गोबर, मिट्टी व फूलों से राखियां बनाकर, दिया पर्यावरण संरक्षण का संदेश
श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्क:
हिमाचल प्रदेश के शिमला जिला के जाठिया देवी क्षेत्र के गोकुल गो सदन स्वयं सहायता समूह द्वारा क्यौंथल क्षेत्र में रक्षाबंधन के पर्व पर भाईयों की कलाई पर बांधी जाने वाली राखियों को गोबर से बनाकर पर्यावरण संरक्षण की पहल की जा रही है. विशेष बात यह कि राखियों के बीच में औषधीय पौधे के बीज डाले गए हैं. ये राखी एक ओर जहां पर्यावरण को सहेजेगी, वहीं खाद का भी काम करेगी.
जाठिया देवी की क्यौंथल सामाजिक सांस्कृतिक उत्थान संस्था के सहयोग से स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने गोबर को कला और सजावट के विभिन्न उत्पादों में बदला है, जिनमें मूर्तियां, वॉल हैंगिंग, फोटो-फ्रेम, कस्टमाइज नेम प्लेट, घड़ी, पूजा की थाल और राखी शामिल है. वोकल फॉर लोकल के अभि.न को भी ये पहल बढ़ावा दे रही है.
संस्था के अध्यक्ष राम गोपाल ठाकुर ने बताया कि संस्था में केवल पहाड़ी गोवंश को संरक्षित करके रखा गया है और इस संस्था द्वारा बनाए गए उत्पाद केवल पहाड़ी गोवंश से ही तैयार किए जाते है. संस्था के संस्थापक मदन ठाकुर ने बताया कि इस पहल का उद्देश्य लोगों को ये संदेश देना है कि पहाड़ी गाय का गोबर केवल एक अपशेष नहीं, बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बहुउपयोगी है. गोकुल गौ-सदन स्वयंसेवी समूह द्वारा गोबर जैसी सामग्री का उपयोग एक नया और रचनात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए किया है. गाय के गोबर को मिट्टी के साथ मिलाकर कई हस्त निर्मित उत्पाद तैयार किए हैं, जिनकी बाजार में खूब मांग है. ये उत्पाद न केवल पर्यावरण अनुकूल हैं, बल्कि बजट फ्रेंडली भी हैं.
स्वयंसेवी संस्था में काम करने वाली महिलाओं ने बताया कि संस्था में तैयार किए गए उत्पादों में सबसे आधिक मांग यहाँ बने साबुन और शैम्पू की रहती है और जब रक्षाबंधन का त्यौहार नजदीक है तो उनके द्वारा निर्मित राखियों की मांग न केवल प्रदेश के विभिन्न भागों, बल्कि अन्य राज्यों से भी आ रही है.
इधर, सिरमौर जिला मुख्यालय नाहन के अम्ब वाला और सैन वाला में महिलाएं राष्ट्रीय आजीविका मिशन के तहत इको फ्रेंडली राखियां बनाने का कार्य कर रही हैं. ये महिलाएं सब्जियों, फूलों के बीजों से राखी बना रही हैं, साथ ही घर-घर जाकर इन राखियों को बेचने का काम भी करती हैं. महिलाओं का कहना है कि राष्ट्रीय आजीविका मिशन के तहत वह बीते कई वर्षों से राखियां बनाने का काम कर रही हैं. इको फ्रेंडली राखियों की अधिक मांग के चलते उन्हें अच्छी खासी आमदनी भी हो रही है.
साभार -विश्व संवाद केंद्र, भारत
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