थोड़ कइलें गान्ही बाबा ढ़ेर कइलस लोगवा

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

ई सारन आ चम्पारन में प्रचलित लोक – उक्ति ह। एकरा से ई व्यंजित होला कि भोजपुरी जन का तिल के तार आ राई के पहाड़ बनावे खूब आवेला। भोजपुरी मनई भावुक ढ़ेर होलें। जब सराहे लगिहें त अइसन कसिदा कढ़िहें कि ऊ कसिदवे बढ़ – लमर जाई आ कपड़ा छोट पड़ जाई। इहो आदमी अबहीं आदमकद ना भइल के देव – भगवान आ आउर का का बनावे लागेला लोग।

जे नाट्यशास्त्रकार भरतमुनि के एगो डाँड़ी ना पढ़ले होई, शेक्सपीयर के नाटक के कवनो समर्थ गुरु के गोरथारी बइठ के ना मनसायन कइले होई आ कबो भोजपुरी के लोकनाटककार – नाट्यकर्मी भिखारी ठाकुर के साङ्गोपाङ्ग ना घोंकले होई उहो एह सब के लेके अइसन – अइसन बिचार बोकरे लागी कि पूछीं मत। बल्कि अइसने लोग अपने आपके एह सब बिसय पर बोले के आधिकारिक वक्ता बुझेला। अंजान जन समूह सुनके खूब तलियइबो करेला। भोजपुरी एने ई सब ढ़ेर बढ़ल बा। ई सब पढ़ – सुनके जानकार लोग जड़वत हो जाला। केकरा से का कहो लोग। आपन दिदा काहे खोये के।

एने दैनिक हिन्दुस्तान का सम्पादकीय पन्ना पर डॉ. हाफिज किदवई जी के भिखारी ठाकुर से जुड़ल एगो टिप्पणी पढ़े के मिल गइल फोटो – एक्स-रे करेवाला का लगे। बड़ भाई आदरजोग ध्रुव गुप्त जी का दहिने किदवई जी के टिप्पणी छपल रहे। जवना में ऊ भाव-विभोर होके आधिकारिक रूप से लिखले बाड़ें कि भिखारी ठाकुर आपन नाच – तमासा वाला मंडली लेके मारीशस, केन्या, सिंगापुर, नेपाल, ब्रिटिश गुयाना, युगांडा आदि आदि दर्जन भर देस के दौरा कइले रहलें , जहाँ भोजपुरी संस्कृति के बीज रहे – ओकरा के फूले – फरे में मदद कइलें। धन बानीं डंडी भाँज पलड़ा वाला किदवई जी! जदि उहां तक हमार बात पहुँचित त हम आदर देत पुछतीँ अब आगे की देबई?

अरे भाई! अइसन जनि करीं सभे कि मनोयोग से सबके पढ़े – जाने वाला गैर भोजपुरी भाषी सुधिजन के बीच भोजपुरी के पढ़े – जाने वाला उपहास के पात्र जनि बन जास। एने देख रहल बानीं कि कुछ लोग का बोकरे के बेमारी हो गइल बा। जेकरा वेद का एगो ऋचा के दरसन ना भइल उहो वेद से कवना – कवना किताब से तुलना करे लागऽता। खुद के बारे में अपना पहुँच – प्रभाव आ पइसा – प्रलोभन के जरिए का से का लिखवा – लिखवा के पोथी के पोथी छपवा के बाँट रहल बा।

खुद के ग़ालिब, रहीम, रसखान, कबीर, तुलसी, भारतेन्दु, रघुवीर नारायण आदि आउर ना जाने का का कहवा – लिखवाके छपवा – बँटवा रहल बा। जोर – जोर से चिल्लाके अपने के अनकर आवाज दबावे के जोगाड़ में लागल रहऽता। एने त कुछ लोग अपना खरच पर अपना ऊपर पीएच्-डी करवावे में लागल बा। कुछ लोग अपना घरहीं से सम्मान – पुरस्कार – पत्र छपवाके लेले जाता ताकि केहू बड़ गिनात महानुभाव के हाथ लेके अखबार में छपवावे में लागल बा।

त कुछ लोग सोगहग – सोवरन आ सम्यक् बिचार राखेवाला भरबीतन बतावत चेंगुरा पर लमर – लमर के उचक रहल बा। कुछ अनका रचना में फेंटफाट भा नकल करके अलबल लिख रहल बा। ई सब कइला से ओकरा मूल्यवान मौलिक लेखन के लेके भी पाठक के जेहन में गुना – भाग होखे लागऽता।

कुछ साल पहिले भोजपुरी में एगो लेखार उपटल रहस। तीन – चार दर्जन किताब छप गइल रहे। ऊ अपना ऊपर एक दर्जन किताब लिखवा – छपवा के बँटले रहस। चार – पाँच पन्ना के त उनकर लेटर पैड रहे। सुनिले जे तामा के पतर पर आपन पूरा कर्तृत्व आ व्यक्तित्व गोदवा के अपना जिला – जवार में जमीन के पनरे – पनरे फूट नीचे गड़ववलें, ताकि बाद में खोदाई भइला पर पता चली कि अमूक काल में अमूक कुल में अमूक लेखार पैदा भइल रहस।

ऊ दू भाग में आपन अभिनंदन ग्रंथ छपववले रहस। ऊ एक दिन अपना संघतिया के लके संजोग से पहुँच गइल रहस पटना के एगो विद्वान प्राध्यापक-साहित्यकार-आलोचक के घरे आपन अभिनंदन – ग्रंथ लेके। आवभगत के बाद जब उहां के आपन अभिनंदन – ग्रंथ सादर सउँपे लगनीं त विद्वान व्यक्तित्व कुल्ह माजरा समुझ के उनका झिरकत कहलें – ‘ आपका अभिनन्दन – ग्रंथ है। आप स्वयं अभिनंदन – ग्रंथ लिखवा – छपवा के बाँट रहे हैं। ऐसा थोड़े होता है। इसे ले जाइए। इसको रखने के लिए मेरे बुकसेल्फ में जगह नहीं है।

अभी तक भरतमुनि, मम्मट, कालिदास, दिनकर, शास्त्री आदि का अभिनंदन – ग्रंथ नहीं लिखा जा सका और आप स्वयं अपना अभिनंदन – ग्रंथ लिखवा – छपवाकर बाँट रहे हैं। इससे क्या हो जायेगा। इसे लोग किलो के भाव कबाड़ी को बेच देंगे। ईश्वर कुछ प्रतिभा दिये हों तो अभी खूब पढ़िये और पचाइये। फिर अन्दर से कुछ फूटे तो लिखिये। फिलहाल क्षमा कीजिए अभी मेरे अध्ययन का समय है।

( ई पोस्ट लिखे के पीछे हमार मनसा केहू के महातम घटावे के नइखे। बाकिर अतिशयोक्ति आ भावातिरेक का चलते केहू के सम्यक् मूल्यांकन ना हो पावे। जदि रउरा लिखला भा ना रहला के पचास बरिस बादो राउर अवलोकन आ मूल्यांकन कइल जा रहल बा तबे मोल – महातम। ना त इहाँ रोजे टन के टन लिखात, छपात, बँछात आ फेंकात रहेला। अइसे अपना इहाँ त कवनो ढ़ेलो के सेनूर से टीकके रोड के किनारे फूल – अच्छत चढ़ा दीं त उहो ढ़ेलहा बाबा होके पुजाय लगिहें।

आभार-प्रो. जयकान्त सिंह जय

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