भय एवं भूख से लड़ता सिधवलिया का अंशु अपने घर पहुँचा

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भय और भूख की कहानी अपनी जुबानी कही उसे सून कर रोंगटे खड़े हो जाने वाले हैं

श्रीनारद मीडिया, सिधवलिया , गोपालगंज(बिहार):


रूस यूक्रेन की लड़ाई ने कारण सप्ताह दिनों के जद्दोजहद के बीच भय एवं भूख से लड़ता सिधवलिया का अंशु अपने घर पहुँच गया। बरहिमा के आमोद सिंह का पुत्र आशु ने अपने सप्ताह दिन के भय और भूख की कहानी अपनी जुबानी कही उसे सून कर रोंगटे खड़े हो जाने वाले हैं।

जापोरिज्ज़या यूनिवर्सिटी युक्रेन में एमबीबीएस के चौथे साल की पढ़ाई करने वाला आशू कुमार को जब 23 फरवरी को सुना कि यूक्रेन के जोनवास पर रूस ने कब्जा कर लिया । तब से ही वह युद्ध और हमले से आशंकित होकर रहने लगा। उसके बाद जैसे ही रूसी सेना द्वारा एक एक दिन एक एक क्षेत्र पर अधिकार करने की सूचना उसे मिली, वह अपने कुछ साथियों के साथ पैदल ही स्वदेश लौटने के लिए निकल पड़ा।

इस दौरान उसके साथियों व उसने स्वयं एमबीसी युक्रेन दूतावास से बात भी की ।जहां से उसे साठ से सतर हजार भारतीय रुपए मिलने के बाद स्वदेश भेजने की बात बताई गई। इस दौरान युद्ध की बढ़ती भयावहता के बीच आशू कई दिनों तक रात में बंकर के अंदर छुपकर रात गुजारी। बाद में अपने दो दोस्त के साथ पैदल, बस व ट्रेन के सहारे चॉक रेलवे स्टेशन पर पहुंचा ।जहां से हंगरी यूक्रेन की सीमा के समीप इंडिया दूतावास है।वहाँ से वह फ्लाईट द्वारा अपने स्वदेश पहुचा।

सप्ताह दिनों तक जद्दोजहद करने वाले अंशु बताते है कि हफ्ते दिनों तक अपना लॉज छोड़ भागते भागते उसकी स्थिति यह हो गई थी कि जेब में ना पैसे थे और ना पास में खाने का सामान। ऐसी विकट परिस्थिति में यूक्रेन के निवासियों ने उसे पेट भरने के लिए चाय बिस्कुट के अलावे भोजन का भी प्रबंध कराया था। वही यूक्रेन से सकुशल लौटे अंशु की मां संगीता देवी,दादी कलावती देवी और दादा राम जी सिंह के हर्ष का ठिकाना नहीं है ।

उन्होंने अपने बेटे व पोते की सकुशल वापसी के लिए ईश्वर से कई मन्नते भी मांगी थी ।जिसे के बाद आशू सकुशल घर पहुंचा है। वहीं अंशु के घर लौटने के बाद उसके बड़े भाई विवेक सिंह जो पूणे में इंजीनियर हैं । पिता आमोद सिंह जो दो वर्ष पूर्व सेना से रिटायर हो चुके है और छोटा भाई आदर्श कुमार सिंह की खुशी का ठिकाना नहीं है। गांव के आसपास के लोग यूक्रेन और रूस की लड़ाई के बारे में जानने सुनने के लिए आशू के पास पहुंच रहे हैं ।अंशु अपने सप्ताह दिनों की जद्दोजहद कर घर लौटने की कहानी कहते कहते आंखों में पानी भर जा रहा है।

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