103 वर्ष बाद भी दीवारें सुनाती है क्रूरता की दास्तान.
डायर ने बिना रुके 10 मिनट तक चलवाईं थी गोलियां.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
13 अप्रैल 1919 बैसाखी का दिन। शांतमयी ढंग से सैंकड़ो लोग सभा कर रहे थे कि अचानक तंग गली से भारी संख्या में पुलिस फोर्स बंदूकें लिए अंदर घुसती है। सबसे आगे खड़ा था जरनल डायर। उसके एक इशारे पर एकदम से बंदूकों की नलियों से सैकड़ो गोलियां बरस पड़ीं। गोलियों ने लोगों के सीने चीरने शुरु कर दिए। गोली चलते ही बाग में भगदड़ मच गई। बच्चे, बूढ़े, महिलां, नौजवान सभी अपनी जान बचाने को भागने लगे।
कुछ न बनता दिखा तो एक-एक कर सभी ने कुएं में कूदना शुरू कर दिया और देखते ही देखते सैकड़ों लोग मौत की नींद सो गए। यह सारी कहानी खुद जलियांवाला बाग की वही तंग गली, दीवारों पर लगे गोलियों के निशां खुद बयां करते हैं। आज इस घटना के 103 साल पूरे हो गए हैं लेकिन दीवारें क्रूरता की सारी कहानी बयां करती हैं।
100 साल पूरे होने पर केंद्र ने करवाई रेनोवेशन
साल 2019 में जलियांवाला बाग कांड के 100 साल पूरे होने पर केंद्र सरकार ने बीस करोड़ रुपये का बजट देकर बाग की रेनोवेशन का काम शुरु करवाया था। जिसके बाद 28 अगस्त 2021 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आनलाइन होकर बाग को जनता को समर्पित किया था।
जलियांवाला बाग स्थित शहीदी कुआं देखते हुए पर्यटक।
शहीदों को समर्पित तीन गैलरियां
बाग के अंदर शहीदों को समर्पित तीन गैलरियां बनाई गई हैं। शहीदों को किन यातनाओं को भोगना पड़ा, इसका उल्लेख किया गया है। डायर की क्रूरता और अंग्रेज हुकूमत की जांच कमेटी का ढोंग, सब कुछ इन्हीं गैलरियों में दर्शाया गया है।
जिस गली से अंग्रेज घुसे थे, वहां पर शहीदों की प्रतिमाएं
बाग में शहीदी कुएं के इर्द-गिर्द गैलरी बनाई गई है। दीवार पर गोलियों के निशान संरक्षित किए गए हैं। जिस गली से अंग्रेज बाग में घुसे थे, वहां पर शहीदों की प्रतिमाएं बनाई गई हैं। यह प्रतिमाएं हंसते-मुस्कुराते हुए बाग में जाते हुए लोगों की हैं, लेकिन यही लोग बाग में शहीद हो गए थे। हालांकि रेनोवेशन से पहले पुरानी गली थी। जोकि नानकशाही ईटों की बनी हुई थी। इसके अलावा पूरे बाग में सुंदर लाइटिंग की गई है। उल्लेखनीय है कि नवीनीकरण के लिए 15 फरवरी, 2020 को बाग पूरी तरह से बंद कर दिया गया था।
लाइट एंड साउंड कार्यक्रम सबको कर देता है भावुक
जलियांवाला बाग में लाइट एंड साउंड कार्यक्रम के जरिये शहीदों पर आधारित डाक्यूमेंट्री दिखाई जाती है। जोकि बाग में हुए नरसंहार की क्रूरता को बयां करती है। लाइट एंड साउंड कार्यक्रम के जरिए हर एक पहलु को पूरे विस्तार से बताया जाता है। जिसे देखने और सुनने वाले लोगों के अंदर शहीदों के प्रति एक अलग ही जज्बा भर जाता है।
13 अप्रैल ही वह दिन है जब 103 साल पहले जलियांवाला बाग में एकत्र हजारों भारतीयों का अंग्रेज अफसर जनरल डायर ने नरसंहार कर दिया था। अमृतसर के प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित जलियांवाला बाग में उस दिन रविवार था और बैसाखी का मेला लगा था। उसमें शामिल होने सैकड़ों लोग वहां पहुंचे थे।
वहां एकत्र लोग रौलेट एक्ट का विरोध कर रहे थे। ब्रिटिश आर्मी का ब्रिगेडियर जनरल रेजिनैल्ड डायर रौलेट एक्ट का समर्थक था। उसकी मंशा थी कि इस हत्याकांड के बाद भारतीय डर जाएंगे, लेकिन इसके ठीक उलट ब्रिटिश सरकार के खिलाफ पूरा देश एक साथ खड़ा हो गया। कहा जाता है कि इसी के बाद भारत में ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिलने लगी।
सैनिकों ने बिना रुके दस मिनट तक गोलियां बरसाईं
जनरल डायर 90 सैनिकों को लेकर वहां पहुंचा था। सैनिकों ने एकमात्र प्रवेश द्वार वाले बाग को घेरकर बिना किसी चेतावनी के निहत्थे बूढ़ों, महिलाओं और बच्चों सहित सैकड़ों लोगों पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं। वहां मौजूद लोगों ने बाहर निकलने की कोशिश भी की, लेकिन रास्ता बहुत संकरा था, और डायर के फौजी उसे रोककर खड़े थे। इसी वजह से कोई बाहर नहीं निकल पाया और हिन्दुस्तानी जान बचाने में नाकाम रहे।
जनरल डायर के आदेश पर सैनिकों बिना रुके लगभग 10 मिनट तक गोलियां बरसाईं। इस घटना में करीब 1,650 राउंड फायरिंग हुई थी। सैनिक तभी रुके जब उनकी गोलियां खत्म हो गईं। कई लोग जान बचाने के लिए बाग में बने बाग में बने कुएं में कूद गए थे। इसे आज ‘शहीदी कुआं’ कहा जाता है। यह आज भी जलियांवाला बाग में मौजूद है। लोग यहां बलिदानियों को श्रद्धांजलि देने आते हैं।
बलिदान हुए थे एक हजार से ज्यादा लोग
ब्रिटिश सरकार के अनुसार इस फायरिंग में लगभग 379 लोगों की जान गई थी और 1,200 लोग ज़ख्मी हुए थे, लेकिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुताबिक उस दिन 1,000 से ज़्यादा लोग शहीद हुए थे, जिनमें से 120 की लाशें कुएं में से मिली थीं और 1,500 से ज़्यादा लोग घायल हुए थे।
डायर को देना पड़ा इस्तीफा
हत्याकांड की पूरी दुनिया में जमकर आलोचना हुई। 1919 के अंत में इसकी जांच के लिए हंटर कमीशन बनाया। कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद डायर का डिमोशन कर उसे कर्नल बना दिया गया, और साथ ही उसे ब्रिटेन वापस भेज दिया गया। इंग्लैंड में हाउस आफ कामंस में डायर के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया। दूसरी ओर हाउस आफ लार्ड्स ने डायर के लिए प्रशस्ति प्रस्ताव पारित किया। अंत में ब्रिटिश सरकार के निंदा प्रस्ताव के बाद 1920 में डायर को इस्तीफा देना पड़ा। 1927 में जनरल डायर की ब्रेन हेमरिज से मौत हो गई थी।
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