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Exclusive: इस वजह से भोला की स्क्रिप्ट पढ़े बिना ही हां कह दिया था, विनीत कुमार ने किया ये दिलचस्प खुलासा - श्रीनारद मीडिया

Exclusive: इस वजह से भोला की स्क्रिप्ट पढ़े बिना ही हां कह दिया था, विनीत कुमार ने किया ये दिलचस्प खुलासा

Exclusive: इस वजह से भोला की स्क्रिप्ट पढ़े बिना ही हां कह दिया था, विनीत कुमार ने किया ये दिलचस्प खुलासा


अभिनेता विनीत कुमार, अजय देवगन की कल रिलीज होने जा रही फिल्म भोला में एक अहम Deepak Dobriyalकिरदार निभाते नजर आनेवाले हैं. वह भोला को चौंकाने वाली फिल्म करार देते हैं. वह बताते हैं कि भोला में दर्शक बहुत चौकेंगे, क्योंकि एक आम इंसान के इच्छाशक्ति की कहानी है.

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भोला की स्क्रिप्ट में आपके लिए सबसे अपीलिंग क्या था?

मैंने बिना स्क्रिप्ट पढ़े फिल्म को हां कह दिया, क्योंकि मुझे अजय जी ने सामने से कॉल किया था. मुझे पता है कि बिना वजह अजय जी ना तो किसी को बुलाते हैं, और ना ही काम देते हैं. ये अपने आप में गारंटी है कि अजय जी कुछ कह रहे हैं, मतलब इसमें कुछ है और अगर आप कर पाओगे, तो वो कुछ बना जाएगा.

अजय देवगन की सबसे खास बात क्या आपको लगती है?

अजय जी की मैं बहुत इज़्ज़त करता हूं, क्योंकि वह बहुत इज़्ज़त देते हैं. आदमी इज़्ज़त का ही भूखा है.हम अगर एक चुल्लू देते हैं, तो वह बाल्टी भरकर वापस देते हैं. वो अपने सामने किसी को भी छोटा नहीं दिखाते हैं, जबकि वह बहुत बड़ी शख्सियत हैं. हमने 23 साल पहले कच्चे धागे में भी उनके साथ काम किया था. उस वक़्त से अब तक उनमे कुछ नहीं बदला है. वह सभी को साथ लेकर चलते हैं, जिस वजह से उनकी फिल्म से जुड़ा हर इंसान अपना बेस्ट देता है.

भोला एक बड़ी मसाला फिल्म है, भोला के बाद ऐसी फिल्मों के ऑफर्स के लिए कितने तैयार हैं?

उसकी मुझे चिंता नहीं है. मैं अपने मन से काम करता हूं. मैं बस ये जरूर कह सकता हूं कि मैं अजय जी को कभी ना नहीं कह सकता हूं. जो मेरा काम देखते है उनको मैंने बोलकर रखा है कि अजय जी की तरफ से कुछ आए, तो हां बोल दीजिएगा

आप जी थिएटर के हिंदी साहित्य से जुड़े प्रोजेक्ट कोई बात चले का भी हिस्सा हैं?

सीमा पाहवा जी, मंटो साहब और प्लेटफार्म सभी चीज़ें सही थी, इसलिए ज्यादा वजहें नहीं ढूंढ़नी पड़ी थी. इसके साथ ही इस प्रोजेक्ट से जुड़ा मकसद मुझे और ज्यादा अपील कर गया कि कैसे ज्यादा से ज्यादा आप साहित्य को पॉपुलर कर सकते हैं.

मंटो की किन कहानियों को आज भी प्रासंगिक कह सकते हैं?

अभी कुछ भी प्रासंगिक नहीं है. उसपर फिर बहस हो जाएगी. हम इसको एंटरटेनमेंट की तरह ही ले लेते हैं. इससे जुड़े दूसरे पहलुओं पर बात नहीं करते हैं.पहले एंटरटेनमेंट से ही शुरुआत करते हैं, फिर वो आदत बन जाएगा और अपने आप आचरण में भी आ जाएगा.

मंटो के अलावा भारतीय साहित्य की और कौन सी कहानियां आज भी लोगों को एंटरटेन कर सकती हैं?

आप कोई भी नाम उठा लीजिए. आप रेणु उठा लीजिए. आप प्रसाद उठा लीजिए. सब मनोरंजक है, लेकिन परेशानी ये है कि जिस काल में ये साहित्य रचे गए हैं. मौजूदा पीढ़ी को उस दौर सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था का पता ही नहीं, अरे आज की पीढ़ी को तो 90 का भी कुछ मालूम नहीं है.आप उनसे पूछ लीजिए नागाजुर्न को जानते हैं, तो वो साउथ के सुपरस्टार की पहचान बता देंगे. रेणु जी को भी कोई नहीं जानता है. उनको पहचानने के लिए राज कपूर के तीसरी कसम की जरूरत लगती है.ये सब समस्या कहीं ना कहीं राजनीतिक है.

हिंदी साहित्य हिंदी सिनेमा से भी अब बहुत दूर हो गया?

क्योंकि जो लोग फिल्मों की कहानियां लिख रहे हैं.उनको उसमें सिनेमा नहीं दिख पाता है, क्योंकि उनमे समझ नहीं है. पहले समय में जो फिल्मों की कहानियां लिखते थे, वो हिंदी साहित्य के जानकार होते थे. अभी के लेखक बेस्टसेलर पढ़ते हैं. वो हिंदी साहित्य नहीं पढ़ते हैं. जो हमारे ज़माने में रानू, राजवंश और गुलशन नंदा बेस्टसेलर हुआ करते थे. जो हमारे समय में लोग पढ़ते देख लें, तो मार पड़ जाती थी.

क्या आपको लगता है कि हमारा अंग्रेजी एजुकेशन भी इसके लिए जिम्मेदार है?

अब ये राजनीतिक सवाल हो गया है.अंग्रेजी का क्या किया जाए. दो सौ साल तक उनके साथ रहें, तो उनका साहित्य ही अपनाएंगे. भले हमको समझ आए या नहीं.उसके पीछे तो बहुत बहसें शुरू हो जाएगी.अरे हिंदी साहित्य तो छोड़िए लोग हिंदी में बात करने में घबराते हैं.एक सवाल मुझसे किया गया था कि आप बिहार से हैं, आपको संकट नहीं होता है.मैंने बोला संकट क्यों होगा. उन्होंने बोला यहां बिहारी लोग घबराते हैं.आप अंग्रेजी समझते हो और हिंदी में जवाब देने लगते हो, तो थोड़ी देर में उन्हें समस्या होने लगती है.भाषा बोलो मत, लेकिन समझो जरूर इसलिए मुझे दिक्कत नहीं हुईं.

हिंदी साहित्य का आपके अभिनय में कितना योगदान रहा है?

चूंकि हमलोग हिंदी साहित्य पढ़े हैं.मुझे लगता है कि जो संस्कार हैं. वो वहीं से आए हैं. जिन लोगों के साथ काम किया. उससे और समझदारी बढ़ी और पढ़ना शुरू किया.हिंदी साहित्य से संवेदनशीलता बढ़ी और मानव संवेदनाओं को भी समझा . अभी भी मैं पढ़ता रहता हूं, क्योंकि बिना पढ़े तो काम नहीं चलता है.बिना पढ़े मुझे नींद नहीं आती है.

एक्टिंग के हैक्टिक शेड्यूल में पढ़ने के लिए समय कैसे निकालते हैं?

मैं ज्यादा काम नहीं करता हूं. मुझे लगता है कि जब तक आप दिमाग़ को ज्यादा आराम नहीं दोगे, आपका दिमाग़ कुछ नया क्रिएट नहीं कर पाएगा.आपके पिछले काम को कॉपी करने लगेगा.मशीन नहीं हैं.बहुत कम ऐसा होता है, जब मैं एक के बाद एक प्रोजेक्ट करता हूं.वैसे ऊपर वाले ने ये सुविधा डी है कि धन की समस्या उस तरह से नहीं होती है, जिस दिन धन की समस्या होगी. हम भी शुरू कर देंगे.धन ही आपको परेशान करता है और धन से ही आपकी सत्ता बढ़ती है और सत्ता जो है, वो आपको पॉपुलर बनाता है और हमको इन सब से कोई लगाव नहीं है.

सवाल ये है कि आप जीवन कैसा जी रहे है. आप कुछ भी कर लो. ब्रह्माण्ड के सबसे बड़े अभिनेता बन जाओ, लेकिन जीवन नहीं जी पा रहे हो, तो क्या मतलब है.आपके दोस्त नहीं है. आपके पास ऐसे लोग नहीं है, जो आपको समझ पाते हो. हमेशा आपका साथ दे पाते हैं. पुराने समय में कहा भी जाता था कि चार आदमी कमा लो. आज के समय में लोगों के पास चार आदमी भी नहीं है.लोगों के पास भीड़ है. आदमी चार नहीं है.जीवन से हमलोग दूर हो गए है, उसी का यह खामियाजा है. हम सिर्फ धन और सत्ता के पीछे भाग रहे है.

आनेवाले प्रोजेक्ट्स

चार वेब सीरीज है, लेकिन सिर्फ महारानी का ही नाम ले पाऊंगा.



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