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ईरान, पाकिस्तान और बलूच उग्रवाद में भारत के हितों को प्रभावित करने वाले तत्व! - श्रीनारद मीडिया

ईरान, पाकिस्तान और बलूच उग्रवाद में भारत के हितों को प्रभावित करने वाले तत्व!

ईरान, पाकिस्तान और बलूच उग्रवाद में भारत के हितों को प्रभावित करने वाले तत्व!

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में ईरान-रोधी बलूच आतंकवादी समूह जैश अल-अदल (Jaish al-Adl- JAA) के दो कथित ठिकानों पर ईरानी मिसाइलों तथा ड्रोनों द्वारा हमला किये जाने से ईरान एवं पाकिस्तान के संबंध प्रभावित हुए हैं।

  • पाकिस्तान ने अपनी संप्रभुता के “घोर उल्लंघन” पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की तथा ईरान में संदिग्ध आतंकवादी पनाहगाहों पर सीमा पार मिसाइल हमले किये।
  • भारतीय कुलभूषण जाधव के अपहरण के बाद भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने JAA की जाँच शुरू कर दी। कथित तौर पर समूह द्वारा जाधव को पाकिस्तान की इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) को बेच दिया गया था।

जैश अल-अदल कौन है?

  • जैश अल-अदल अथवा न्याय की सेना, एक सुन्नी आतंकवादी समूह है जो वर्ष 2012 में अस्तित्व में आया। यह मुख्य रूप से ईरान-पाकिस्तान सीमा के दोनों तरफ रहने वाले जातीय बलूच समुदाय के सदस्यों से बना है।
  • इस समूह को जुंदुल्लाह संगठन की एक शाखा माना जाता है, जिसके कई सदस्यों को ईरान द्वारा गिरफ्तार किये जाने के बाद इसका प्रभाव कम हो गया था।
  • जैश अल-अदल के मुख्य उद्देश्यों में ईरान के पूर्वी सिस्तान प्रांत तथा पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी बलूचिस्तान प्रांत के लिये स्वतंत्रता की मांग करना शामिल है। बलूच लोगों के अधिकारों का समर्थन करने वाले ये लक्ष्य, समूह को ईरानी तथा पाकिस्तानी दोनों सरकारों के लिये एक साझा लक्ष्य बनाते हैं।
  • जातीय बलूच समुदाय को ईरान तथा पाकिस्तान दोनों में भेदभाव का सामना करना पड़ता है, उनके संबंधित प्रांतों में संसाधनों एवं धन के उचित वितरण के अभाव से संबंधित चिंताएँ हैं। बलूच अलगाववादी एवं राष्ट्रवादी अधिक न्यायसंगत हिस्सेदारी की मांग करते हैं व अमूमन अपनी शिकायतों को व्यक्त करने के लिये विद्रोह का सहारा लेते हैं।
  • बलूचिस्तान में, विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों में जैश अल-अदल की उपस्थिति, ईरान तथा पाकिस्तान के बीच तनाव का एक स्रोत रही है।
    • दोनों देशों में आतंकवादी गतिविधियों के समर्थन में एक-दूसरे की संलिप्तता को लेकर संदेह और आरोप-प्रत्यारोप का इतिहास रहा है।

पाकिस्तान और ईरान के बीच संबंध कैसे रहे हैं?

  • 1979 पूर्व गठबंधन:
    • ईरान में 1979 की इस्लामी क्रांति से पहले, दोनों देश संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ मज़बूती से जुड़े हुए थे तथा वर्ष 1955 में बगदाद पैक्ट/संधि में शामिल हुए जिसे बाद में केंद्रीय संधि संगठन (Central Treaty Organization- CENTO) के रूप में जाना गया, जो उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (North Atlantic Treaty Organization- NATO) पर आधारित एक सैन्य गठबंधन था।
    • ईरान ने वर्ष 1965 तथा वर्ष 1971 में भारत के विरुद्ध युद्ध के दौरान पाकिस्तान को सामग्री व हथियार सहायता प्रदान की
    • ईरान के शाह ने बांग्लादेश की मुक्ति के बाद पाकिस्तान के “विघटन” पर चिंता व्यक्त की।
  • वर्ष 1979 के बाद की स्थिति:
    • ईरान में इस्लामी क्रांति के कारण अयातुल्ला खुमैनी के नेतृत्व में अति-रूढ़िवादी शिया शासन का उदय हुआ। यह सैन्य तानाशाह जनरल ज़िया-उल-हक के तहत पाकिस्तान के स्वयं के इस्लामीकरण के साथ समवर्ती था।
    • दोनों देशों ने खुद को सांप्रदायिक विभाजन के विपरीत छोर पर पाया।
  • भू-राजनीतिक मतभेद: 
    • लगभग रातोंरात, ईरान, संयुक्त राज्य अमेरिका के सहयोगी से घोषित प्रतिद्वंद्वी में बदल गया, जबकि अमेरिकियों ने पाकिस्तान के साथ अपने संबंध कड़े कर दिये।
    • वर्ष 1979 से पाकिस्तान के प्रति ईरान के अविश्वास का एक प्रमुख कारण रहा है, जो 09/11 के बाद और अधिक बढ़ गया क्योंकि इस्लामाबाद ने अमेरिका को “आतंकवाद के खिलाफ युद्ध” में समर्थन दिया।
    • ईरान की वर्ष 1979 के बाद की विदेश नीति, जो क्रांति के विस्तार पर केंद्रित थी, ने अरब दुनिया में उसके पड़ोसियों को हतोत्साहित कर दिया।
      • इनमें से प्रत्येक तेल-समृद्ध राज्य को परिवारों के एक छोटे समूह द्वारा प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया गया था, जो कि क्रांति-पूर्व ईरान में शाह के शासन के विपरीत नहीं थी। इन अरब साम्राज्यों के साथ पाकिस्तान के निरंतर रणनीतिक संबंधों ने ईरान के साथ उसके संबंधों में कठिनाइयाँ उत्पन्न कर दीं।
  • अफगानिस्तान संघर्ष: 
    • सोवियत सेना की वापसी के बाद ईरान और पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में स्वयं को विपरीत दिशा में पाया।
    • ईरान ने तालिबान के खिलाफ उत्तरी गठबंधन का समर्थन किया, यह समूह शुरु में पाकिस्तान द्वारा समर्थित था।
    • वर्ष 1998 में मज़ार-ए-शरीफ में तालिबान द्वारा फारसी भाषी शिया हजारा और ईरानी राजनयिकों की हत्या के बाद तनाव बढ़ गया।
  • सुलह के प्रयास: 
    • ऐतिहासिक तनावों के बावजूद, दोनों देशों ने संबंधों में सुधार के प्रयास किये। प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो ने वर्ष 1995 में ईरान के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों को कड़ा करने और साथ ही उनकी सरकार के दौरान पाकिस्तान ने ईरान से गैस आयात करने पर खेद व्यक्त किया।
    • हालाँकि वर्ष 1999 में जनरल परवेज़ मुशर्रफ के सत्ता संभालने के बाद संबंधों में खटास आ गई थी।

ईरान और पाकिस्तान के बीच बलूचिस्तान की गतिशीलता क्या है?

  • भौगोलिक एवं जनसांख्यिकीय संदर्भ:
    • ईरान-पाकिस्तान सीमा जिसे गोल्डस्मिथ लाइन के नाम से जाना जाता है, अफगानिस्तान से उत्तरी अरब सागर तक लगभग 909 किलोमीटर तक फैली हुई है।
    • सीमा के दोनों ओर लगभग 9 मिलियन जातीय बलूच लोग रहते हैं, जो पाकिस्तानी प्रांत बलूचिस्तान, ईरानी प्रांत सिस्तान और बलूचिस्तान तथा अफगानिस्तान के पड़ोसी क्षेत्रों में रहते हैं।
  • साझा बलूच पहचान:
    • बलूच लोग एक सामूहिक सांस्कृतिक, जातीय, भाषाई एवं धार्मिक पहचान साझा करते हैं जो इस क्षेत्र पर लगाई गई आधुनिक सीमाओं से परे है।
    • विभिन्न देशों में रहने के बावजूद बलूच ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक संबंधों पर आधारित मज़बूत संबंध बनाए रखते हैं।
  • हाशियाकरण एवं शिकायतें:
    • ईरान और पाकिस्तान दोनों में बलूचों ने हाशिए पर जाने का अनुभव किया है तथा साथ ही प्रत्येक देश में प्रमुख शासनों से राजनीतिक एवं आर्थिक रूप से भी दूर महसूस कर रहे हैं।
      • पाकिस्तान में, बलूच को पंजाबी-प्रभुत्व वाली राजनीतिक संरचना के भीतर एक जातीय अल्पसंख्यक के रूप में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
      • ईरान में वे न केवल एक जातीय अल्पसंख्यक हैं, बल्कि एक धार्मिक अल्पसंख्यक भी हैं, जिनमें से अधिकांश शिया प्रधान देश में सुन्नी हैं।
  • आर्थिक विषमताएँ:
    • बलूच मातृभूमि प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है, लेकिन आर्थिक विषमताएँ बनी हुई हैं। ईरान में बलूच आबादी का एक बड़ा हिस्सा गरीबी रेखा के नीचे रहता है।
    • पाकिस्तान में, चीन की बेल्ट एंड रोड पहल जैसी परियोजनाओं में बड़े पैमाने पर निवेश के बावजूद, उनके जीवन में सुधार सीमित हैं।
  • राष्ट्रवादी आंदोलन:
    • बलूच राष्ट्रवाद की ऐतिहासिक जड़ें 20वीं सदी की शुरुआत से ही व्याप्त हैं जब इस क्षेत्र में नई अंतर्राष्ट्रीय सीमाएँ खींची गई थीं।
    • ईरान और पाकिस्तान दोनों में बलूच लोगों को हाशिए पर धकेलने से “ग्रेटर बलूचिस्तान” राष्ट्र-राज्य की मांग करने वाले अलगाववादी आंदोलनों को बढ़ावा मिला है।
  • उग्रवाद तथा सीमा-पारगतिविधि:
    • बलूच विद्रोही ईरान-पाकिस्तान सीमा के दोनों ओर सैन्य और कभी-कभी नागरिक ठिकानों पर हमले करते हैं।
    • बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) तथा बलूच लिबरेशन फ्रंट (BLF) जैसे समूहों से संबद्ध विद्रोही, संबंधित राज्यों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष में शामिल रहे हैं।

पाकिस्तान और ईरान के बीच बढ़ते तनाव के क्या निहितार्थ हैं?

  • क्षेत्रीय अस्थिरता:
    • पाकिस्तान और ईरान के बीच बढ़ता तनाव क्षेत्रीय अस्थिरता में योगदान दे सकता है, खासकर मध्य पूर्व तथा दक्षिण एशिया के जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए।
    • पाकिस्तान तथा ईरान के बीच संबंधों में और तनाव आ सकता है, जिसका असर राजनयिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक संबंधों पर पड़ सकता है।
  • प्रॉक्सी डायनेमिक्स:
    • पाकिस्तान और ईरान दोनों पर क्षेत्रीय संघर्षों में प्रतिनिधि रूप में वोट करने का समर्थन करने का आरोप लगाया गया है। तनाव छद्म गतिशीलता को बढ़ा सकता है, प्रत्येक देश दूसरे के आंतरिक मामलों में प्रभाव डालने की कोशिश कर रहा है या चल रहे क्षेत्रीय संघर्षों में कुछ गुटों का समर्थन कर रहा है।
  • बलूचिस्तान पर प्रभाव:
    • बलूचिस्तान में अशांति बढ़ सकती है। बलूच राष्ट्रवादी आंदोलनों को गति मिल सकती है और स्थानीय आबादी पर इसका असर पड़ सकता है।
    • यह स्थिति भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, सऊदी अरब या इज़राइल जैसे अन्य क्षेत्रीय अभिकर्त्ताओं को आकर्षित कर सकती है, जिससे भू-राजनीतिक परिदृश्य और जटिल हो सकता है तथा संभावित रूप से व्यापक क्षेत्रीय संघर्ष हो सकता है।
  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ:
    • बढ़ते तनाव से पड़ोसी देशों, विशेषकर अफगानिस्तान के लिये सुरक्षा चिंताएँ बढ़ सकती हैं। यह क्षेत्र पहले से ही सुरक्षा चुनौतियों से जूझ रहा है तथा बढ़ा हुआ तनाव स्थिति को और खराब कर सकता है।
  • भारत के लिये निहितार्थ:
    • चाबहार बंदरगाह जैसी परियोजनाओं में भारत की भागीदारी को देखते हुए, तनाव का असर ईरान के साथ भारत के संबंधों पर पड़ सकता है। भारत, ईरान और संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करते हुए स्वयं को एक कमज़ोर राजनयिक स्थिति में पा सकता है।

पाकिस्तान और ईरान के बीच टकराव पर भारत का रुख क्या है?

  • आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता:
    • भारत ने “आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता की अपनी अडिग स्थिति” पर बल दिया। यह बयान आतंकवाद के खिलाफ भारत के सतत् रुख को रेखांकित करता है, जो पाकिस्तान से उत्पन्न होने वाले सीमा पार आतंकवाद के संबंध में उसकी लंबे समय से चली आ रही चिंताओं के अनुरूप है।
  • आत्मरक्षा में कार्यों को समझना:
    • भारत ने “देशों द्वारा अपनी आत्मरक्षा में की जाने वाली कार्रवाइयों” को स्वीकार किया और समझ व्यक्त की। यह क्षेत्र में जटिल सुरक्षा गतिशीलता की पहचान और देशों द्वारा उनकी सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिये की जाने वाली कार्रवाइयों के प्रति सतर्क दृष्टिकोण का सुझाव देता है।

निष्कर्ष

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