कैंसर से जंग में पारिवारिक सहयोग एक बड़ी जरूरत

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विश्व कैंसर दिवस पर विशेष आलेख

✍️डॉक्टर गणेश दत्त पाठक

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कैंसर की खतरनाक बीमारी की गिरफ्त में आ रहे सीवान जैसे नगरों के युवा भी, विशेषज्ञ बता रहे कि पारिवारिक संबल और संवाद, अपने बच्चों पर सतर्क नजर, नियमित व्यायाम आदि के आधार पर कैंसर से जंग में पाई जा सकती है फतह

केस 1-नगर के मखदूम सराय का 30 वर्षीय युवा बिल्कुल सेहतमंद। अचानक जबड़े में दर्द। डॉक्टर के पास पहुंचा तो कैंसर बीमारी का पता चला। छह महीने के अंदर हो गई मौत। कारण गुटखा खाने के लत से था ग्रस्त।

केस 2- बड़हरिया का 34 वर्षीय एक स्मार्ट युवा। अचानक हुआ पेट में दर्द। सीवान के डॉक्टर ने पटना रेफर किया। लीवर के जांच में लीवर कैंसर की पुष्टि। मात्र साल भर में मौत। तंबाकू के सेवन का था आदी।

नगर में हर दिन कहीं न कहीं से ऐसी खबर आ ही जाती है कि अमुक युवा को कैंसर हो गया। सीवान में हाल के दिनों में मुंह, फेफड़े और लीवर के कैंसर के मरीज ज्यादा सामने आ रहे हैं और इसमें से अधिकांश युवा ही होते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण युवाओं द्वारा तंबाकू के सेवन का लत सामने आ रहा है। वैसे अल्कोहल का सेवन, आरामदायक जीवन शैली भी कैंसर के अन्य कारक हैं।

सीवान में तंबाकू का इस्तेमाल युवाओं को तबाह कर रहा है। जानकारी के अभाव और गलत संगत में आकर युवा तंबाकू का लत पाल ले रहे हैं। लेकिन विशेषज्ञ बता रहे हैं कि यदि युवा तंबाकू के सेवन के दुष्प्रभावों को समझें, गलत संगत से बचें, दृढ़ इच्छा शक्ति जाहिर करें और परिवार का सहयोग मिले तो तंबाकू निषेध संभव है, जिससे हमारे युवा सुरक्षित रह सकते हैं।

कैंसर एक गंभीर बीमारी है जिसके मामले दुनियाभर में तेजी से बढ़ते हुए देखे जा रहे हैं। हृदय रोगों के बाद कैंसर वैश्विक स्तर पर मृत्यु का सबसे बड़ा कारण माना जाता रहा है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के विशेषज्ञों ने भारत में कैंसर के मामलों में 12% से 18% की वृद्धि होने का आशंका जताई है। भारत में कैंसर के मामले साल 2022 में 1.46 मिलियन (14.6 लाख) से बढ़कर 2025 में 1.57 मिलियन (15.7 लाख) होने का खतरा है।

सेवा मैक्स केयर हॉस्पिटल के सीएमडी डॉक्टर शाहनवाज आलम बताते हैं कि कैंसर होने के कई कारण होते हैं जिनमें धूम्रपान और तंबाकू उत्पादों का सेवन सर्वप्रमुख है। इसके अलावा ज्यादा शराब पीना, शारीरिक गतिविधि व्यायाम आदि नहीं करना, वायु प्रदूषण, विकिरण के संपर्क में आना, यू वी प्रकाश के संपर्क में आना, जंक फूड का सेवन, मोटापा, पारिवारिक इतिहास आदि तथ्य भी जिम्मेवार होते हैं।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, कम उम्र से ही सभी लोगों को कैंसर से बचाव को लेकर सावधानी बरतते रहने की आवश्यकता है। इसके लिए दिनचर्या में सुधार, पौष्टिक आहार का सेवन करना और रसायनों के अधिक संपर्क में आने से बचना प्रमुख है। जिन लोगों के परिवार में पहले से किसी को ये बीमारी रही है उन्हें और भी सावधान रहने की आवश्यकता है।

दुनियाभर में कैंसर के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इसकी रोकथाम, पहचान और उपचार को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से हर साल 4 फरवरी विश्व कैंसर दिवस मनाया जाता है।

भारतीय राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों के आधार पर मालूम चलता है कि सिवान में भी तंबाकू के दुष्परिणामों से तकरीबन 21 फीसदी जनसंख्या प्रभावित है। सर्वेक्षण के मुताबिक साल 2019- 20 में 15 या उससे अधिक आयु के पुरुषों में तंबाकू का उपयोग 27.1 फीसदी था। वहीं महिलाओं में 8.5 फीसदी था। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में लगभग एक लाख बच्चे और किशोर प्रतिदिन धूम्रपान शुरू करते हैं। धूम्रपान 250 मिलियन बच्चों के जीवन पर खतरा बना हुआ है। भारत में तंबाकू उपयोग करनेवालों की संख्या में तीव्र गति से बढ़ोतरी हो रही है।

गलत संगत में आकर युवा धूम्रपान के आदी बनते जा रहे हैं। तंबाकू की लत उनके सेहत को तबाह कर दे रही है। चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक तबाकू के लत के कारण फेफड़े तो तबाह हो ही रहे हैं श्वसन संबंधी तमाम बीमारियां भी हो जा रही है। तंबाकू सेवन से जीभ और गला कैंसर तो हो ही रहा है। हृदय रोग का खतरा भी बढ़ जा रहा है। तंबाकू खाने से शरीर में निकोटीन की मात्रा बढ़ जाती है जिससे शरीर पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ता है। युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य और प्रजनन क्षमता पर भी तंबाकू का दुष्प्रभाव पड़ता दिख रहा है।

अभी तक माना जाता रहा था कि तंबाकू का दुष्प्रभाव सिर्फ फेफड़े और मुंह तक ही सीमित था लेकिन इससे लीवर संबंधी बीमारियां भी बढ़ रही है। सेवा मेक्स केयर हॉस्पिटल के सी एम डी डॉक्टर शाहनवाज आलम के मुताबिक तंबाकू में मौजूद निकोटीन और टार लीवर को तबाह कर दे रहा है। ये हानिकारक रसायन तंबाकू चबाने के दौरान लीवर तक पहुंच जाते हैं और लीवर की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं। तंबाकू के सेवन से फैटी लीवर डिजीज, लीवर सिरोसिस, हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी और लीवर कैंसर होने का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ जा रहा है। तंबाकू में पाया जानेवाला कार्सिनोजेंस लीवर के डीएनए को क्षतिग्रस्त कर दे रहा है। इस तरह से तंबाकू के सेवन से शरीर विभिन्न गंभीर बीमारियों का शिकार हो जा रहा है।

अब सवाल यह उठता है कि धूम्रपान की लत से छुटकारा कैसे पाया जाय? तंबाकू की लत से छुटकारा पाना आसान नहीं होता है। लेकिन यदि दृढ़ इच्छा शक्ति का उपयोग किया जाय, गलत संगत से दूर रहा जाय और पारिवारिक सहयोग और संबल मिले तो धूम्रपान से निषेध संभव हो सकता है। बेहद जरूरी है कि परिवारजन अपने बच्चों पर सतर्क निगरानी रखें। उनके संगत पर बारीक नजर रखें और बच्चों को धूम्रपान के दुष्प्रभाव के बारे में समय समय पर बताते रहें।

स्कूल कॉलेज में भी नियमित स्तर पर धूम्रपान के दुष्परिणाम के बारे में जागरूकता अभियान का संचालन किया जाय। यदि परिवार का कोई सदस्य धूम्रपान की लत का शिकार है तो उसको समझा बुझा कर उसकी इच्छाशक्ति को जागृत करना होगा। जब संबंधित सदस्य धूम्रपान छोड़ने के लिए तैयार हो जाए तो उसका सहयोग और उत्साहवर्धन बेहद जरूरी होगा। कुछ घरेलू उपाय मसलन जब तलब हो तो बारीक सौंफ, मिश्री का उपयोग, आदि का सहारा कारगर हो सकता है।

धूम्रपान से लत के छुटकारे में योग अभ्यास बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। योगाचार्यों के मुताबिक, नियमित स्तर पर प्राणायाम और योग अभ्यास से मानसिक स्तर पर मजबूती आती है और दृढ़ इच्छाशक्ति का विकास भी होता है जिससे तंबाकू की लत से छुटकारा पाने में मदद भी मिलती है।

कैंसर बीमारी के संदर्भ में एक बड़ी चुनौती समय पर बीमारी की पहचान नहीं हो पाना रहा है। विगत दिवस जारी केंद्रीय बजट में जिला स्तर पर कैंसर डे केयर सेंटर की सुविधाओं को उपलब्ध कराने का दावा सरकार ने किया है। इस सुविधा का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि समय पर कैंसर रोग की पहचान होने से काफी मरीजों की जान बचाई जा सकती है। साथ ही आवश्यकता इस बात की भी है कि योग व्यायाम के प्रति हम अपने परिवार के युवाओं और बच्चों को प्रेरित करें।

इस संदर्भ में परिवार को बड़ी भूमिका निभाना होगा। माता पिता अभिभावक बच्चों को व्यायाम के लिए प्रेरित करें। बच्चों और युवाओं को अस्वस्थकर भोजन मसलन जंक फूड के सेवन से बचाना भी जरूरी है। निश्चित तौर पर इस संदर्भ में भी परिवारिक भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। बच्चों और युवाओं का स्क्रीन टाइम बढ़ता जा रहा है। स्क्रीन टाइम बढ़ने का सीधा आशय शारीरिक गतिविधि में कमी से होता है जो कैंसर का कारक है। इसको रोकने में भी परिवारिक सहयोग एक अनिवार्य तथ्य है।

तंबाकू के उपयोग से विशेषकर युवाओं का जीवन तबाह हो रहा है। इसके लिए युवाओं को समय रहते सचेत होना जरूरी है। साथ ही परिवार के लोगों की भी तंबाकू निषेध में बड़ी भूमिका है। परिवार एक तरफ जहां अपने बच्चों पर सतर्क निगाह रखे और दूसरी तरफ यदि परिवार का कोई सदस्य धूम्रपान की गिरफ्त में है तो उसके लत को छुड़ाने के लिए आवश्यक संबल और सहयोग प्रदान करे तो तंबाकू निषेध और कैंसर से जंग के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि हासिल होगी। हमें अपने लाडलों को तंबाकू के कहर से उनके तबाह हो रही जिंदगी को बचाने के लिए हरसंभव प्रयास करना ही होगा। कैंसर से जंग में पारिवारिक संबल और संवाद एक प्रभावी निरोधक उपाय के तौर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

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