनी जान बचाने को भागने लगे।

कुछ न बनता दिखा तो एक-एक कर सभी ने कुएं में कूदना शुरू कर दिया और देखते ही देखते सैकड़ों लोग मौत की नींद सो गए। यह सारी कहानी खुद जलियांवाला बाग की वही तंग गली, दीवारों पर लगे गोलियों के निशां खुद बयां करते हैं। आज इस घटना के 103 साल पूरे हो गए हैं लेकिन दीवारें क्रूरता की सारी कहानी बयां करती हैं।

jagran

100 साल पूरे होने पर केंद्र ने करवाई रेनोवेशन

साल 2019 में जलियांवाला बाग कांड के 100 साल पूरे होने पर केंद्र सरकार ने बीस करोड़ रुपये का बजट देकर बाग की रेनोवेशन का काम शुरु करवाया था। जिसके बाद 28 अगस्त 2021 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आनलाइन होकर बाग को जनता को समर्पित किया था।

jagran

जलियांवाला बाग स्थित शहीदी कुआं देखते हुए पर्यटक।

शहीदों को समर्पित तीन गैलरियां

बाग के अंदर शहीदों को समर्पित तीन गैलरियां बनाई गई हैं। शहीदों को किन यातनाओं को भोगना पड़ा, इसका उल्लेख किया गया है। डायर की क्रूरता और अंग्रेज हुकूमत की जांच कमेटी का ढोंग, सब कुछ इन्हीं गैलरियों में दर्शाया गया है।

jagran

जिस गली से अंग्रेज घुसे थे, वहां पर शहीदों की प्रतिमाएं

बाग में शहीदी कुएं के इर्द-गिर्द गैलरी बनाई गई है। दीवार पर गोलियों के निशान संरक्षित किए गए हैं। जिस गली से अंग्रेज बाग में घुसे थे, वहां पर शहीदों की प्रतिमाएं बनाई गई हैं। यह प्रतिमाएं हंसते-मुस्कुराते हुए बाग में जाते हुए लोगों की हैं, लेकिन यही लोग बाग में शहीद हो गए थे। हालांकि रेनोवेशन से पहले पुरानी गली थी। जोकि नानकशाही ईटों की बनी हुई थी। इसके अलावा पूरे बाग में सुंदर लाइटिंग की गई है। उल्लेखनीय है कि नवीनीकरण के लिए 15 फरवरी, 2020 को बाग पूरी तरह से बंद कर दिया गया था।

jagran

लाइट एंड साउंड कार्यक्रम सबको कर देता है भावुक

जलियांवाला बाग में लाइट एंड साउंड कार्यक्रम के जरिये शहीदों पर आधारित डाक्यूमेंट्री दिखाई जाती है। जोकि बाग में हुए नरसंहार की क्रूरता को बयां करती है। लाइट एंड साउंड कार्यक्रम के जरिए हर एक पहलु को पूरे विस्तार से बताया जाता है। जिसे देखने और सुनने वाले लोगों के अंदर शहीदों के प्रति एक अलग ही जज्बा भर जाता है।

13 अप्रैल ही वह दिन है जब 103 साल पहले जलियांवाला बाग में एकत्र हजारों भारतीयों का अंग्रेज अफसर जनरल डायर ने नरसंहार कर दिया था। अमृतसर के प्रसिद्ध स्‍वर्ण मंदिर से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित जलियांवाला बाग में उस दिन रविवार था और बैसाखी का मेला लगा था। उसमें शामिल होने सैकड़ों लोग वहां पहुंचे थे।

वहां एकत्र लोग रौलेट एक्ट का विरोध कर रहे थे। ब्रिटिश आर्मी का ब्रिगेडियर जनरल रेजिनैल्‍ड डायर रौलेट एक्‍ट का समर्थक था। उसकी मंशा थी कि इस हत्‍याकांड के बाद भारतीय डर जाएंगे, लेकिन इसके ठीक उलट ब्रिटिश सरकार के खिलाफ पूरा देश एक साथ खड़ा हो गया। कहा जाता है कि इसी के बाद भारत में ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिलने लगी।

jagran

सैनिकों ने बिना रुके दस मिनट तक गोलियां बरसाईं

जनरल डायर 90 सैनिकों को लेकर वहां पहुंचा था। सैनिकों ने एकमात्र प्रवेश द्वार वाले बाग को घेरकर बिना किसी चेतावनी के निहत्‍थे बूढ़ों, महिलाओं और बच्चों सहित सैकड़ों लोगों पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं। वहां मौजूद लोगों ने बाहर निकलने की कोशिश भी की, लेकिन रास्‍ता बहुत संकरा था, और डायर के फौजी उसे रोककर खड़े थे। इसी वजह से कोई बाहर नहीं निकल पाया और हिन्दुस्तानी जान बचाने में नाकाम रहे।

jagran

जनरल डायर के आदेश पर सैनिकों बिना रुके लगभग 10 मिनट तक गोलियां बरसाईं। इस घटना में करीब 1,650 राउंड फायरिंग हुई थी। सैनिक तभी रुके जब उनकी गोलियां खत्म हो गईं। कई लोग जान बचाने के लिए बाग में बने बाग में बने कुएं में कूद गए थे। इसे आज ‘शहीदी कुआं’ कहा जाता है। यह आज भी जलियांवाला बाग में मौजूद है। लोग यहां बलिदानियों को श्रद्धांजलि देने आते हैं।

बलिदान हुए थे एक हजार से ज्यादा लोग

ब्रिटिश सरकार के अनुसार इस फायरिंग में लगभग 379 लोगों की जान गई थी और 1,200 लोग ज़ख्‍मी हुए थे, लेकिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुताबिक उस दिन 1,000 से ज़्यादा लोग शहीद हुए थे, जिनमें से 120 की लाशें कुएं में से मिली थीं और 1,500 से ज़्यादा लोग घायल हुए थे।

jagran

डायर को देना पड़ा इस्तीफा

हत्‍याकांड की पूरी दुनिया में जमकर आलोचना हुई। 1919 के अंत में इसकी जांच के लिए हंटर कमीशन बनाया। कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद डायर का डिमोशन कर उसे कर्नल बना दिया गया, और साथ ही उसे ब्रिटेन वापस भेज दिया गया। इंग्लैंड में हाउस आफ कामंस में डायर के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया। दूसरी ओर हाउस आफ लार्ड्स ने डायर के लिए प्रशस्ति प्रस्ताव पारित किया। अंत में ब्रिटिश सरकार के निंदा प्रस्‍ताव के बाद 1920 में डायर को इस्‍तीफा देना पड़ा। 1927 में जनरल डायर की ब्रेन हेमरिज से मौत हो गई थी।

Leave a Reply

error: Content is protected !!