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पहले हम आदतें बनाते हैं और उसके बाद आदतें हमें बनाती है,कैसे? - श्रीनारद मीडिया

पहले हम आदतें बनाते हैं और उसके बाद आदतें हमें बनाती है,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

आदतों के बारे में जेम्स क्लियर की प्रसिद्ध पुस्तक ‘‘एटामिक हैबिट्स’’ में आदत की व्याख्या उस व्यवहार के रूप में की गई है, जो कमोबेश अपने आप यानी आटोमेटिक तरीके से होती चली जाती है। तंत्रिका तंत्र विज्ञान के विशेषज्ञों यानी न्यूरोसाइंटिस्ट्स का मानना है कि हमारे व्यवहार को आदतों में बदलने का संबंध बेसल गैंग्लिया कहे जाने वाले दिमाग के हिस्से से है। यह हमारे दिमाग में किसी जानकारी को सांकेतिक शब्दों में बदलता और संग्रहित करता है तथा यह हमारे कार्यों और व्यवहारों को प्रभावित करता है।

पहले हम आदतें बनाते हैं और उसके बाद आदतें हमें बनाती हैं। दरअसल, हम जो हैं, वही हमारी आदतें हैं। वह किसी व्यक्ति विशेष के लिए जीवन की संहिता जैसी होती हैं। जीवन पद्धति के रूप में हिन्दुत्व सदियों से विकसित होता रहा है। यह विश्व की सबसे पुरानी और सबसे समृद्ध सभ्यता है। हिन्दुत्व में आस्था रखने वाले प्राचीन संतों ने मानव दिमाग के काम करने के तरीके का गहराई से अवलोकन किया और सामाजिक व व्यक्तिगत स्तर पर बेहतर परिणाम देने वाली कुछ आदतों का विकास किया है। इन आदतों को संस्कार, कर्तव्य और धर्म इत्यादी के विभिन्न नामों से भी जानते हैं।

दैनिक आदतों के रूप में आत्मसात की गई इन सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं का अनुसरण प्रत्येक हिन्दू को सफल और सुखी होने के लिए करना चाहिए। सफल व संतुष्ट जीवन के लिए प्रत्येक हिन्दू के दैनिक जीवन में विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों और व्यवहारों के रूप में इन मूल्यों को आत्मसात किया गया है। संतो का अनुभव है कि इन आदतों का अनुसरण कर सिद्धि प्राप्त की जा सकती है। सिद्धि का तात्पर्य है किसी भौतिक और आध्यात्मिक सफलता पर दिमाग को नियंत्रित करने में महारत हासिल करना। हिन्दुत्व के मुताबिक सफलता के लिए मुख्य सात आदतें निम्नलिखित हैं।

सूर्योदय से पहले उठना

सफलता के लिए हिन्दुत्व में सबसे पहली और महत्वपूर्ण आदत सुबह उठने को सुझाया गया है। जीवन में सफलता हासिल करने की चाह रखने वालों के लिए आदर्श समय सूर्योदय से आधे घंटे पहले उठना है। इस समय वातावरण में कोई कोलाहल नहीं नहीं होता और वह बहुत शांत होता है। ऐसे वातावरण में कोई व्यक्ति अपने जीवन और दिन के उद्देश्यों के बारे में ध्यान लगा सकता है।

मजेदार बात यह है कि आधुनिक विज्ञान में हुए ताजा शोध भी इस सच्चाई को स्वीकार करने लगे हैं कि सुबह जल्दी उठने का सीधा प्रभाव व्यक्ति की उत्पादकता और दक्षता पर पड़ता है। हाल ही में पश्चिमी साहित्य ने भी सुबह सूर्योदय से पहले उठने की अहमियत को पहचानना आरंभ किया है।

दुनिया के सबसे प्रभावी स्व-सहायता कोचों में शुमार लेखकों रॉबिन शर्मा की ‘‘द फाइव एएम क्लब’’, हेल एलरोड की द मिरेकल मॉर्निंग, डेन लुसा की ‘‘द फाइव एएम रिवोल्यूशन’’ जैसी कुछ प्रसिद्ध पुस्तकें हैं, जो निपुण, उपयोगी और सकारात्मक बनने के लिए सुबह जल्दी उठने की आदतों पर जोर दे रही हैं।

जीवन का उद्देश्य तय कीजिए

प्रसिद्ध अमेरिकी मनोवैज्ञानिक अब्राहम मासलो ने 1954 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘‘मोटिवेशन एंड पर्सनालिटी’’ से पूरी दुनिया को हिला दिया। इस पुस्तक में उन्होंने विस्तार से बताया है कि पांच मुख्य जरूरतें मानव व्यवहार में ऊर्जा और प्रेरणा का आधार तैयार करती हैं। प्रेरणा के इस सिद्धांत के मुताबिक मानवीय आवश्यकताओं का एक अनुक्रम है, जो मनुष्यों के व्यवहार को निर्धारित करता है।

ये आवश्यकताएं हैं: मनोवैज्ञानिक, सुरक्षा, विश्वास और प्रेम, आत्म सम्मान और आत्म-बोध। हिन्दू आदतों के आधार पर इन मानवीय जरूरतों और जीवन के उद्देश्यों को चार हिस्सों यानी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में विभाजित किया गया है। मनुष्य के दैनिक जीवन की हर गतिविधि इन्हीं चार कसौटियों द्वारा निर्देशित और निर्धारित होनी चाहिए। इस अनुक्रम के आधार में धर्म है। धर्म को हमारे हर काम का निर्धारण करना चाहिए और हर काम और जीवन का अंतिम उद्देश्य हर व्यक्ति के लिए मोक्ष होना चाहिए। मास्लो द्वारा प्रतिपादित आत्म-बोध की अवधारणा मोक्ष के बेहद करीब है।

ध्यान

सफलता और आदतों के मुद्दों पर लिखने वाले विश्व प्रसिद्ध ब्लागर लियो बबूता (जेन हैबिट्स) का कहना है कि यह कोई रहस्य नहीं है कि वह अपने दिन की बेहतर शुरुआत करने, तनाव को दूर करने और वर्तमान में रहने के लिए ध्यान की वकालत करते हैं। तनाव को दूर करने और भाग-दौड़ या कोलाहल से खुद को अलग रखने का सबसे सर्वश्रेष्ठ तरीका ध्यान है।

ध्यान उन सर्वश्रेष्ठ आदतों में है, जिसे जैक केनफिल्ड, एंथनी रॉबिंसन और अन्य सफल ‘‘सक्सेस गुरु’’ ने भी अपनाया है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि हिन्दू ही हैं जिन्होंने दुनिया को ध्यान की कला से अवगत कराया। वह चाहे प्राणायाम हो या शांति और शारीरिक क्रियाओं के अन्य प्रकार हों। ध्यान का आसान और सबसे प्रभावी तरीका आपके दिन की एक शानदार शुरुआत कर सकता है।

स्वस्थ व विविध प्रकार के भोजन का आनंद लें

हिन्दुत्व में खानपान और आहार के प्रति सजगता को दुनिया भी तेजी से समझने लगी है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए यह सजगता अनिवार्य है। हिंदू संहिता में आहार साधारण और पौष्टिक होने चाहिए ताकि हमारे शरीर को हर वह चीज मिल सके जिसकी उसे जरूरत है। इसमें बताया गया है कि ना सिर्फ आपको साधारण भोजन करना चाहिए बल्कि आहार में विविधता को भी अपनाना चाहिए।

विविधता का मतलब ऐसे आहार से है, जिनमें पोषक तत्वों के मूलभूत अवयव मौजूद हों। आयुर्वेदिक आहार में बताया गया है कि प्रत्येक आहार में सभी छह बुनियादी स्वाद होने चाहिए ताकि उससे आप स्वस्थ, दक्ष और जीवंत बन सकें। अपने यहां भोजन करने की तुलना यज्ञ से की गई है, जिसमें शरीर को स्वस्थ व जीवंत बनाने के लिए चयापचय के जरिए चर्बी जलाने का काम किया जाता है। भोजन की तुलना दवाई से की गई है और सफलता के लिए स्वस्थ भोजन पहली जरूरत है। इसलिए हिन्दुत्व में भोजन को एक आदतनुमा अनुष्ठान के रूप में आत्मसात किया गया है।

शारीरिक अभ्यास

दक्षता और अभ्यास एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। सफल लोग एक या अन्य प्रकार के अभ्यास रोजाना करते हैं। आप एक भी ऐसे सफल व्यक्ति को नहीं पाएंगे जिसमें तंदुरूस्ती की सनक न हो। हिन्दू आदतों के मुताबिक व्यक्ति को योग जरूर करना चाहिए जोकि शरीर के द्वारा दिमाग पर नियंत्रण पाने का एक तरीका है। वास्तव में आपको अपने दिन की शुरुआत योग से करनी चाहिए। योग दुनिया को हिन्दुत्व की ओर से आदतों का सर्वश्रेष्ठ उपहार है।

दूसरों की बजाय अपने आप से प्रतियोगिता करना

पश्चिमी संस्कृति में कहा जाता है कि जो सबसे योग्य व्यक्ति है, वह अपना अस्तित्व बचाने में सक्षम होगा लेकिन इसके इतर हिन्दू संस्कृति में इस प्रकार की प्रतियोगिता का स्थान नहीं है। हिन्दू संस्कृति सह-अस्तित्व की बात करता है। जब हम प्रकृति और अन्य जीवों के साथ सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में रहते हैं तब हमारा प्रदर्शन अच्छा होता है, क्योंकि इससे तनाव कम होता है और हम दूसरों के लिए अधिक खुले होते हैं।

इसके लिए हिन्दू संस्कृति किसी भी गला काट प्रतिस्पर्धा में दूसरों को बाहर करने की बजाय खुद को प्रतिस्पर्धा से बाहर करने की आदत का सुझाव देता है। इसलिए आपके पुराने स्वरूप के मुकाबले सिर्फ प्रतिस्पर्धा बेहतर हो रही है और सिद्धि आपका सर्वश्रेष्ठ स्वरूप बन रहा है।

ध्यान केंद्रित करने की आदत

सफल होने के लिए जिन सर्वश्रेष्ठ आदतों की दरकार होती हैं, उनमें एक है ध्यान केंद्रित करने की आदत विकसित करना। सकारात्मक मनोवैज्ञानिक मिहाली सिक्जेंटमिहालयी इसकी व्याख्या एक ऐसी अवस्था में रूप में करते हैं, जिसमें व्यक्ति किसी एक गतिविधि में पूरी तरह डूब जाता है। आदतों के बारे में हिंदू संहिता में बताया गया है कि कर्म एक ऐसी क्रिया है जिसमें आप अपने काम या विचार के चुने हुए प्रवाह में खुद को खपा देते हैं। जब आप अपने काम में डूब जाते हैं, तब वह आपका सर्वश्रेष्ठ स्वरूप सामने उभरता है।

इससे ‘‘योग: कर्मसु कौशलम’’, ‘‘कर्मसु कौशलम’’, योग (काम में निपुणता और निपुणता से काम) की आदत विकसित होती है। इसमें व्यक्ति फल की चिंता किए बगैर अपने काम में खुद को खपा देता है। यह ऐसी अवस्था होगी, जिसमें आपका शरीर, दिमाग, बुद्धि और आत्मा एक समान स्तर पर हो और दूसरी तरफ जो काम कर रहा हो, उसमें पूरी तरह उसका ध्यान केंद्रित रहे। प्रवाह के सिद्धांत के मुताबिक आप ‘‘फ्लो स्टेट आफ माइंड’’ में रहते हैं तो आप 600 प्रतिशत तक दक्षता हासिल कर सकते हैं।

यह जीवन जीने की हिन्दू पद्धति ही है, जो हिन्दुओं को दुनिया के हर हिस्से में और जीवन के सभी क्षेत्रों में सफल बना रहा है। और यह हिन्दू समाज की जिम्मेदारी है कि वह शेष दुनिया में इसे लेकर जाए ताकि हिन्दू सभ्यता अपनी क्षमता को पहचान सके।

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