कृषि कानूनों पर जल्द फैसले के लिए सुप्रीम कोर्ट पर नजर.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
कृषि कानूनों के विरोध में रेल रोको का आयोजन हुआ। उससे पहले लखीमपुर खीरी में मामला कई लोगों की मौत से जुड़ गया। जबकि करीब 10 महीनों से कई सड़कें बाधित हैं जिन्हें खुलवाने के बाबत खुद सुप्रीम कोर्ट कई बार कह चुका है लेकिन कानून की वैधानिकता और जरूरत संबंधी उस याचिका पर अभी फैसले का इंतजार है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की बनाई कमेटी के नेता अनिल घनवट ने जहां फिर से आग्रह किया है कि जल्द फैसला सुनाया जाए।
जल्द होना चाहिए फैसला
वहीं इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एसआर सिंह का भी मानना है कि जल्द सुनवाई कर फैसला कर देना चाहिए ताकि आगे की राह तैयार हो। वह कहते हैं कि कोर्ट इतने केस सुनता है फिर इस केस को भी जल्द तय करना चाहिए। 10 महीनों से प्रदर्शनकारी कानूनों के विरोध में उत्तर प्रदेश और हरियाणा को दिल्ली से जोड़ने वाले राजमार्गों पर धरना दिए बैठे हैं। देश के अन्य हिस्सों में भी विरोध प्रदर्शन चल रहा है।
सुप्रीम कोर्ट लगा चुका है रोक
गत जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने किसानों के विरोध प्रदर्शन को शांत करने और धरना खत्म करने की उम्मीद जताते हुए तीनों कृषि कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी थी। साथ ही कोर्ट ने एक विशेषज्ञ कमेटी गठित की थी जिससे कृषि कानूनों पर किसानों, सभी हितकारी संगठनों और सरकार से बात करके दो महीने में रिपोर्ट देने को कहा गया था। कमेटी ने 19 मार्च को अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंप दी थी।
रिपोर्ट सार्वजनिक करने की गुजारिश
रिपोर्ट सौंपने के चार महीने बाद भी जब मामला सुनवाई के लिए नहीं आया तो विशेषज्ञ कमेटी के एक सदस्य शेतकारी संगठन के अनिल घनवट ने प्रधान न्यायाधीश को पत्र लिखकर मामले पर जल्द सुनवाई करने और रिपोर्ट सार्वजनिक करने का आग्रह भी किया। वजह कुछ भी हो, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में मामला अभी तक सुनवाई पर नहीं आया। लिहाजा सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं।
दबाव को उचित नहीं मानते पूर्व प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर
बहरहाल, पूर्व प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर इस दबाव को उचित नहीं मानते। वह कहते हैं कि किसानों को ही नहीं, हर आदमी और हर मुकदमेदार को जल्द न्याय मिलना चाहिए। इतने मुकदमे लंबित हैं, निर्भर करता है कि कैसा मुकदमा है। अगर किसी मामले में सभी प्रभावित लोग चाहते हैं कि जल्द सुनवाई हो तो अगर प्रधान न्यायाधीश साहब से अनुरोध किया जाएगा कि इसे जल्द सुना जाए तो हो सकता है कि वह इसे उठा लें, जल्द सुन लें। दूसरे मुकदमों की तरह इसे लंबा न होने दें। यह एक प्रक्रिया है, इस प्रक्रिया में किसी को जिम्मेदार ठहराना, किसी पर इल्जाम लगाना सही नहीं रहेगा।
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