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चार दशक बाद भी भोपाल गैस कांड के जख्म नहीं भरे,क्यों? - श्रीनारद मीडिया

चार दशक बाद भी भोपाल गैस कांड के जख्म नहीं भरे,क्यों?

चार दशक बाद भी भोपाल गैस कांड के जख्म नहीं भरे,क्यों?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

2-3 दिसंबर 1984 की काली रात में भोपाल की यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से जहरीली गैस लीक हुई थी

मिस्टर एंडरसन, नाम से लगता है कि मानो एजेंट स्मिथ मैट्रिक्स वाले नियो को बुला रहे हो। लेकिन इस मिस्टर एंडरसन की कहानी किसी नीली या लाल गोली से नहीं बल्कि एक जहरीली गैस से जुड़ी है। गैस जिसने 700 को तबाह किया और दुनिया की सबसे बड़ी मानव निर्मित त्रासदी को जन्म दिया। 1984 की काली रात जब पूरे शहर पर मौत का हमला हुआ था।

जो घरों में सो रहे थे, उनमें से हजारों सोते ही रह गए, कभी न जागने वाली नींद में। 2-3 दिसंबर 1984 की वो काली रात, जब भोपाल की यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से जहरीली गैस लीक होने लगी। जिससे देखते ही देखते हजारों लोग इसका शिकार हो गए। कैसे हुई ये त्रासदी,  इसके गुनहगार को बचाने में देश का सिस्टम भी क्या शामिल था। तमाम सवालों के जवाब आपको आज इस रिपोर्ट में मिल जाएंगे।

शहर की हवा में जहर घुल गया

रात के करीब 11 बजे होंगे, जब आज ही के दिन 1984 में मध्य प्रदेश के भोपाल में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के प्लांट से करीब 40 टन मिथाइल आइसोसाइनेट गैस लीक हो गई। महज 3 घंटे में पूरे शहर की हवा में जहर घुल गया। सरकारी आंकड़ों में तो 2,259 मौतें हुई, लेकिन गैर-सरकारी अनुमान 8,000 तक लगाया गया। लंबे समय तक इस गैस के इफेक्ट से 20,000 लोगों की जान गई। 5,58,125 लोग प्रभावित हुए, जिनमें से करीब 3 लाख लोग सीधे गैस के संपर्क में आए थे।

सांस लेने में दिक्कत, आंखों में समस्या, स्किन इंफेक्शन, कैंसर, अबॉर्शन, नवजात बच्चों में विकृति आदि समस्याएं आम हो गईं। कंपनी के प्लांट के आसपास 3,50,000 मीट्रिक टन जहरीला कचरा आज भी मौजूद है। 1989 में मुआवजे के लिए यूनियन कार्बाइड तैयार हुआ और करीब 715 करोड़ रुपये का भुगतान किया, लेकिन प्रभावितों को औसतन 25 हजार रुपये ही मिले।

अस्पताल मरीजों से भर गए

फैक्ट्री के आस-पास गांव थे। इनमें और कारखाने के पास मजदूर वर्ग के लोग ज्यादा रहते थे। कहते हैं रात के वक्त फैक्ट्री का अलार्म काम नहीं किया। इससे और ज्यादा लोगों की जान गई। फैक्ट्री का अलार्म भोर के वक्त बजा, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। शहर के अस्पताल मरीजों से भर गए। लोगों का वक्त पर इलाज तक नहीं हो सका। शहर में ज्यादा अस्पताल भी नहीं थे। लोगों को आंख- कान के साथ सांस फूलने और स्किन में जलन आदि की प्राब्लम थी। भोपाल के डॉक्टरों ने इस तरह की समस्या का कभी सामना नहीं किया था। इस वजह से हालात और बिगड़ते चले गए। शहर में दो ही सरकारी अस्पताल थे। पहले दो दिन इन्हीं दोनों अस्पतालों में करीब 50,000 मरीज भर्ती हुए।

एंडरसन को किसने देश से भगाया?

वारेन एंडरसन भोपाल गैस कांड के चार दिन बाद 7 दिसंबर को भोपाल पहुंचा था। उसे गिरफ्तार भी कर लिया गया था। लेकिन उसे सिर्फ 25 हजार रुपए में जमानत मिल गई। उसे यूनियन कार्बइड के भोपाल गेस्ट हाउस में नजरबंद करके रखा गया। लेकिन पूरे सिस्टम ने एंडरसन को भागने में पूरी मदद भी की। उसे रातों रात एक सरकारी विमान से भोपाल से दिल्ली लाया गया। इसके बाद वो दिल्ली मे अमेरिकी राजदूत के घर पहुंचा और बाद में वहां से एक प्राइवेट एयरलाइंस से मुंबई और फिर अमेरिका चला गया। मध्य प्रदेश के पूर्व एविएशन डायरेक्टर आरएस सोढ़ी ने इसे लेकर एक बयान भी दिया था कि उनके पास एक फोन आया था

जिसमें भोपाल से दिल्ली के लिए एक सरकारी विमान तैयार रखने के लिए कहा गया था। इसी विमान में बैठकर एंडरसन दिल्ली भाग गया था। तब एंडरसन को विमान में चढ़ाने के लिए भोपाल के एसपी और डीएम आए थे। उस वक्त मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे अर्जुन सिंह और प्रधानमंत्री थे राजीव गांधी। अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA  के खुफिया दस्तावेजों के मुताबिक एंडरसन की रिहाई के आदेश तत्तकालीन राजीव गांधी सरकार ने दिए थे। हालांकि अर्जुन सिंह ने अपनी किताब में बाद में इस बात का खंडन किया था। यानी कि सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी के मुख्य आरोपी को बचाने में उस वक्त की सरकार और सिस्टम ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

कार्रवाई क्या हुई?

मुख्य आरोपी वॉरेन एंडरसन जो कंपनी का सीईओ था, उसे सजा नहीं हुई। 29 सितंबर 2014 को मिस्टर एंडरसन की मृत्यु हो गई वो भी फ्लोरिडा के एक नर्सिंग होम में उन्होंने आखिरी सांसें ली। 7 जून 2010 को यूनियन कार्बाइड के 8 भारतीय अधिकारियों को 2 साल की सजा और एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया। जांच रिपोर्ट में बताया गया कि कंपनी में सेफ्टी के इंतजाम नहीं थे।

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