Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
102 वर्ष के होने पर भी लोक गायन की जंगबहादुर सिंह की टंकार की गूंज करती है आश्चर्यचकित - श्रीनारद मीडिया

102 वर्ष के होने पर भी लोक गायन की जंगबहादुर सिंह की टंकार की गूंज करती है आश्चर्यचकित

102 वर्ष के होने पर भी लोक गायन की जंगबहादुर सिंह की टंकार की गूंज करती है आश्चर्यचकित

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

सीवान के रघुनाथपुर के कौसड़ गांव के रहनेवाले जंगबहादुर बाबू के टंकार के मुरीद रहे साठ सत्तर के दशक में सीवान, छपरा, झरिया, धनबाद, बोकारो के लोग

धरोहर की धुन के लिए विशेष
✍️गणेश दत्त पाठक

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

लोक गीत के स्वर, तान और धुन आत्मा से संवाद कायम करते हैं और बेहद सुकून पहुंचाते हैं। लोक गायक अपने स्वर से संस्कारों को पिरोते हैं, परंपराओं को सहेजते हैं और अपने टनकारों से आमजन को अभिभूत कर जाते हैं। अब जरा कल्पना कीजिए, उस लोकगायक के बारे में जिनकी उम्र 102 साल हो चुकी है फिर भी उनके टनकार की गूंज कायम है। वे कोई पार्श्व गायक नहीं, जिसकी कहानियां जगह जगह छपती है वे तो आमजन के हृदय में बसने वाले फनकार हैं, जो लोक गीत के माध्यम से ही अपनी सशक्त उपस्थिति सिवान छपरा तथा झारखंड के कई क्षेत्रों में दर्ज कराते रहे हैं। जी, हम बात कर रहे हैं सिवान के रघुनाथपुर प्रखंड के कौसड़ गांव निवासी लोकप्रिय लोक गायक जंग बहादुर सिंह जी के बारे में।

ऊंचे स्केल वाले आवाज का जादू

भैरवी और रामायण के भोजपुरी गीतों के गायन के महारथी जंगबहादुर बाबू की गायकी एक समय विशेष प्रसिद्ध थी। उनके ऊंचे स्केल वाले आवाज का जादू जब चलता था तो सिवान छपरा तो छोड़िए झारखंड के इलाकों झरिया, धनबाद, बोकारो तक श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते थे। उनके मुरीदों की फेहरिस्त काफी लंबी है। जिसमें प्रख्यात लोक गायक भरत शर्मा और भारतीय हॉकी टीम के भूतपूर्व कोच हरेंद्र सिंह भी शामिल हैं। जंग बहादुर बाबू का जन्म 10 दिसंबर, 1920 को हुआ था। जंगबहादुर बाबू उस समय के लोक गायक थे जब कैसेट और रिकॉर्डिंग नहीं हुआ करते थे। परंतु उनकी टंकार आज भी स्थानीय लोगों के जेहन में हैं। उनके समय यूट्यूब और इंस्टाग्राम नहीं थे परंतु मंच पर उनका गायन श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देता था। आज भी स्थानीय पुराने लोग उनकी गायकी के जबरदस्त अंदाज के कायल है।

पहले रहे पहलवान

लोक गायक के पहले जंग बहादुर बाबू एक पहलवान थे। वर्जिश और अखाड़े में दो दो हाथ करते समय जंगबहादूर बाबू विशेष काबिलियत से युक्त नजर आते थे। पहलवानी का रौब जब लोकगायन में झलकता था तो उनके ऊंचे स्वर कमाल दिखा जाते थे।

जिंदगी की मजबूरियों ने शौक से समझौते पर किया विवश

जिंदगी यापन के लिए धन की आवश्यकता होती हैं । धन के एकत्रण के लिए व्यवसाय या रोजगार एक अनिवार्य तथ्य होता हैं। लेकिन जिंदगी की आवश्यकता को पूरा करने के क्रम में शौक को समझौता करना ही पड़ता है। यहीं कहानी मानव जीवन की रही है। यहीं कहानी जंगबहादुर बाबू की भी रही। उनके दौर में गायन में नेग या उपहार का मिलना बड़ी बात होती थी। तालियों की थिरकन से ही परम् सुख प्राप्त करना होता था। ऐसे में जिंदगी को चलाने के लिए जंगबहादुर बाबू को भी श्रम करना पड़ा और उनकी लोक गायकी एक किनारे पर ही रही। जंगबहादुर बाबू के समकालीन कुछ लोक गायक बच्चू मियाँ, बच्चन मिश्र, वीरेंदर सिंह (छपरा), वीरेंदर सिंह धुरान (बलिया), राम इकबाल जी (गाजीपुर), तिलेसर जी (आरा), रामजी सिंह व्यास (बलिया), गायत्री ठाकुर, श्रीनाथ सिंह और नथुनी सिंह थे।

आवश्यकता अदभुत टंकार को रिकॉर्ड करने की है

आज 102 वर्ष के हो चुके जंग बहादुर बाबू की भैरवी की तान मंत्रमुग्ध कर देती है। आवश्यकता लोक गायकी के इस अमूल्य धरोहर के टंकार को रिकॉर्ड करने और उसे संजोने की है। जंगबहादुर बाबू के गांव के ही मूल निवासी प्रख्यात भोजपुरी व्यक्तित्व श्री मनोज भावुक बेहद भावुक अंदाज में कहते हैं कि हम तमाम फिल्मी गायकों के स्वरों को संजोते जरूर है लेकिन लोक गायकों के स्वरों को रिकॉर्ड करने के प्रयास बेहद खोखले हैं। हम मनोरंजन की बात करते हैं लेकिन आत्मा के तार को झंकृत करने वाले लोक गायन के प्रति उदासीनता बरतने से भी बाज नहीं आते। जबकि आवश्यकता जंग बहादुर बाबू जैसे लोकगायिकी के धरोहर स्वरों को सहेजने की है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!