अहिल्याबाई होल्कर के पदचिन्हों पर चलते हुए PM मोदी ने कराया काशी के मंदिरों का जीणोद्धार.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
चाणक्य ने शासक बनने और सत्ता संभालने से संबंधित कुछ नीतियां बताई थीं। चाणक्य कहते हैं कि जो शासक धर्म में आस्था रखता है, वही देश के जन मानस को सुख पहुंचा सकता है। सद्विचार और सद् आचरण को धर्म माना जाता है। जिसमें ये दो गुण हैं वही राजा बनने योग्य है। अहिल्याबाई होल्कर 18वीं सदी में मालवां साम्राज्य की ऐसी ही महान शासक थीं। जिन्हें आज भी पूरा भारत बहुत ही श्रद्धा और आदर से याद करता है। केवल इसलिए नहीं कि वो बहुत बड़ी वीरांगना और अचूक तीरंदाज थीं। बल्कि इसलिए क्योंकि इन सब के साथ-साथ अहिल्याबाई होल्कर बेहद कुशल प्रशासक थीं जिन्होंने अपनी प्रजा विशेषकर गरीबों के जनकल्याण के लिए बहुत सारे कदम उठाए।
तो धर्म के मार्ग पर चलते हुए न सिर्फ राज्य में बल्कि राज्य की सीमाओं के बाहर भी तीर्थ स्थानों को विकसित किया। मंदिरों और घाटों का पुनर्निर्माण कराया। यही कारण है कि उन्हें लोकमाता कहा गया। लोकमाता अहिल्या बाई होल्कर का भारत की विरासत संस्कृत और शक्ति में महत्वपूर्ण योगदान उन्हें 18वीं सदी की एक महान विभूति के रूप में स्थापित करता है। आधुनिक काल में गिने चुने नेताओं ने ही देवी अहिल्याबाई के सनातन धर्म के दर्शन और परंपरा में निहित उनके मार्ग पर चलने का साहस किया है। इनमें सबसे प्रमुख नाम भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का है। हालांकि इस संबंध में होल्कर ने जो हासिल किया, उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता, लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि मोदी इतने बड़े पैमाने पर हिंदू पवित्र स्थलों के पुनर्निर्माण और जीर्णोद्धार का काम करने वाले उनके बाद पहले हिंदू नेता हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसी भी सरकार के प्रमुख पद पर रहते हुए 19 साल पूरे किए। करीब 12 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री और अब 7 साल से देश के प्रधानमंत्री के पद पर नरेंद्र मोदी विराजमान हैं। गुजरात और केंद्र दोनों में उनके नेतृत्व वाली सरकारों की विभिन्न उपलब्धियों पर बहुत बाते हुई, लेकिन उनकी विरासत का एक और पहलू है जिसके बारे में कोई बात नहीं कर रहा है।
पीएम मोदी चुपचाप मालवा की 18वीं शताब्दी की हिंदू रानी देवी अहिल्याबाई होल्कर के नक्शेकदम पर चल रहे हैं, कम से कम इसलिए नहीं कि दोनों एक गरीब और विनम्र पृष्ठभूमि से उठकर सर्वोच्च पदों पर पहुंचे। होल्कर का जन्म धनगर समुदाय में एक चरवाहा परिवार में हुआ था जो वर्तमान में महाराष्ट्र की विमुक्त जाति और घुमंतू जनजातियों की सूची में है।
इसी तरह, मोदी मोध-घंसी-तेली जाति से आते हैं, जो केंद्र की अन्य पिछड़ा वर्ग सूची में गिना जाता है। दोनों नेताओं के प्रशासनिक गुणों और फोकस में समानताएं भी देखी जा सकती हैं।
देवी अहिल्याबाई और मंदिर जीणोद्धार
अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 को चौंडी नामक गांव में हुआ था जो आजकल महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के जामखेड में पड़ता है। 1733 में यानी महज आठ साल की उम्र में ही उनका विवाह मल्हार राव खांडेकर के बेटे खांडेराव होलकर से कर दिया गया था। मल्हार राव खांडेकर मालवा राज्य के राजा व पेशवा थे। 1754 में उनके पति खांडेराव होलकर 1754 में कुम्भार के युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हुए। तब अहिल्याबाई की उम्र 21 वर्ष की थी और वे विधवा हो गईं। बेटे की मृत्यु के 12 साल बाद ही राजा मल्हार राव का भी निधन हो गया।
इसके बाद राज्य की जिम्मेदारी देवी अहिल्याबाई पर आ गई। उन्होंने राज्य को बचाने के लिए युद्ध के हर मोर्चे पर अपना साहस दिखाया। अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भारत-भर के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मन्दिर बनवाए, घाट बँधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण किया, मार्ग बनवाए-सुधरवाए, भूखों के लिए अन्नसत्र (अन्यक्षेत्र) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं, मन्दिरों में विद्वानों की नियुक्ति शास्त्रों के मनन-चिन्तन और प्रवचन हेतु की।
काशी विश्वनाथ मंदिर और रानी अहिल्याबाई कनेक्शन
इंदौर की रानी अहिल्याबाई होलकर ने यूं तो देशभर में अलग-अलग स्थानों पर कई मंदिरों, घाटों का निर्माण कराया है पर काशी के इतिहास में उनका स्थान अमिट है। रानी के योगदान के बिना श्री विश्वनाथ धाम का इतिहास पूरा नहीं होता। यही वजह है कि रानी अहिल्याबाई की प्रतिमा विश्वनाथ धाम में लगाने का फ़ैसला किया गया है। रानी अहिल्याबाई ने न सिर्फ काशी में बाबा विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया बल्कि बाबा की प्राण प्रतिष्ठा भी पूरे विधि विधान से शास्त्र सम्मत तरीके से करायी। रानी का योगदान अतुलनीय है।
रानी अहिल्याबाई ने शास्त्र सम्मत तरीक़े से शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा करवाई। एकादश रुद्र के प्रतीक स्वरूप 11 शास्त्रीय आचार्यों द्वारा प्राण प्रतिष्ठा के लिए पूजा की गई। रानी ने शिवरात्रि से ही इसका संकल्प कराया और शिवरात्रि पर ही ये खोला गया। उन्होंने केवल काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निमाण कराया। ध्वस्त हो चुके सोमनाथ मंदिर के समीप दो मंजिला मंदिर बनवाया। मंदिरों के पुरोद्धार को लेकर टीक वैसी ही समानता मोदी सरकार के प्रयासों में देखी जा सकती है।
औरंगजेब के फरमान पर किया गया था मंदिर ध्वस्त
औरंगजेब के फरमान के बाद 1669 में मुगल सेना ने विशेश्वर का मंदिर ध्वस्त कर दिया था। स्वयंभू ज्योतिर्लिंग को कोई क्षति न हो इसके लिए मंदिर के महंत शिवलिंग को लेकर ज्ञानवापी कुंड में कूद गए थे। हमले के दौरान मुगल सेना ने मंदिर के बाहर स्थापित विशाल नंदी की प्रतिमा को तोड़ने का प्रयास किया था लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी वे नंदी की प्रतिमा को नहीं तोड़ सके।
काशी विश्ननाथ कॉरिडोर
काशी किनारे कॉरिडोर पुकारे मां गंगा चली बाबा विश्वनाथ के द्वारे। काशी भगवान शिव की नगरी जहां पर साक्षात शिव वास करते हैं। काशी का इतिहास हजारों साल पुराना है। अमेरिकी लेखर मार्क ट्वेन ने कहा था- बनारस इतिहास से भी पुराना है, परंपराओँ से भी प्राचीन है। किवदंतियों से भी पुरातन है और अगर हम इन सबको जोड़ दें तो उनसे भी दोगुना प्राचीन है। सदियों से भक्त बाबा की इस प्राचीन नगरी में दर्शन करते आ रहे हैं। लेकिन अब काशी विश्वनाथ नगरी की रूप रेखा बदल गई है। अब हम इस नवीनतम तस्वीर को आपको दिखाएंगे जहां मां गंगा और बाबा विश्वनाथ एक दूसरे को लगभग देख सकते हैं। साढ़े तीन सौ मीटर का ये सफर मां गंगा की गोद से बाबा के द्वार तक तय करेंगे कमंडल में गंगाजल लेकर और बाबा विश्वनाथ का जलाभिषेक करेंगे।
बाबा विश्वनाथ के मंदिर में आने के लिए पहले चार द्वार हुआ करते थे। लेकिन अब इनकी संख्या बढ़कर सात हो गई है। इसका मतलब है मोक्ष का द्वार तो बाबा विश्वनाथ के यहां से मिलता ही था। लेकिन अब इस द्वार के जरिये सीधे मां गंगा के दर्शन मंदिर से ही हो जाएंगे। अब तक जिन भक्तों को कई गलियों से गुजरकर मंदिर तक आना पड़ता था। सीधे जल उठाकर बाबा के मंदिर तक आ सकेंगे। एक साथ पांच मंदिर जो इसी प्रांगण में है वो एक कतार में दिखेंगे। सबसे पहले दंडपाणी जी का मंदिर, उसके बाद वैकुंठ जी का मंदिर, फिर बाबा विश्वनाथ जी का मंदिर।
उसके बाद तारकेश्वर जी का मंदिर और फिर अंतिम में भुवनेश्वर जी का मंदिर भी। सिर्फ बात मंदिर दिखने की नहीं है बल्कि यहां समय बिताने की भी है। मंदिर में आप आएंगे जबतक पूरी परिक्रमा करेंगे, समय बिताएंगे तब तक के लिए इंतजाम है। पहले की तस्वीर इससे काफी अलग थी। पहले मंदिर दिखता था, बाबा के दर्शन होते थे और मंदिर परिसर में खड़े होने का समय तक नहीं मिलता था। काशी विश्वनाथ धाम परियोजना को दो चरणों में पूरा किया जा रहा है। 13 दिसंबर को पीएम मोदी के हाथों पहले चरण की परियोजना लोकार्पित होगी। इसमें मंदिर परिसर के साथ ही मुमुक्षु भवन, यात्री सुविधा केंद्र, वैदिक केंद्र, गंगा व्यू गैलरी, भोगशाला, फूड कोर्ट सेंटर, सुरक्षा केंद्र और मंदिर चौक सहित 19 भवन यात्री सुविधाओं के लिए तैयार किए गए हैं।
विदेशों में भी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के प्रयास
लोकमाता की तरह ही मोदी सरकार ने कई देशों में फैली सांस्कृतिक विरासत को फिर हासिल कर संरक्षित करने के प्रयास किए हैं। पीएम मोदी ने बहरीन की राजधानी में 200 साल पुराने श्रीनाथजी मंदिर के जीणोर्द्धार कार्य का उद्घाटन किया। उनसे प्रयासों से यूएई ने अबूधाबी में स्वामी नारायण मंदिर के तौर पर पहले परंपरागत हिन्दू मंदिर निर्माण की अनुमति दी। सरकार ने पिछले पांच वर्षों से विदेशों से रिकॉर्ड कलाकृतियां हासिल की हैं। भारतीय सर्वेक्षण विभाग ने अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, जर्मनी, कनाडा व इंग्लैंड से चुराई गई 44 कलाकृतियां हासिल की थी। 119 अन्य कलाकृतियां जल्द आएंगीं।
- यह भी पढ़े…..
- लोकतांत्रिक मूल्यों के लिये सदैव प्रयासरत रहे प्रणब दा.
- जनरल बिपिन रावत:कठिन परिस्थितियों से लड़ने वाले जांबाज योद्धा.
- ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह के बारे में वायु सेना ने जारी किया हेल्थ अपडेट.
- धार्मिक दंगे कब भारतवर्ष का पीछा छोड़ेंगे—शहीद भगत सिंह.
- पत्रकारों को दबाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए सरकारी तंत्र का इस्तेमाल—सुप्रीम कोर्ट.