प्रसिद्ध लेखक विनोद कुमार शुक्ल को 2023 का ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलेगा
पहले छत्तीसगढ़ी लेखक जिन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
“यह बहुत बड़ा सम्मान है”
अपनी सहज भाषा और संवेदनशील लेखन के लिए पहचाने जाने वाले शुक्ल ने कहा, “यह बहुत बड़ा पुरस्कार है। मैंने कभी सोचा नहीं था कि मुझे यह मिलेगा। दरअसल, मैंने कभी पुरस्कारों पर ध्यान नहीं दिया। लोग मुझसे अक्सर कहते थे कि मुझे ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलना चाहिए, लेकिन मैं क्या कहता? झिझक के कारण मैं कभी सही शब्द नहीं खोज पाया।”
वे आज भी लेखन में सक्रिय हैं, खासतौर पर बच्चों के लिए लिखना उन्हें पसंद है। उनका मानना है कि “लिखना एक छोटी चीज़ नहीं है, इसे निरंतर करते रहना चाहिए और पाठकों की प्रतिक्रिया पर ध्यान देना चाहिए।”
चयन समिति ने की घोषणा
ज्ञानपीठ चयन समिति की बैठक में विनोद कुमार शुक्ल के नाम को अंतिम रूप दिया गया। इस बैठक की अध्यक्षता ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखिका प्रतिभा राय ने की। चयन समिति ने अपने बयान में कहा, “यह सम्मान विनोद कुमार शुक्ल को हिंदी साहित्य में उनके विशिष्ट योगदान, रचनात्मकता और अनूठी लेखन शैली के लिए दिया जा रहा है।”
समिति के अन्य सदस्य माधव कौशिक, दामोदर माउजो, प्रभा वर्मा, अनामिका, ए. कृष्णा राव, प्रफुल्ल शिलेदार, जानकी प्रसाद शर्मा और ज्ञानपीठ निदेशक मधुसूदन आनंद भी इस बैठक में उपस्थित थे।
प्रसिद्ध कृतियां और सम्मान
विनोद कुमार शुक्ल की रचनाओं में “दीवार में एक खिड़की रहती थी” (जिसके लिए उन्हें 1999 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला), “नौकर की कमीज” (1979, जिस पर मणि कौल ने फिल्म बनाई), और कविता संग्रह “सब कुछ होना बचा रहेगा” (1992) प्रमुख हैं।
ज्ञानपीठ पुरस्कार की शुरुआत 1961 में हुई थी और यह पहली बार 1965 में मलयालम कवि जी. शंकर कुरुप को दिया गया था। यह पुरस्कार केवल भारतीय लेखकों को ही प्रदान किया जाता है।
नए लेखकों को सलाह
युवा और नए लेखकों के लिए विनोद कुमार शुक्ल ने कहा, “अपने ऊपर भरोसा रखिए और लिखते रहिए। लिखना एक छोटी चीज़ नहीं है, इसे गंभीरता से लें और पाठकों की प्रतिक्रिया को भी महत्व दें।”
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