संस्कृति और अर्थव्यवस्था पर भाषा का भविष्य निर्भर : अभय कुमार

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

किसी भी भाषा का विस्तार उसकी संस्कृति और उसके मूल देश की अर्थव्यवस्था पर निर्भर करता है। जिस तरह से भारत की संस्कृति पूरी दुनिया में फैल रही है उससे हिंदी को ताकत मिलेगी। वसुधैव कुटुंबकम का सोच भारतीय संस्कृति को अलग पहचान देता है। वसुधैव कुटुंबकम पूरी दुनिया को एक परिवार मानने से आगे जाकर पृथ्वी को परिवार मानता है। इस परिवार में महासागर और महाद्वीप भी हैं, मानव भी हैं और जीव जंतु भी हैं। हिंदी का विस्तार इस सोच से ही होगा।

ये कहना है मेडागास्कर में भारत के राजदूत अभय कुमार का, जो दैनिक जागरण के मंच हिंदी हैं हम पर अपनी बात रख रहे थे। अभय कुमार का मानना है कि भारत एक आर्थिक शक्ति के रूप में भी आगे बढ़ रहा है, उसका असर भी हिंदी पर पड़ेगा और हमारी भाषा को भी मजबूती मिलेगी।

अभय कुमार ने इस बात पर संतोष जताया कि आज हिंदी की हर तरफ उन्नति हो रही है। साहित्य रचना और बोलचाल की भाषा के तौर पर हिंदी का प्रयोग बढ़ रहा है। इस समय हम स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। जब भारत स्वतंत्र हुआ था उस समय से तुलना करें तो इस समय हिंदी की स्थिति बेहतर दिखाई देती है। आज दक्षिण भारत के राज्यों में भी हिंदी बोलने और समझने वाले मिल जाएंगे।

दुनिया के अलग अलग देशों में भी हिंदी का प्रयोग बढ़ा है। मेडागास्कर में भी हिंदी का प्रयोग बढ़ रहा है। मेडागास्कर से एक घंटे की दूरी पर मारीशस है, वहां तो कई बार विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन हो चुका है। सेशल्स में भी हिंदी बोली जाती है। हिंद महासागर में छह स्वतंत्र द्वीप हैं और इन सभी द्वीपों पर हिंदी बोली जाती है। इस तरह अगर आप देखें तो हिंदी का विकास भी हुआ है और उसका मान सम्मान भी बढ़ा है।

अभय कुमार ने दुनिया के अनेक देशों में काम करने के अपने अनुभव के आधार पर बताया कि भारत की संस्कृति लोगों को आकर्षित करती है और इस आकर्षण की वजह से कई लोग इससे जुड़ना चाहते हैं। उन्होंने मेडागास्कर का ही उदाहरण दिया कि वहां की जनता भारतीय त्योहारों में खूब रुचि लेती है। वो लोग होली दीवाली के बारे में जानना चाहते हैं। वो गरबा के बारे में जानना चाहते हैं। इसके लिए भी वो हिंदी सीखना चाहते हैं। मेडागास्कर में महिलाओं के कई समूह हैं जो बच्चों को हिंदी सिखाती हैं। वहां के भारतीय मूल के बच्चे हिंदी और गुजराती दोनों भाषा सीखते और बोलते हैं।

अभय कुमार ये मानते हैं कि दूसरी भाषाओं में अनुवाद से भी भाषा समृद्ध होती है। उन्होंने कहा कि दुनिया बहुभाषी है और सभी भाषाओं तक हिंदी को पहुंचाने का सबसे अच्छा और आसान तरीका हिंदी की कृतियों का अलग अलग भाषाओं में अनुवाद करना है। उन्होंने कहा कि हिंदी की कालजयी रचनाओं के अनुवाद का लक्ष्य तय कर दिया जाए और कम से कम संयुक्त राष्ट्र से मान्यता प्राप्त भाषाओं में उनका अनुवाद हो। इससे दुनिया के अलग अलग देशों को हिंदी और भारत दोनों को समझने में मदद मिलेगी।

अभय ने एक बेहद दिलचस्प बात भी बताई कि उनको मेडागास्कर में 1951 में प्रकाशित एक ऐसी कृति मिली जिसमें मेडागास्कर की भाषा में संस्कृत के शब्दों के प्रयोग के बारे में जानकारी दी गई है। उस पुस्तक में संस्कृत के उन तीन सौ शब्दों को चिन्हित किया गया है जिनका प्रयोग मेडागास्कर के निवासी मलागासी लोग करते हैं। इसके अलावा वहां एक पुस्तक है जिसका नाम इबोनिया है।

इसकी कहानी रामायण से मिलती है। इस पुस्तक को मलागासी रामायण भी कहते हैं। मेडागास्कर के मुख्य देवता का नाम जनहरि है। मेडागास्कर के लोग भी ये नहीं जानते हैं कि हरि तो भारत में भी भगवान हैं। भारत के लोग भी मारीशस से आगे नहीं बढ़ पाते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि मेडागास्कर में भारत का एक सांस्कृतिक केंद्र हो, वहां हिंदी के शिक्षक हों ताकि भाषा और संस्कृति दोनों को विस्तार मिले।

उल्लेखनीय है कि ‘हिंदी है हम’ दैनिक जागरण का अपनी भाषा हिंदी को समृद्ध करने का एक उपक्रम है। इसके अंतर्गत हिंदी के संवर्धन के लिए कई कार्यक्रम चलाए जाते हैं। विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर एक सप्ताह तक दुनिया के अलग अलग देशों के हिंदी सेवियों, हिंदी शिक्षकों और राजनयिकों से बातचीत का आयोजन किया गया है। अभय कुमार से ये बातचीत उसी कड़ी में की गई है।

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