रोमांच को चरम पर ले जाएगा उतराखंड की गर्तांगली सड़क.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
1975 के बाद सेना ने बंद कर दिया इस्तेमाल
140 मीटर लंबा यह सीढ़ीनुमा मार्ग 17वीं सदी में पेशावर से आए पठानों ने चट्टान को काटकर बनाया था। 1962 से पहले भारत-तिब्बत के बीच व्यापारिक गतिविधियां संचालित होने के कारण नेलांग घाटी दोनों तरफ के व्यापारियों से गुलजार रहती थी। दोरजी (तिब्बती व्यापारी) ऊन, चमड़े से बने वस्त्र व नमक लेकर सुमला, मंडी व नेलांग से गर्तांगली होते हुए उत्तरकाशी पहुंचते थे।
तब उत्तरकाशी में बड़ी हाट लगा करती थी। इसी कारण उत्तरकाशी को बाड़ाहाट (बड़ा बाजार) भी कहा जाता है। सामान बेचने के बाद दोरजी यहां से तेल, मसाले, दालें, गुड़, तंबाकू आदि वस्तुएं लेकर लौटते थे। लेकिन, भारत-चीन युद्ध के बाद गर्तांगली से व्यापारिक आवाजाही बंद हो गई। हालांकि, सेना की आवाजाही होती रही। भैरव घाटी से नेलांग तक सड़क बनने के बाद 1975 से सेना ने भी इस रास्ते का इस्तेमाल करना बंद कर दिया। देख-रेख के अभाव में इसकी सीढिय़ां और किनारे लगाई गई लकड़ी की सुरक्षा बाड़ जर्जर होती चली गई।
2017 में मिली अनुमति
2017 में विश्व पर्यटन दिवस पर उत्तराखंड सरकार ने पर्यटकों को गर्तांगली जाने की अनुमति दी थी। लेकिन, जर्जर सीढ़ियों पर जाने का खतरा उठाने को कोई तैयार नहीं था। इसके बाद सरकार इसकी मरम्मत को सक्रिय हुई।
श्रमिक रस्सी बांधकर कर रहे काम
सरकार ने गर्तांगली की मौलिकता को बरकरार रखते हुए इसके पुनरुद्धार का जिम्मा लोक निर्माण विभाग की भटवाड़ी डिविजन को सौंपा है। लोनिवि के अधिशासी अभियंता आरएस खत्री की निगरानी में कार्य शुरू हुआ। मार्च-अप्रैल में बर्फबारी अधिक होने के कारण कार्य प्रभावित रहा। लेकिन, मई से कार्य ने रफ्तार पकड़ ली। खड़ी पहाड़ी और विकटता के कारण श्रमिक रस्सी बांधकर काम कर रहे हैं। अधिशासी अभियंता आरएस खत्री बताते हैं कि 64 लाख की लागत से 140 मीटर लंबे इस मार्ग का पुनरुद्धार हो रहा है। मार्ग पर मुख्य रूप से लकड़ी का प्रयोग हो रहा है, लेकिन कुछ स्थान पर सपोर्ट के लिए लोहे के गार्डर भी लगाए जा रहे हैं।
दो किमी की पैदल दूरी पर है गर्तांगली
गर्तांगली जाने के लिए गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर गंगोत्री धाम से 12 किमी पहले लंका पहुंचना पड़ता है। लंका से आधा किमी दूर भैरवघाटी का प्रसिद्ध मोटर पुल है। इस पुल से पहले बायीं ओर भैरवघाटी से नेलांग को जोडऩे वाला पारंपरिक पैदल ट्रैक है। भैरवघाटी पुल से दो किमी दूर जाड़ गंगा घाटी में गर्तांगली मौजूद है।
उठाई थी मरम्मत की मांग
सबसे पहले गर्तांगली की ओर सरकार और पर्यटकों का ध्यान खींचा था। साथ ही भारत-तिब्बत व्यापार के एकमात्र ऐतिहासिक प्रमाण की वर्तमान जर्जर स्थिति से भी रूबरू कराया था। इसके बाद सरकार और पर्यटन विभाग का ध्यान गर्तांगली के पुनरुद्धार की ओर गया।
गर्तांगली से ही बगोरी आए थे नेलांग-जादूंग के ग्रामीण
तिब्बत को जोडऩे वाला यह एकमात्र मार्ग था। हॢषल की पूर्व प्रधान 80 वर्षीय बसंती नेगी कहती हैं कि नेलांग-जादूंग के ग्रामीण भी सर्दियों से पूर्व गर्तांगली से ही हॢषल और बगोरी आते थे। चीन के साथ 1962 के युद्ध में जब नेलांग व जादूंग गांव खाली कराए गए तो ग्रामीण गर्तांगली से ही मवेशियों साथ बगोरी पहुंचे थे। अब सरकार दोबारा नेलांग-जादूंग को आबाद कर यहां स्थानीय ग्रामीणों को होम स्टे संचालित करने की अनुमति देने जा रही है। इसलिए भविष्य में पर्यटक गर्तांगली का उपयोग ट्रैकिंग के रूप में भी कर सकते हैं।
गर्तांगली के पुनरुद्धार का कार्य पूरा होने के बाद पर्यटक गंगोत्री नेशनल पार्क की अनुमति से इस गलियारे की सैर कर सकेंगे। खड़ी चट्टान पर यह सीढ़ीनुमा मार्ग और गर्तांगली तक जाने वाला पैदल मार्ग पर्यटकों को खासा रोमांचित करेगा।
-प्रताप सिंह पंवार, रेंज अधिकारी, गंगोत्री नेशनल पार्क, उत्तरकाशी
डेढ़ माह में गर्तांगली का पुनरुद्धार कार्य पूरा हो जाएगा। इसके बाद कोविड गाइडलाइन के तहत पर्यटकों के लिए इसे खोला जाएगा। साहसिक पर्यटन के लिहाज से गर्तांगली काफी महत्वपूर्ण है। इससे स्थानीय युवाओं को रोजगार भी मिलेगा।
– मयूर दीक्षित, जिलाधिकारी, उत्तरकाशी
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