फेक जर्नल्स: शोधार्थियों और शिक्षकों के लिए बड़ी चुनौती

फेक जर्नल्स: शोधार्थियों और शिक्षकों के लिए बड़ी चुनौती

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

एक खबर छपी है. फेक जर्नल्स के बारे में. फेक जर्नल्स यानी जाली शोध प्रत्रिकायें. शोधकर्ताओं और शिक्षकों को आगाह किया है कि फेक जर्नल्स यानी जाली शोध पत्रिकाओं से सावधान रहें. इन पत्रिकाओं में प्रकाशित शोध पत्र अक्सर घटिया गुणवत्ता के होते हैं और इन्हें वैज्ञानिक समुदाय द्वारा मान्यता नहीं दी जाती है. पर, आज अकादमिक जगत में केयर लिस्ट, पीयर रिव्यू, स्कोपस जर्नल्स में छपने की होड़ मची है. इसी का दोहन चंद शातिर, धूर्त लोग कर रहे हैं.

मसलन, ताजा मामला प्रतिष्ठित शोध पत्रिका, ‘भैरवी’ का है. ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के ललित कला संकाय से निकलने वाले प्रतिष्ठित म्यूजिक जर्नल ‘भैरवी’ का डुप्लीकेट बाजार में आ गया है. लोगों से पैसे लेकर उसमें शोध छापे गए. उन्हें फर्जी सर्टिफिकेट भी दिया गया. डुप्लीकेट जर्नल में सबकुछ हू-ब-हू, बस वर्ष का अंतर है. आईएसएसएन नंबर से लेकर संपादक मंडल और पीयर रिव्यू कमेटी तक को भी दरभंगा से निकलने वाले जर्नल से कॉपी है. प्रकाशित शोध-पत्र ही अलग हैं.

बहरहाल आज फेक जर्नल्स का खतरा बढ़ता जा रहा है. हाल के एक अध्ययन में पाया गया कि दुनिया भर में 10,000 से अधिक ऐसी पत्रिकाएं मौजूद हैं, जो लाखों संदिग्ध शोध पत्र प्रकाशित करती हैं. एक अनुमान के मुताबिक भारत में यह संख्या सैकड़ों में हो सकती है. इन पत्रिकाओं का उद्देश्य शोधकर्ताओं से पैसा कमाना है. वे शोधकर्ताओं को यह विश्वास दिलाते हैं कि उनके शोध पत्र को शीर्ष जर्नल्स में प्रकाशित किया जाएगा, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता है.

हालाँकि फेक जर्नल्स की पहचान करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन कुछ बातों पर ध्यान देकर आप इनसे बच सकते हैं. मसलन, पत्रिका की वेबसाइट पर जाएं और इसके बारे में जानकारी देखें. पत्रिका के संपादक मंडल और पीयर रिव्यू कमेटी की जांच करें. पत्रिका की प्रकाशन नीति पढ़ें. पत्रिका की सदस्यता शुल्क या प्रकाशन शुल्क की जांच करें. हालांकि कुछ बातों पर ध्यान देने से फेक जर्नल्स से बचा जा सकता है. शोध पत्र को शीर्ष जर्नल्स में प्रकाशित करने के लिए प्रतिष्ठित प्रकाशन चयन एजेंसियों की सलाह लें. विश्वसनीय विशेषज्ञों से परामर्श कर सकते हैं. अपने सलाहकारों से भी मार्गदर्शन लें सकते हैं.

फेक जर्नल्स से शोधकर्ताओं को सावधान रहने की जरूरत है. इन पत्रिकाओं में प्रकाशित शोध पत्र अक्सर घटिया गुणवत्ता के होते हैं और इन्हें अकादमिक मान्यता नहीं दी जाती है. ऐसे में शोधकर्ताओं को अपने शोध पत्र को प्रकाशित करने से पहले पत्रिका की सावधानीपूर्वक जांच करनी चाहिए.

Leave a Reply

error: Content is protected !!