पत्रकारों की सुरक्षा के लिए सबको आगे आना चाहिए.

पत्रकारों की सुरक्षा के लिए सबको आगे आना चाहिए.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

काबुल पर नियंत्रण के बाद पहली प्रेस वार्ता में तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भरोसा दिलाया था कि मीडिया और महिलाओं को काम करने की आजादी दी जायेगी. मुजाहिद ने कहा था कि हम सभी को माफ कर रहे हैं, क्योंकि शांति और स्थिरता के लिए यह जरूरी है.

एक ओर जबीउल्लाह मुजाहिद घोषणा कर रहा था, तो दूसरी ओर तालिबान हिंसा कर रहा था. आज स्थिति यह हो गयी है कि पहले वहां से आम लोगों की चीत्कार सामने आ रही थी, जो मदद की गुहार लगा रहे थे, अब कई पत्रकार संगठनों को विश्व समुदाय से गुहार करनी पड़ रही है कि सभी देश तालिबान से पत्रकारों को बचाने के लिए आगे आएं.

ऐसा लग रहा है कि तालिबान लड़ाकों के पास पत्रकारों की लंबी सूची है, जिन्हें वे तलाश रहे हैं. पत्रकार नहीं मिले, तो उनके रिश्तेदार तक की हत्या हो रही है. जर्मन संस्थान डॉयचे वेले के एक पत्रकार की तलाश में तालिबान उनके घर गये, नहीं मिलने पर उनके दो रिश्तेदारों को गोली मार दी गयी. एक की वहीं मृत्यु हो गयी. वे पत्रकार अब जर्मनी में काम करते हैं, इसलिए बच गये. कई पत्रकार और उनके रिश्तेदार तालिबान से बचने के लिए छिपे हुए हैं, लेकिन तालिबानियों से वे कब तक बचेंगे?

डॉयचे वेले के महानिदेशक पीटर लिंबोर्ग ने बयान जारी कर कहा है कि हमारे एक संपादक के परिजन की तालिबान द्वारा हत्या ऐसा हादसा है, जिसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है. यह बताता है कि अफगानिस्तान में हमारे कर्मचारी और उनके परिवार कितने गंभीर खतरे में हैं.

तालिबान को काबुल और अन्य प्रांतों में पत्रकारों की तलाश है. जैसे-जैसे तालिबान काबुल की ओर बढ़ते गये पत्रकारों के विरुद्ध उनका कहर बढ़ता गया. कई पत्रकार उसी दौरान अफगानिस्तान से भाग निकले. कई भारत आ गये. एक निजी चैनल गरगश्त टीवी में काम करनेवाले नेमातुल्लाह हेमात को इन लोगों ने उठा लिया. जाहिर है, उनसे पूछताछ की जा रही होगी और वे जीवित हैं या नहीं, इसका पता आनेवाले दिनों में चलेगा.

निजी रेडियो स्टेशन पाक्तिया गाग के प्रमुख तूफान उमर को तालिबान ने गोली मार दी. एक अनुवादक अमदादुल्लाह हमदर्द को 2 अगस्त को ही जलालाबाद में गोली मार दी गयी थी. हमदर्द जर्मनी के अखबार डि त्साइट के लिए लिखते थे. पिछले महीने भारत के फोटो-पत्रकार दानिश सिद्दीकी का कंधार में क्रूरता से कत्ल किया गया था. वास्तव में, कोई पत्रकार संगठन न जांच दल भेज सकता है, न कोई पत्रकार आसानी से प्रवेश कर पूरी सच्चाई की छानबीन कर दुनिया के सामने रखने का साहस जुटा सकता है.

वैसे भी बाहर से इस समय अफगानिस्तान जाना असंभव है. किसी तरह प्रवेश हुआ भी, तो तालिबान उन्हें मौत के घाट उतार सकते हैं. विश्व के पत्रकार बिरादरी का दायित्व है कि अपने साथियों की जान बचाने के लिए आगे आएं. अभी तक डॉयचे वेले ने फेडरल एसोसिशएन ऑफ जर्मन न्यूजपेपर पब्लिशर्स (बीडीजेडवी), डि त्साइट, डेर श्पीगल, डीपीए, रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के अलावा अलग-अलग देशों के कई छोटे-बड़े मीडिया संस्थानों के साथ मिल कर एक खुला पत्र लिखा है. इसमें जर्मन सरकार से अफगान कर्मचारियों के लिए एक आपातकालीन वीसा स्थापित करने की मांग की गयी है.

हाल की कुछ घटनाओं को देखें, तो ऐसा लग सकता है कि ये विदेशी पत्रकारों या विदेशी संस्थानों के लिए काम करनेवाले पत्रकारों को ही निशाना बना रहे हैं, जबकि सच्चाई यह है कि वे सारे पत्रकार तालिबान के निशाने पर हैं, जिन्होंने उनके बारे में अपने दृष्टिकोण से सच्चाई लिखी, बोली.

जर्मन पत्रकार संघ डीजेवी ने भी जर्मनी की सरकार से इस बारे में त्वरित कार्रवाई का अनुरोध किया है. संघ के अध्यक्ष फ्रांक उबेराल ने एक बयान में कहा है कि जब हमारे सहयोगियों को यातनाएं दी जा रही हैं और कत्ल किया जा रहा है, तब जर्मन सरकार को सिर्फ देखते नहीं रहना चाहिए. इस समय इन पत्रकारों को बचाना और उन्हें शरण देना जर्मनी के लिए अतिआवश्यक है.

अफगानिस्तान और पाकिस्तान में पत्रकार पहले भी जिहादी आतंकवादी संगठनों के निशाने पर रहे हैं. इनमें पश्चिमी देशों के पत्रकारों की संख्या ज्यादा रही है. इस्लामिक या शरिया शासन की घोषणा करनेवाले तालिबान मीडिया को स्वतंत्रता देंगे, ऐसी कल्पना करनेवाले मूर्खों के स्वर्ग में रह रहे थे.

वे आम नागरिकों के लिए भी उतनी ही स्वतंत्रता दे सकते हैं, जितनी उनके अनुसार शरिया इजाजत देती है. शरिया की भी उनकी अपनी व्याख्या रही है. इसमें स्वतंत्र मीडिया, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, राजनीतिक- गैर राजनीतिक संगठन, दूसरे धर्मों के संगठन, प्रचारक आदि के लिए कोई स्थान नहीं है. तालिबान ने सरकारी मीडिया संस्थानों को अपने अनुसार संचालित करना शुरू कर दिया था. टीवी से सारे महिला एंकर और पत्रकार हटा दिये गये. समाचार और मनोरंजक कार्यक्रमों की जगह इस्लामी संदेश सुनाये जा रहे हैं.

पत्रकारों के लिए विकट स्थिति है. पत्रकारिता का दायित्व अफगानिस्तान के सच को विश्व के सामने लाना है, लेकिन जहां मनुष्य के रूप में जीने की स्थिति नहीं रहने दी गयी, वहां पत्रकारों के लिए काम करने की स्थिति संभव नहीं है. अनेक देशों में अफगानिस्तान में कार्यरत पत्रकारों के लिए कदम उठाने की मांग की जा रही है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स, जो हर वर्ष विश्वभर में पत्रकारों के दमन, उत्पीड़न, हत्या, अपहरण, उन पर मुकदमे आदि की छानबीन कर रिपोर्ट जारी करता है, उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से आग्रह किया है कि अफगानिस्तान में पत्रकारों की स्थिति पर चर्चा के लिए एक सत्र आयोजित किया जाये.

जब मानवाधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के झंडाबरदार बननेवाले अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के देशों ने अफगानिस्तान की निरीह जनता को क्रूर तालिबानों के हाथों छोड़ दिया, तो वे पत्रकारों के लिए वहां कदम उठायेंगे इसकी संभावना कम है. पत्रकारों की सुरक्षा के लिए विश्व स्तर पर कुछ नियम और व्यवस्थाएं हैं. विश्वभर के पत्रकार संगठनों, पत्रकारों, मानवाधिकार समूहों, मीडिया की स्वतंत्रता के समर्थकों, सबको आगे आना चाहिए.

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!