मानवता की रक्षा के लिए नवासा-ए- रसूल ने होने दिया अपने बेज़ुबान बच्चें तक को कुर्बान

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आलेख *सैयद आसिफ़ इमाम नेता जदयू सह सदस्य, बिहार राज्य शिया वक़्फ़ बोर्ड बिहार सरकार*

श्रीनारद मीडिया‚ सुबाष शर्मा‚ सीवान (बिहार):

पुरा विश्व जानता है की चौदह सौ साल पहले हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सअव के नवासे के साथ आपके समस्त परिवार को यज़ीद जैसा ज़ालिम ने एक-एक कर के बहत्तर लोगो को शहीद कराया।
इमाम हुसैन ने नाना हज़रत मोहम्मद सअव के दिन और इंसानियत बचाने के लिए अपने परिवार के छे माह तक के बच्चे व साथियो को शहीद होने दिया किंतु हक़ को बातिल के हाथों बय्यत नही होने दिया।
और तमाम दुनिया इस बात को बखूबी जानती है की इमाम हुसैन और आपके समस्त परिवार पर कर्बला के मैदान मे हर तरह के ज़ुल्म किये गए ताकि मानवता व नाना के कलमा को मिटाया जा सके लेकिन इमाम हुसैन ने और आपके समस्त परिवार वालों ने व साथियों ने हर ज़ुल्म पर सब्र किया और तमाम इंसानियत को बता दिया की कयामत तक के लिए ज़ुल्म सह कर भी ज़ुल्म को कैसे हराया जा सकता है।
कर्बला मे इमाम हुसैन के साथ तमाम बच्चे बूढ़े व ७२ साथियों को हर वो ज़ुल्म देकर शहीद किया गया जिस शहादत को क्यामत तक भुला नही जा सकता है।
बाद शहादत-ए- कर्बला
हज़रत अली व इमाम हुसैन की बेटी जनाबे ज़ैनब ने ही बाकी बचे लोगो को संभाला था।
क्योंकि कर्बला मे मर्दों की शकल मे सिर्फ इमाम हुसैन के बेटा जनाबे सज्जाद बचे थे जो बहुत बीमार थे।
ज़ालिम यज़ीद ने कर्बला मे हज़रत मोहम्मद सअव के परिवार सहित उनके साथ गए साथियों को क़त्ल करने के बाद बचे तमाम मोहम्मद सअव की नवासियों व बचे को क़ैदी बनाकर जेल मे डलवा दिया था।
उक्त बातें जदयू नेता सह सदस्य बिहार राज्य शिया वक़्फ़ बोर्ड बिहार सरकार। सैयद आसिफ़ इमाम ने बताया।
ज़ालिम यज़ीद ने अपनी असत्य पर ग़लत तरीका से वर्चस्व बनाने के लिए मोहम्मद सअव की औलाद पर वो हर ज़ुल्म किया और कराया जो जानवरों के साथ भी नही किया जा सकता है।
दास मोहर्रंम को आशुर के दिन जब इमाम हुसैन ने अपने बेज़ुबान 6 महीने के बच्चे अली असगर को पानी के लिए मैदान मे लाये और ज़ालिमों से खिताब कर के कहा तुम अगर मेरे जान के दुश्मन हो तो ठीक है पर ये मासूम बेज़ूबान बच्चा जो तीन रोज़ से भूखा प्यासा है इसे थोड़ा पानी दे दो।
ये कहना था की जवाब मे तीन फ़ार के तिर से जिगर-ए- हुसैन के गर्दन पर वार किया गया और इमाम हुसैन के हांथों पर ही अली असगर शहीद हो गए।
जिस तीर का वज़न इमाम हुसैन के लख्ते जिगर जनाबे असगर से ज़ादह था।
हज़रत इमाम हुसैन ने नाना हज़रत मोहम्मद सअव के कलमा और मानवता को बचाने के लिए अपना पुरा घर शहीद होने दिया पर ज़ालिम यज़ीद की बैय्यत नही किया और इमाम हुसैन ने यज़ीद को बैय्यत के जवाब मे कहा की मुझ जैसा तुझ जैसी की बैय्यत नही कर सकता।
यज़ीद तलवार व असलहा के खौफ़ से उस वक़्त के तमाम लोगो की बैय्यत करा चुका था सिर्फ हज़रत मोहमद सअव के परिवार की बैय्यत नही करा पाया जो जिस वजह यज़ीद के लिए सारी बैय्यते बेकार थी। यज़ीद जानता था की अगर इमाम हुसैन की बैय्यत न करा पाया तो कराई गई सब बैय्यत बेकार हो जायेगी क्योंकि तमाम लोग यज़ीद से सवाल करने लगेंगे की जब तु सच पर है तो इमाम हुसैन तुम्हारे साथ क्यु नही है।
यज़ीद ने लोगो को बरगलाया हुआ था और ग़लत तरीके से धमका डरा कर बाक़ी लोगों से बैय्यत कराया था।
जबकि इमाम हुसैन के बैय्यत के बग़ैर सारी बैय्यते बेकार थी।
यज़ीद जानता था की इमाम हुसैन हक़ के साथ ही रहेंगे यज़ीद चाहे जितना भी ज़ुल्म क्यो न कर ले जबकि ज़ालिम यज़ीद बातिल चाहता था।
जैसे ही यज़ीद मलाऊँन ने इमाम हुसैन से बैय्यत की बात किया तो इमाम हुसैन ने यज़ीद से कहा के तुम चाहते हो की हक़ खत्म हो हो जाए बातिल फ़ैला दो मानवता खत्म हो जाए तुम्हारा ज़ुल्म आम हो जाए और
हर सही काम को ग़लत साबित करो और ग़लत को सही और मेरे नाना की उम्मत को गुमराह कर इस्लाम और मानवता शर्मसार करों।
और ये मेरे होते हुए मुंकिनन ही नही है।
मानवता और नाना का कलमा बचाने के लिए मुझे अगर मेरे पूरे परिवार यहा तक की छे माह के बेज़ुबान अली असगर और अपने साथियों को शहीद होना पड़े तो भी मैं पीछे नही हट सकता।
इमाम हुसैन ने
हिंदुस्तान से मोहब्बत का इज़हार करते हुए ज़ालिम यज़ीद से मुख़ातिब होकर कहा की मुझे हिंदुस्तान जाने दो फ़िर इमाम हुसैन की हिंदुस्तान की इक्षा के बारे मे सुनकर ज़ालिम यज़ीद अपने ज़ालिम साथियों के साथ ज़ोर से हसने लगा और बोला की हिंदुस्तान मे तो सिर्फ हिंदू है वहा जाकर क्या करेंगे। इमाम हुसैन ने जवाब दिया की हिंदुस्तान के हिंदू तुम जैसे मुसलमान से बहुत बेहतर है क्योंकि उन्हे सत्य और असत्य का फ़र्क़ मालूम है तथा मानवता क्या होता है वे बखूबी जानते है तथा बेकुसुर के साथ ज़ुल्म नही करते यही वजह है हर हिंदुस्तानियों की आस्था इमाम हुसैन से जुड़ी है और तमाम हिंदुस्तान मे इमाम हुसैन व समस्त परिवार के की शहादत दिवस पर मजलिस, मातम व तक़रीर कर खेराजे अक़ीदत व हिंदू भाई श्रधांजलि अर्पित करते है।
तमाम हिंदुस्तानियों के दिल मे इमाम हुसैन की आस्था है और जब तक मानवता रहेगा आपकी याद रहेगी।
राष्ट्र पिता स्व महात्मा गांधी जी ने कहा था की यदि इमाम हुसैन के सिपाही जैसे 72 सिपाही मेरे पास होते तो मैं केवल 24 घंटा के अंतराल मे भारत को अंगर्ज़ों से आज़ाद करा लेता।
स्व० महात्मा गांधी जी ने कहा की मेरी नज़र मे इस्लाम की बढ़ोत्तरी तलवार पर निर्भर नही बल्कि इमाम हुसैन की अज़ीम कुर्बानी से हुई है।
इमाम हुसैन ने ये साबित कर दिया की जंग सिर्फ़ तलवार से ही नही बल्कि ज़ुल्म सहकर शहादत देकर भी जीत हासिल की जा सकती है।
हिंदुस्तान के मशहूर शायर जोश मलिहाबादी ने क्या खूब कहा

क्या सिर्फ मुसलमानों के प्यारे है हुसैन।
चर्खे नॉय बशर के तारे है हुसैन।
इंसान को बेदार तो हो लेने दो।
हर क़ौम पुकारेगी हमारे है हुसैन।

ये शेर कहते हुए श्री इमाम ने बताया की इमाम हुसैन की अज़ीम कुर्बानी तमाम आल्मे इंसानियत को हक़ व बातिल की पहचान दिलाती है और ये सिख देती है की वक़्त चाहे कितना ही सख़्त क्यो न हो अगर हक़ पर हो तो लड़ो अल्लाह/ईश्वर तुम्हारे साथ होगा पर अगर असत्य/ग़लत/बातिल का साथ दोगे तो तुम्हारे पास चाहे जितनी ज़ादह तादाद मे फौज क्यों न हो तुम्हारी शिकस्त ही होगी और साथ-साथ तुम्हारी नस्ले और उनकी निशानियाँ भी मिट जायेगी।
और कोई नामों निशा नही होगा जबकि हक़ पर रहने वाले और हक़ का साथ देने वाले ज़िंदा रहेंगे और उनके ज़रिये दी गई कुर्बानियों को कयामत तक याद किया जाता रहेगा।

 

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