सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय की है
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
राज्यपाल का कार्यालय लोकतांत्रिक परंपराओं के तहत करे काम
संवैधानिक योजना संवैधानिक अथारिटी को अपनी शक्तियों का मनमाने ढंग से इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं देती। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में विधेयकों पर सहमति के बारे में राज्यपाल और राष्ट्रपति को समय सीमा के दायरे में बांध दिया है। यदि राष्ट्रपति सहमति देने में देरी करते हैं, तो संबंधित राज्य सुप्रीम कोर्ट आ सकता है। राज्यपाल के कार्यालय को लोकतांत्रिक परंपराओं के अनुसार काम करना चाहिए।
तमिलनाडु सरकार ने उठाया था मुद्दा
कानून बन गए 10 विधेयक
- फैसले में कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा रोक कर रखे गए 10 विधेयकों को राज्यपाल के समक्ष दोबारा विचार के लिए भेजने की तिथि से मंजूर घोषित किया है। यह पहला मौका है जब सर्वोच्च अदालत ने सीधे विधेयकों को मंजूर घोषित किया है। विधेयकों को राज्यपाल और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बगैर कोर्ट के आदेश से कानून की हैसियत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने विधेयकों को सीधे मंजूरी का फैसला संविधान के अनुच्छेद 142 में प्राप्त विशेष शक्तियों के तहत किया है।
- सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में राज्य विधानसभा से पारित विधेयकों को राज्यपाल द्वारा विचार के लिए राष्ट्रपति को भेजे जाने और राष्ट्रपति को अनुच्छेद 201 में मंजूरी देने की प्राप्त शक्तियों की विस्तृत व्याख्या की है।
- कोर्ट ने कहा है कि वैसे तो संविधान के अनुच्छेद 201 में राष्ट्रपति के निर्णय लेने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं है, लेकिन फिर भी उन्हें तर्कसंगत समय में निर्णय लेना चाहिए। राष्ट्रपति को अनुच्छेद 201 में मिली शक्ति को तर्कसंगतता के सामान्य नियम से कोई छूट प्राप्त नहीं है।
- कहा कि प्रविधान की प्रकृति, सरकारिया कमीशन, पुंछी कमीशन की रिपोर्ट व गृह मंत्रालय का चार फरवरी, 2016 को जारी मैमोरेंडम को देखते हुए राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा विचार के लिए भेजे गए विधेयक पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेना चाहिए। अगर यह तय समय सीमा पार हो जाए और देरी हो जाए तो उसके उचित कारण रिकार्ड किए जाने चाहिए और संबंधित राज्य को बताए जाने चाहिए।
राज्यपाल के पास कोई पूर्ण वीटो नहीं
कोर्ट ने फैसले में कहा है कि जब कभी राज्यपाल अनुच्छेद 200 के तहत मिली शक्ति का इस्तेमाल करते हुए किसी विधेयक को पूरी तरह असंवैधानिक होने के आधार पर रोक लेते हैं और राष्ट्रपति के विचार के लिए भेजते हैं तो राष्ट्रपति को इस संवैधानिक अदालत से गाइडेड होना चाहिए। पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की जिम्मेदारी है कि वह कार्यपालिका और विधायिका की कार्रवाई की वैधता और संवैधानिकता तय करे। ऐसे में राष्ट्रपति को बुद्धिमानी से काम लेते हुए संविधान के अनुच्छेद 143 में सुप्रीम कोर्ट को रिफरेंस भेज कर राय लेनी चाहिए। कोर्ट ने कहा है कि राज्यपाल के पास कोई पूर्ण वीटो नहीं है और यही नियम राष्ट्रपति पर भी लागू होता है।
पहले भी उठ चुका है विधेयकों को लटकाने का मामला
- यह भी पढ़े………………
- सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय की है
- सीवान की जॉली चतुर्वेदी ने अंतराष्ट्रीय प्रतिभा खोज परीक्षा में पाया स्वर्ण पदक
- डिप्टी सीएम बृजेश पाठक बोले- कांग्रेस, सपा में सिर्फ परिवार के लोग बनते हैं नेता