भारत में प्रजनन दर चिंता का विषय है,क्यों?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत में समय-समय पर जनसंख्या नियंत्रण को लेकर सवाल उठते रहे हैं। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर भारत के विभिन्न राज्यों में इसकी क्या तस्वीर है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे ( एनएफएचएस) के सर्वे यह बताते हैं कि देश के कुछ राज्यों में प्रजनन दर चिंता का विषय जरूर है, लेकिन देश में जनसंख्या बढ़ने की दर कम हो रही है। ऐसे में यह जानते हैं कि आखिर किन राज्यों में स्थिति चिंताजनक है। इसके लिए क्या सरकारी उपया किए गए हैं। इन सब मामलों में विशेषज्ञों की क्या राय है।
भारत में जनसंख्या बढ़ने की दर कम हुई
डा अभिषेक प्रताप सिंह ने कहा कि देश में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे ( एनएफएचएस) किसी भी राज्य में प्रजनन दर, फैमिली प्लानिंग, मृत्यु दर, जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य से जुड़े ताज़ा आंकड़े उपलब्ध कराने के मकसद से कराया जाता है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के ताजा आंकड़े पर अगर नजर डाले और उसका विश्लेषण करे तो यह प्रतीत होता है कि भारत में जनसंख्या बढ़ने की दर कम हो रही है। आंकड़े यह बताते हैं कि देश में प्रजनन दर में भी कमी आ रही है। एनएफएचएस के आंकड़े के मुताबिक भारत में राष्ट्रीय स्तर पर कुल प्रजनन दर 2.1 से कम हो गई है। अगर यही स्थिति कायम रही तो भारत के लिए यह चिंता का विषय हो सकता है। उन्होंने कहा कि प्रजनन दर ही वह पैमाना है, जिसके आधार पर किसी देश या राज्य में जनसंख्या विस्फोट की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।
देश के कुछ राज्यों में प्रजनन दर अधिक
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर प्रजनन दर दो से नीचे जाना चिंता का बड़ा कारण बन सकता है। डा अभिषेक ने जोर देकर कहा कि सरकार को इस पर पैनी नजर बनाए रखने की जरूरत है, जिससे प्रजनन दर 2.1 के आस-पास बनी रहे। रिपोर्ट यह बताती है कि देश के कुछ राज्यों में प्रजनन दर अधिक है। खासकर बिहार, यूपी, मेघालय, मणिपुर, और झारखंड ऐसे राज्य हैं, जहां प्रजनन दर 2.1 से ज्यादा है। इन राज्यों को विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
इन राज्यों को ऐसे कदम उठाने चाहिए ताकि पांच वर्षों में इन राज्यों की प्रजनन दर को राष्ट्रीय औसत के करीब लाया जा सके। उन्होंने कहा कि बाकी राज्यों में इस लक्ष्य को परिवार नियोजन के जरिए हासिल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2016 में मिशन परिवार विकास की शुरुआत की थी। यह योजना देश के उन सात राज्यों के लिए जहां फर्टिलिटी रेट अधिक है। इसका मकसद उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और असम में फर्टिलिटी रेट को साल 2025 तक 2.1 से कम करना है।
टोटल फर्टिलिटी रेट कम होने के पीछे क्या है वजह
उन्होंने कहा कि देश में टोटल फर्टिलिटी रेट कम हो रहा है। उन्होंने कहा कि इसके अपने सामाजिक और आर्थिक कारण है। देश में संयुक्त परिवार की संकल्पना कमजोर हो रही है। दंपती औसतन दो बच्चे पैदा कर रहे हैं। परिवार का आकार छोटा हुआ है। उन्होंने कहा कि आर्थिक दबाव के कारण कामकाजी दंपतियों के लिए बच्चों की देखरेख भी छोटा परिवार रखने के मुख्य वजहों में एक है।
उन्होंने कहा कि समाज का एक ऐसा वर्ग भी है जो लड़कों की ख्वाहिश में दो बच्चों तक सीमित नहीं कर रहा है। टोटल फर्टिलिटी रेट कम होने के पीछे लड़कियों के विवाह की उम्र में बढ़ोतरी और उनके स्कूल जाने के वर्षों में बढ़ोतरी हुई है। देश में दंपती गर्भ निरोध के प्रति भी सचेत हुए हैं। उन्होंने कहा कि भारत के लिए जनसंख्या स्थिरता बेहद जरूरी है। हालांकि, अभी फर्टिलिटी रेट में कमी आई है, लेकिन जनसंख्या को स्थिर करने में लगभग 40 साल यानी 2060 के लगभग तक हो पाएगा।
चीन की जनसंख्या नीति से सबक लेने की जरूरत
चीन की बात की जाए तो वहां की एक बच्चा नीति दुनिया के सबसे बड़े परिवार नियोजन कार्यक्रमों में से एक है। इस नीति की शुरुआत साल 1979 में हुई थी और ये करीब 30 साल तक चली। वर्ल्ड बैंक के मुताबिक चीन की फर्टिलिटी रेट 2.81 से घटकर 2000 में 1.51 हो गई और इससे चीन के श्रमिक बाजार पर बड़ा प्रभाव पड़ा। आखिरकार चीनी सरकार को अपनी एक बच्चा नीति पर पुनर्विचार करना पड़ा। चीन सरकार ने इस जनसंख्या नीति को बंद कर दिया। भारत को भी चीन से सबक लेना चाहिए भारत को जनसंख्या नियंत्रण कानून के मामले में सावधानी बरतने की जरूरत है, जिससे चीन की स्थिति न उत्पन्न होने पाए।
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