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गांधी जी ने मौलाना साहब को मुल्क की बड़ी हस्ती माना था. - श्रीनारद मीडिया

गांधी जी ने मौलाना साहब को मुल्क की बड़ी हस्ती माना था.

गांधी जी ने मौलाना साहब को मुल्क की बड़ी हस्ती माना था.

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राष्ट्रपिता के विचार से प्रभावित होकर मौलाना मजहरूल हक साहब ने रईसी ठाठ बाट को छोड़कर अपना लिया फकीरी जीवन

मौलाना मजहरूल हक साहब की जयंती(22 दिसंबर) के संदर्भ में विशेष आलेख, भाग 04

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

‘यों तो ऐसे लोग हर जमाने में बहुत कम हुए हैं। लेकिन मुल्क के इतिहास के इस दौर में तो ऐसी हस्ती ढूंढने से भी नहीं मिलेगी’। ये उद्गार बापू ने मौलाना मजहरूल हक साहब के बारे में व्यक्त किए थे। अपने राष्ट्र के प्रति समर्पण और सच्चे सेवाभाव के कारण मौलाना साहब गांधीजी को विशेष प्रिय थे। यह अलग बात हैं कि मौलाना साहब आजादी के गुमनाम नायक के तौर पर जाने जाते रहे जबकि भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए उन्होंने अपना सबकुछ न्योछावर कर डाला।

जहाज में हुई थी गांधी जी से पहली मुलाकात

मौलाना साहब एक अमीर घराने से थे। उन्हें लंदन में पढ़ाई का विशेष शौक था। लेकिन परिवार के मन्तव्यों को समझते हुए हज जानेवाले यात्रियों के सहयोग से अदन पहुंच गए। वहां फिर घर से सहयोग पाकर वे इंग्लैंड के लिए जहाज से रवाना हुए। उसी जहाज में उनकी गांधी जी से पहली मुलाकात हुई लेकिन समय के साथ उनकी गांधी जी से बढ़ती घनिष्ठता ने उनके जीवन में आमूल चूल परिवर्तन लाया।

चंपारण, छपरा में गांधीजी के साथ

1917 में जब गांधीजी चंपारण गए तो मौलाना साहब के घर पर ही ठहरे। मोतिहारी में जब गांधी जी पर धारा 144 के उल्लंघन का आरोप लगा तो मौलाना साहब तुरंत मोतिहारी पहुंचे। मुकदमा जब उठा लिया गया तो गांधीजी मौलाना साहब के साथ छपरा भी आए। गांधी जी के विचारों का असर मौलाना साहब पर विशेष रूप से पड़ा।

असहयोग आंदोलन में छोड़ दी चमचमाती वकालत

रॉलेट एक्ट के विरोध और उसके बाद असहयोग आंदोलन के संदर्भ में गांधी जी के सरकारी अदालतों के बहिष्कार के आह्वान पर मौलाना साहब ने अपनी चमचमाती वकालत छोड़ दी और रईसी ठाठ बाट छोड़कर फकीरी जीवन जीने लगे। असहयोग आंदोलन के दौरान अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में वे सबसे आगे रहे। असहयोग आंदोलन के दौरान बिहार में स्थापित महाविद्यापीठ के वे कुलपति रहे।

छात्रों के लिए दान कर दी 16 बीघा जमीन

बिहार स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के छात्र, जो असहयोग आंदोलन के दौरान पढ़ाई छोड़ चुके थे, वे समुचित व्यवस्था के लिए गुहार लगाने मौलाना साहब के पास पहुंचे। मौलाना साहब ने पटना दानापुर रोड पर दीघा के समीप अपनी 16 बीघा जमीन दान कर दी और उस पर एक आश्रम बना जो बाद में सदाकत आश्रम के तौर पर राष्ट्रीय आंदोलन की गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बना।

गांधी जी ने मौलाना को माना सच्चा मुसलमान

मौलाना साहब के उदार और सांप्रदायिक सद्भाव से परिपूर्ण सोच के कारण गांधी जी उन्हें बहुत बड़े देश प्रेमी और सच्चा मुसलमान तथा बड़ा दार्शनिक माना करते थे। अंग्रेजी साप्ताहिक मदरलैंड के माध्यम से मौलाना साहब ने हिंदू मुस्लिम भाईचारे की भावना को खूब विकसित किया। यह वह दौर था जब अंग्रेजी हुकूमत की ‘फूट डालो और राज करो’ नीति के तहत सांप्रदायिक द्वेष को बढ़ावा देने के भरपूर प्रयास किए जा रहे थे। ऐसे में मौलाना साहब का कौमी एकता का संदेश सांप्रदायिक सौहार्द के लिए बहुत प्रभावी भूमिका निभा रहा था। बापू उनके इसी महान सोच के विशेष कायल थे।

आभार – गणेश दत्त पाठक

 

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