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नीलकंठ गंजू के मर्डर केस में 33 साल बाद खुली फाइल,क्या मिलेगा इंसाफ? - श्रीनारद मीडिया

नीलकंठ गंजू के मर्डर केस में 33 साल बाद खुली फाइल,क्या मिलेगा इंसाफ?

नीलकंठ गंजू के मर्डर केस में 33 साल बाद खुली फाइल,क्या मिलेगा इंसाफ?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

Neelkanth Ganjoo Murder: ‘कश्मीरी पंडित’ इस नाम को सुनने के बाद हर किसी के जहन में खून-खराबा, परिवार का खोना, बेटियों के साथ दुष्कर्म और गोलीबारी जैसी घटनाएं याद आती है। कश्मीर फाइल्स फिल्म देखने के बाद कश्मीरी पंडितों के आंखों से आंसू रुक ही नहीं रहे थे, क्योंकि उन्हें 1989 का वो काला साल याद आ गया, जिसमें उन्हें अपने घरों को छोड़कर पलायन करने पर मजबूर होना पड़ा।

बर्बरता की हदें पार कर कश्मीरी पंडितों की हत्या की गई, जिसमें कई नाम शामिल थे। आज हम आपको उस कश्मीरी पंडित के बारे में बताने जा रहे है, जिसकी नृशंस हत्या के 2 घंटे बाद भी शव लावारिस तरीके से सड़क पर पड़ा हुआ था। हम बात कर रहे है जम्मू-कश्मीर के रिटायर्ड जज नीलकंठ गंजू की। इनकी हत्या भारतीय जनता पार्टी के नेता टीका लाल टपलू की हत्या के ठीक 7 हफ्ते बाद हुई थी।

34 साल पहले क्या हुआ था?

दिन का समय, तारीख थी 4 नवंबर, 1989 जम्मू-कश्मीर में इस समय माहौल काफी तनावपूर्ण था। अपनी इज्जत और जान बचाने के लिए कश्मीरी पंडित घाटी से लगातार पलायन कर रहे थे। वहीं, श्रीनगर हाई स्ट्रीट मार्केट के पास स्थित हाईकोर्ट के पास अचानक गोलियों की गूंज सुनाई दी। पता चला की एक और कश्मीर पंडित मारा गया है। शख्स थे नीलकंठ गंजू। ताबड़तोड़ गोली लगने के बाद गंजू की मौत हो गई थी और उनका शरीर लावारिस तरीके से 2 घंटे तक सड़क पर पड़ा हुआ था। हत्या के कुछ देर बाद ही रेडियो कश्मीर ने एक घोषणा की थी ‘अज्ञात हमलावरों ने एक पूर्व सत्र न्यायाधीश की गोली मारकर हत्या कर दी है।’

क्यों की गई जस्टिस नीलकंठ गंजू की हत्या?

1968 में आतंकी मकबूल भट को फांसी की सजा सुनाई गई थी। यह सजा किसी और ने नहीं बल्कि जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के जज नीलकंठ गंजू ने सुनाई थी। 1984 में दिल्ली के तिहाड़ जेल में भट की फांसी के बाद जस्टिस गंजू आतंकियों के निशाने पर आ गए थे। बाद में जम्मू कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट के लीडर और अलगाववादी नेता यासीन मलिक ने इस हत्याकांड की जिम्मेदारी ली थी। यासीन मलिक ने कहा था कि उसने मकबूल भट की मौत का बदला लेने के लिए नीलकंठ की हत्या की थी।

पुलिस इंस्‍पेक्‍टर अमर चंद की साल 1966 में हत्‍या के मामले में नीलकंठ गंजू ने यह फैसला दिया था. साल 1989 में कश्‍मीरी पंडितों के खिलाफ शुरू हुए दंगों के दौरान आतंकियों ने उन्‍हें मौत के घाट उतार दिया था. जिला न्‍यायालय के जज के रूप में उनके द्वारा सुनाए गए फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने भी सही माना था. साल 1982 में मकबूल बट को दी गई फांसी की सजा को बरकरार रखा गया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद 1984 में बट को दिल्‍ली की तिहाड़ जेल में फांसी दी गई थी.

अब राज्‍य की जांच एजेंसी (SIA) ने लोगों से अपील की है कि अगर उनके पास जस्टिस नीलकंठ गंजू की हत्‍या से जुड़ी कोई भी जानकारी उपलब्‍ध है तो वो उन्‍हें संपर्क कर सकते हैं. जानकारी देने वालों की पहचान को गुप्‍त रखा जाएगा. लोगों के लिए एक फोन नंबर व ईमेल एड्रेस उपलब्‍ध कराया गया है.

33 साल पुराने मामले में भी हुई गिरफ्तारी
जम्‍मू-कश्‍मीर पुलिस की जांच एजेंसी ने इससे पहले साल 1990 के एक हत्‍याकांड के मामले में 33 साल बाद गिरफ्तारियां की थी. तब अज्ञात आतंकवादियों द्वारा श्रीनगर के निगीन इलाके में मीरवाइज मोहम्मद फारूक के घर में घुसकर उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. जम्मू-कश्मीर पुलिस ने हत्या में शामिल होने के संदेह में दो लोगों को गिरफ्तार करने का दावा किया. पुलिस ने कहा कि आरोपी पिछले तीन दशकों से गिरफ्तारी से बच रहे थे. हुर्रियत अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक के पिता मीरवाइज फारूक की 21 मई 1990 को हत्या कर दी गई थी.”

कौन था मकबूल भट?

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